www.daylife.page
वर्तमान दौर में भारत सरकार का दावा है आर्थिक नीतियों में आक्रमक रही है जिससे विकास दर पटरी पर लौट आई है। आरबीआई का दावा है कि पर्याप्त तरलता बरकरार रखी जा रही है जिससे फंड्स की कमी नहीं है, व्यवसायिक उदृदेश्य से ब्याज दरें कम रखी जा रही है परन्तु सरकार गंभीर चिन्ताओं पर मौन है। आर्थिक जीवन में खुशहाली व समानता कम हो रही है।
भारत में नवम्बर में थोक मंहगाई 14.23 रही। थोक मूल्य सूचकांक 2020 में लगातार डबल डिजिट में रहा है। नवम्बर की थोक मंहगाई पिछले 12 वर्षो में सबसे अधिक रही। बेसिक मैटल, पैट्रोलियम गैस, केमिकल, फूड प्रोडेक्ट, टैक्सटाइल आदि के दाम काफी बढ़ गये। केन्द्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क घटाने के बावजूद ईंधन मंहगा है। उच्च आयात कीमतों के कारण खाद्य कीमतें विशेष रूप से खाद्य तेल की कीमतें ज्यादा है। कोरोना संक्रमण के दौर में आम लोगों पर मंहगाई की मार पड़ रही है। बढ़ती मंहगाई से आम आदमी त्रस्त है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही अप्रेल 2021 से दिसम्बर 2021 तक थोक मंहगाई, ईंधन, बिजली 32.30 प्रतिशत, मैन्यूफेक्चरिंग उत्पाद 10.62 प्रतिशत, खाद्य पदार्थ 9.24 प्रतिशत, सब्जियां 31.56 प्रतिशत, साबुन आदि 20 फीसदी बढ़े। पिछले दिसम्बर 2020 के मुकाबले दिसम्बर 2021 में 7 गुना मंहगाई बढ़ी। 2020 में थोक मंहगाई दर 1.95 प्रतिशत थी जो दिसम्बर 2021 में 13.56 प्रतिशत पंहुच गई। कार-बाईक भी 60,000/- रूपये तक मंहगे हुए। नवम्बर में मंहगाई दर 3.91 प्रतिशत थी जो दिसम्बर में 13.56 फीसदी हो गई। औद्योगिक उत्पादन घट गया, उत्पादन दर 1.4 प्रतिशत है जो पिछले 9 महिनों में सबसे कम रही। दिसम्बर 2021 में खुदरा मंहगाई दर 5.9 प्रतिशत हो गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मंहगाई दर 6 महिने के उच्चतम स्तर पर पंहुच गई है, नवम्बर में 4.91 फीसदी थी।
मैन्यूफैक्चर्ड आइटम्स व खाने-पीने की चीजों में कीमते बढ़ने से मंहगाई बढ़ी है। मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ सिर्फ 0.9 प्रतिशत रही जो पिछले साल के मुकाबले कम है। खाद्य मंहगाई दिसम्बर में 4.05 प्रतिशत रही जो नवम्बर में 1.87 प्रतिशत रही थी। खुदरा मंहगाई दर गांवों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में अघिक रही। खाद्य तेल 24.3 प्रतिशत, बिजली-ईंधन 10.6 प्रतिशत, परिवहन-संचार 9.7 प्रतिशत, कपड़े व फुटवियर 8.3 प्रतिशत, पेय पदार्थ, फल, दूध 4.47 प्रतिशत, चीनी 5.58 प्रतिशत, हाउसिंग 3.6 प्रतिशत वृद्धि हुई।
नवम्बर में औद्योगिक उत्पादन की ग्रोथ रेट 1.4 प्रतिशत रही जो पिछले 9 महिनों में सबसे कम है, पिछले साल की समान अवधि से कम रही। माईनिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट भी 5 प्रतिशत रही जो पिछले साल की अपेक्षा में कम है। कन्सट्रक्शन, इंजीनियरिंग, हेल्थकेयर, फार्मा और रीयल एस्टेट में ब्लू कालर वकर्स की सबसे अधिक कमी है, मजदूरों की कमी के दौर से गुजरना पड़ रहा है। महामारी के कारण प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने को तैयार बैठे है। गरीब मजदूर परिवारों की मंहगाई संबंधी चिंताओं में सर्वप्रथम खाद्य पदार्थ, उसके बाद गैर खाद्य सामग्रियां और फिर सेवाओं से जुड़ी मंहगाई आती है।
बगैर सोचे समझे पहले लगाये लाॅकडाउन फिर स्थानीय स्तर की पाबंदियों ने कारोबारी जगत को बुरी तरह प्रभावित कर दिया। इसकी वजह से 2020-2021 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.1 प्रतिशत की कमी आई। अव्यवस्था व स्वास्थ्य सेवाओं में कमी के कारण देशवासियों ने बड़ी संख्या में अपने प्रियजनों को खोया। करोड़ों लोग अपनी नौकरी खोने या कारोबार में संकट के कारण आर्थिक संकट में घिर गये। वर्ष 2021 त्रासदियों का वर्ष साबित हुआ। 2020 में सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान दिया होता तो 2021 की त्रासदी नहीं देखनी पड़ती।
असमानता में हम शीर्ष देशों में है। मुद्रास्फीति बड़ी चिन्ता बनी हुई है। पिछले वर्षो की नुकसान भरपाई के लिए टेलीकाम, यात्रा, मनोरंजन, हास्पिलिटी आदि क्षेत्रों में कीमतें बढ़ी है। इलेक्ट्रानिक्स भी मंहगे हो गये है, निवेश घर रहा है। असमानता को कम करने के लिए हमारी सरकारों को स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना होगा। समान शिक्षा सुनिश्चित करनी होगी। भारत में 100 सबसे अमीर लोगों की संपदा का मूल्य 58.12 लाख करोड़ है जबकि भारत सरकार का कुल बजट 2021-2022 केवल 34.83 लाख करोड़ था। एक मजदूर की न्यूनतम मजदूरी सीईओ के मुकाबले अर्जित करने में 941 साल लगेंगे। लैंगिग असमानता के कारण महिलाओं की आय की हिस्सेदारी केवल 18 प्रतिशत है। हम जनता के हितो के लिए ज्यादा राशि खर्च नहीं करते। टैक्स व्यवस्था भी प्रगतिशील नहीं है।
एक अध्ययन के अनुसार भारत में करीब 90 फीसदी लोग रोजगार असुरक्षा से जूझते है, जो अवसाद का कारण बन रही है। इसका असर आर्थिक उत्पादकता पर भी पड़ रहा है। रोजगारमुखी विकास नहीं है। विकेन्द्रित औद्योगिकरण की नीति अपनाना आवश्यक है, केवल कुछ राज्यों में औद्योगिकरण से पूरे देश को लाभ नहीं मिलेगा। भारत में 17 करोड़ महिलाओं के ऐसे श्रमों से पहचान की जरूरत है जिसका कोई भुगतान नहीं होता। आम लोगों के सामने बेरोजगारी की मुसीबत बढ़ रही है। जीवन जीना एक चुनौती जैसा हो गया है। प्रवासी मजदूरों की दशा कोरोना काल में लगातार बिगड रही है। आय व खर्च का संतुलन बिगडता जा रहा है, जीवन नीरस भरा होता जा रहा है। जनता का ध्यान व ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ करने का दावा करने वाली सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है। मंहगाई के कारण आम जनता कर्ज में फंस रही है। सरकार को कारपोरेट को राहत देने की बजाय आम लोगों को राहत देने के लिए सोचना होगा। मंहगाई व बेरोजगारी के कारण देश में गरीबी, अपराध, हिंसा बढ़ रही है। कर्ज का सहारा लेकर लोगों की वित्तीय/आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं कर सकती। वर्तमान नीतियों ने भरतीयों को ओर गरीब बना दिया है। सरकार को क्रिप्टोकरेन्सी पर ध्यान देने की बजाय रोजगार, उत्पादन, आय बढ़ाने की नीति अपनानी होगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)