सबसे बड़ा रसायन प्रेम

प्रेम में वो शक्ति है जो ज़हर को भी अमृत बना देती है  

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय

तोड़े पर फिर ना जुड़़े, जुडे़ गांठ पड़ जाय

मानव जीवन में प्रेम मैत्री और सद्भाव अच्छे गुण है। प्रेम स्वाभाविक होता है इसमें लेनदेन नहीं चलता। माता-पिता का पुत्र के प्रति गुरु का शिष्य के प्रति स्वाभाविक प्रेम होता है। बाल्यावस्था में माता अनेक कष्टों का सहकर पुत्र का लालन पालन करती है। इसी प्रकार पशुओं में भी प्रेम की यह परम्परा देखी जाती है। हरिणी अपने सद्योजात बच्चे के लिए सिंह का सामना करने के लिए भी तैयार रहती है। यद्यपि वह जानती है सिंह एक ही वार में उसका प्राण पखेरू नष्ट कर देगा। किन्तु अपने जीते वह अपने बच्चे की सुरक्षा करती रहती है। यह स्वाभाविक प्रेम है। पशुओ, पक्षियों, मानव सभी प्राणियों में अपने बच्चे के प्रति यह प्रेम देखा जाता है। रामचरित मानस में शबरी का प्रसंग, केवट का प्रसंग स्वाभाविक प्रेम का उदाहरण है। शबरी जाति की भिलनी थी, किन्तु भगवान राम के चरणारबिन्द में उसका स्वाभाविक अनुराग था। वह सैदव राम-राम रटा करती थी उसे यह विश्वास था कि एक दिन भगवान राम उसके द्वार पर अवश्य आएंगे। शबरी के प्रेम ने भगवान राम को आकर्षित किया। प्रेम में वह शक्ति होती है कि वह किसी को भी अपनी तरफ खींच लेता है। 

केवट प्रसंग में भी केवट का यही प्रेम भगवान राम के प्रति देखा जाता है। केवट भी भगवान राम के चरणारबिन्द में अटल अनुराग रखता था। भगवान राम के दर्शन से वह तृप्त हो गया। भगवान राम ने उसका उद्धार किया। इस समय विश्व में लगभग सात अरब जनसंख्या है। यदि सभी प्रेम का पाठ पढ़ ले तो आतंकवाद, भ्रष्टाचार, सम्प्रदायवाद, नक्सलवाद समाप्त हो जाये। जब प्रेम का नाता जुड़ता है तो कटुता अपने आप समाप्त हो जाती है। एक कहावत है- ‘‘एक अनार सौ बिमार’’ अर्थात् अनार में सौ बिमारियों को दूर करने की क्षमता रहती है। प्रेम भी इसी प्रकार का है। उसमें हजारों दुर्गुणों को दूर कर सद्गुण लाने की क्षमता है। 

महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर कौरव पक्ष में गये तो दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण का स्वागत करने के लिए मेवा मिष्ठान आदि का प्रबंध किया था, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण ने उसका त्यागकर विदुर के घर केले का छिलका खाकर प्रसन्नता व्यक्त की। प्रेम में वह आकर्षण होता है कि वह बहुमूल्य चीजों को नहीं देखता। भगवान श्रीकृष्ण को देखकर विदुरानी प्रेम में इतना विहवल हो गई उनको यह ज्ञान ही नहीं रहा कि भगवान को वह केला अर्पण कर रही है या केले का छिलका। भगवान श्रीकृष्ण ने विदुरानी के प्रेम को स्वीकार किया और दुर्योधन के अहंकार को त्याग दिया। प्रेम सबसे बड़ा रसायन होता है। प्रेम के द्वारा लोग ईश्वर को प्राप्त कर लेते है। जब लक्ष्मण को शक्तिवाण लगा तो लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर पड़े। सुखेन वैद्य ने कहा कि संजीवनी बूटी के द्वारा ही लक्ष्मण का प्राण वापस आ सकता है। 

यह बूटी हिमालय पर्वत पर ही मिलती है। हनुमान संजीवनी बूटी लाने जब हिमालय क्षेत्र में गये तो संजीवनी की पहचान न होने के कारण वह पूरे पर्वत को ही उखाड़कर ले आये और लक्ष्मण के प्राण की रक्षा हुई। परिवार में यदि कटुता हो तो उसे प्रेम से दूर करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करना, उनके अनुभव का लाभ लेना प्रेम से ही संभव है। प्रेम में से स्नेह प्रदर्शित होता है। स्नेह की तुलना घी से कि गई है। जैसे घी चिकना और सुगंधित होता है वैसे प्रेम भी है। मीरा को कृष्ण के प्रति प्रेम था। वह सदैव गाती रहती थी- ‘‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई’’ मीरा के पारिवारिकजन मीरा का बहुत विरोध किये। किन्तु भगवान श्रीकृष्ण के प्रति जो स्वाभाविक प्रेम था वो दिनोदिन बढ़ता ही गया कम नहीं हुआ। यहां तक की मीरा को जान से मारने के लिए विष का प्याला दिया गया, वह विष का प्याला मीरा के लिए अमृत हो गया। 

प्रेम में वह शक्ति होती है कि वह विष को भी अमृत बना देती है। गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम स्वाभाविक था। गोपियां सदैव कृष्ण के प्रेम मे मग्न रहा करती थी। उद्धव की ज्ञान की बाते गोपियों को अपने वश में नहीं कर सकी। गोपियों ने उद्धव को उपालम्भ देेकर वापस कर दिया। गोपियां रातो-दिन कृष्ण के प्रेम में इतनी आतुर रहती थी कि उन्हें चारों तरफ कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते थे। प्रेम जब निरुपाधिक होता है तो उसकी यही दशा होती है। बिल्ली अपने बच्चों के प्रति प्रेम रखती है और मुह से पकड़कर इधर से उधर घूमती है। बच्चों का कुछ भी नुकसान नहीं होता। इसमें उसका बच्चों के प्रति प्रेम झलकता है। 

किन्तु वहीं बिल्ली जब चूहे को पकड़ती है तो द्वेष से उसे कुतर डालती है। दोनों कार्यों में दांत का इस्तेमाल हो रहा है, किन्तु जहां प्रेम है वहां कुछ भी नुकसान नहीं हुआ, जहां द्वेष है वहां प्राण नष्ट हो जाता है। जिसके जीवन में प्रेम की धारा प्रवाहित होती है उसका जीवन खुशहाल रहता है। जिसके जीवन में नफरत की भावना प्रवाहित होती है उसका जीवन कष्टमय रहता है। प्रेम से दृष्टिकोण रचनात्मक बनता है और घृणा से नकारात्मक। जब रचनात्मक दृष्टिकोण बनता है तो मनुष्य का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है किन्तु जब नकारात्मक दृष्टिकोण रहता है तो उसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्रेम को ऐसा रसायन कहा गया है जिसका स्वाद लेने से तन-मन सदैव प्रसन्न रहता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)