तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा : नेताजी सुभाष चंद्र बोस

 जन्मदिवस के अवसर पर विशेष 

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

www.daylife.page 

डा. आर.सी.मजूमदार ने ‘‘हिस्ट्री आफ फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया’’ में लिखा है ‘‘गांधीजी के बाद भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में सबसे प्रमुख व्यक्ति निःसंदेह सुभाष चन्द्र बोस थे। 1920 में आईसीएस की परीक्षा में सफलता प्राप्त की परन्तु 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। कांग्रेस की क्रियात्मक गतिविधियों में भाग लेना प्रारम्भ किया, 1924 में जेल भेज दिये गये। छूटने पर खादी, राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, यूथ लीग का गठन आदि रचनात्मक कार्यो में लग गये। आल इंडिया यूनियन कांग्रेस एवं यूथ कांग्रेस के सभापति के रूप में युवकों को संगठित किया। सुभाष धार्मिक तथा सुधारवादी नहीं थे। राजनैतिक संघर्ष तथा सामाजिक संघर्ष के संचालन पर बल दिया। माक्र्सवाद के आर्थिक विचारों का समर्थन नहीं किया परन्तु उनके सामाजिक पुनर्निमाण विचारों के कारण उन्हें वामपंथी शक्तियों का वक्ता कहा जाने लगा।

राजनैतिक यथार्थवादी होने के नाते सुभाष चन्द्र बोस गांधीवादी आत्मचिन्तक आदर्शवाद के आलोचक थे। 1922 में गांधी द्वारा अचानक आन्दोलन स्थगित करने पर उन्हें बड़ा क्रोध आया। सुभाष ने गांधी-इरविन समझौते की आलोचना की परन्तु सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। 1937 में कांग्रेस द्वारा मंत्रिमण्डल बनाए जाने के भी विरूद्ध थे, 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। अंग्रेजों द्वारा नियत तिथिस तक स्वतंत्रता न देने पर जोरदार आन्दोलन चलाने के समर्थक थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीयों द्वारा ब्रिटेन के समर्थन के विरोधी थे। ब्रिटेन विरोधी राष्ट्र जर्मनी आदि का सहयोग लेकर स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाना चाहते थे।

देश की जनता व कांग्रेस पर गांधी का प्रभुत्व था। बोस गांधी ग्रुप के उम्मीदवार पट्टाभिसीतारमैया को हराकर पुनः अध्यक्ष बने, मतभेद उभरे। सुभाष बोस ब्रिटेन के साथ समझौता न होने देने व कांग्रेस को सशक्त करने के पक्ष में थे। देश में बड़े पैमाने पर औद्योगिकरण चाहते थे। रविन्द्र नाथ टैगोर व जवाहरलाल नेहरू (उनकी कार्य क्षमता व देशभक्ति की भावना) से प्रभावित थे। उन्होंने दोनों के बीच दूरी को कम करने प्रयास किया परन्तु सफल नहीं हुए। कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर 1939 में फारवर्ड ब्लाक नामक संगठन स्थापित किया। उद्घाटन भाषण में उन्होंने राजनीति व धर्म को अलग रखने की घोषणा की। स्पष्ट रूप से साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में असमझौतावादी दृष्टिकोण, बड़े पैमाने पर आर्थिक उत्पादन, उत्पत्ति और वितरण दोनों का सामाजिक स्वामित्व एवं नियंत्रण, धार्मिक मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता व सामाजिक न्याय का अनुपालन की घोषणा की।

सुभाष ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय सरकार के विरूद्ध जोरदार आन्दोलन चलाने का आव्हान किया। उनका कथन था अंग्रेजों ने किसी देश को स्वतंत्र नहीं किया, उनका विश्वास था। जैल्सा फ्रेकमोरिस ने लिखा है कि चर्चिल की भांति उनकी सोच थी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए शैतान से भी मित्रता करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। सुभाष ने इटली, जर्मनी, जापान की यात्रा कर भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की। आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई। जापानी सेना की सहायता लेकर युद्ध लड़े, भारतक के कुछ क्षेत्रों को मुक्त करा लिया। विपरीत परिस्थितियों के कारण 1944 में इम्फाल में पराजय का सामना करना पड़ा। अमेरिका द्वारा अणुबम गिराने पर जापान की हार हुई। 22 अगस्त को हवाई जहाज द्वारा टोकियों के लिए रवाना हुए, हवाई जहाज की दुर्घटना में मृत्यु हो गई।

सुभाष बोस एक कुशल राजनीतिज्ञ, महान देशभक्त व सेनाध्यक्ष थे। गहरी व प्रभावी देशभक्ति की भावना के साथ उनमे रहस्यवाद व वास्तविकता का मिश्रण था। वे विदेशी ताकतों से सहयोग लेकर संघर्ष के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे और यही कारण था महात्मा गांधी व उनमें विरोध था। सुभाष इंग्लैण्ड के विरूद्ध थे और जर्मनी, इटली, जापान गठबंधन को पूर्ण सहयोग देना व लेना चाहते थे। उन्होंने आजाद हिन्द फौज को जयहिन्द का नारा दिया। आजाद हिन्द रेडियो का प्रसारण प्रारम्भ किया।

राजनीतिक यथार्थवादी होने के कारण बोस गांधीवादी आदर्शवाद के आलोचक थे क्योंकि एक ही समय में गांधी सामन्त एवं किसान, पूंजीपति तथा श्रमिक, द्विज अथवा अद्विज को साथ लेकर आगे बढ़ाना चाहते थे। गांधी के विचार में कार्य संचालन की एक ही विधि ‘‘सत्याग्रह’’ थी। समाज पुननिर्माण में कोई नवीन चिन्तन नहीं था।

गांधी और सुभाष के विचारों में मतभेद था। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उनके रास्ते अलग थे लेकिन सुभाष गांधी का महत्व, राष्ट्रीय जागृति में उनके योगदान, उनकी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी व स्पष्टवादिता से प्रभावित थे और उनका हृदय से सम्मान करते थे। राष्ट्र की चेतना में उनके सर्वाधिक व सर्वोच्च स्थान को स्वीकार करते थे। चाहे राजनीति के रूप में गांधी नीतियों को ढुलमुल व अपर्याप्त मानते हुए उनके परम संतोषी स्वभाव को राष्ट्र हित के विपरीत मानते हुए भी उनकी निष्ठा, सम्मान व आदर में कमी नहीं आई। उन्होंने कहा था ‘‘वर्तमान समय केमहान लोगों में उनका स्थान सर्वोच्च है।’’ यह उनकी नैतिकता और समाजसेवा का ही परिणाम है कि वे साधारण पुरूष से महापुरूष में परिवर्तित हुए। जिन दिनों आजाद हिन्द फौज भारत की सीमाओं पर अंग्रेज सेना से लड़ रही थी, सुभाष बोस ने रेडियों द्वारा गांधी के नाम संदेश प्रसारित किया। 

उन्होंने कहा ‘‘मैं सुभाष बोस राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अभिनन्दन करता हूं। उन्होंने कहा सम्पूर्ण राष्ट्र आपका सम्मान करता है, आपके आदर्शो व सिद्धांतों का अनुसरण करता है। राष्ट्र के सम्मानीय व्यक्ति को मैं विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आजाद हिन्द सरकार केवल देश की स्वतंत्रता के लिए कार्य कर रही है। हमारा लक्ष्य केवल देश की स्वतंत्रता है। आप राष्ट्र के लिए पिता तुल्य है, इसलिए हे राष्ट्र पिता हमें आपका सहयोग व विजयश्री का आशीर्वाद चाहिए। सुभाषने कहा दुनिया में इस समय आप सबसे महान व्यक्ति है और इसे दुनिया मानती है।‘‘

सुभाष बोस कुशल राजनीतिज्ञ, पराक्रमी, देशभक्त थे। भारतीय इतिहास में उनका नाम सदैव चमकता रहेगा। उनका जयहिन्द का नारा आज भी देश में गुंजायमान है। सुभाष ने दुनिया में गांधी को सर्वोच्च स्थान दिया। महात्मा गांधी का राष्ट्र के हृदय में सर्वोच्च स्थान है परन्तु देश में जिस प्रकार की औछी व साम्प्रदायिक राजनीति चल रही है, गांधी की धर्मनिरपेक्षता को छिन्न भिन्न कर धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह गांधी को सम्मानित करने की बजाय अपमानित कर रही है।

सुभाष चन्द्र बोस से गांधीजी ने कहा था कि जिस रास्ते पर आप चल रहे है यदि उससे आजादी मिल सकती है तो बधाई का सबसे पहला तार मैं दूंगा। महायुद्ध के दौरान सुभाषचन्द्र बोस के संदेश से गांधीजी बहुत दुःखी हुए थे। दोनों के बीच स्वतंत्रता प्राप्ति के रास्तों पर मतभेद रहे हैं परन्तु सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी को महामानव माना। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)