नीरज खुद एक महाकाव्य थे : ज्ञानेन्द्र रावत

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"अब तो मजहब कोई ऐसा चलाया जाये, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाये। जिसकी खुशबू से महक जाये पडो़सी का भी घर, फूल इस किस्म का हर सिम्त खिलाया जाये। "इस गीत के रचियेता महान गीतकार, पद्मश्री, पद्म विभूषण, यश भारती और अपने जीवन में तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड आदि असंख्य सम्मान-पुरस्कारों से सम्मानित 4 जनवरी 1925 को जन्मे गोपालदास नीरज की आज जयंती है। वह गर्व से कहते थे कि आत्मा का शब्द रूप है काव्य। मानव होना यदि भाग्य है तो कवि होना मेरा सौभाग्य....। मेरी कलम की स्याही और मन के भाव तो मेरी सांसों के साथ ही खत्म होंगे। इसमें किंचित भी दो राय नहीं कि वह जीवनभर प्यार के लिए तरसते रहे। या यूं कहा जाये कि वह प्यार के चक्रव्यूह से कभी निकल ही नहीं पाये। 

उनके गीत इस बात के जीवंत प्रमाण हैं कि उनके अंतस में प्यार की कमी जरूर रही। प्यार की यह कमी कहें या पीडा़ गीतों के जरिये अक्सर बाहर आ ही जाती थी। उनका यह गीत कि-"देखती रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा।" उनके अंदर की पीडा़ का जीता जागता सबूत है। दरअसल गीतों के राजकुमार के नाम से विख्यात नीरज जी ने अपनी लेखनी से न केवल साहित्य जगत में बल्कि फिल्म जगत में अपनी एक अलग पहचान बनायी और कवि सम्मेलनों की बात की जाये तो सच्चाई यह है कि कोई भी कवि सम्मेलन हो,उनके बिना अधूरा ही रहता था। लोग उनको सुनने के लिए सुबह तक कवि सम्मेलनों के पंडाल में बैठे रहते थे।

उनका लिखा नई उमर की नई फसल फिल्म का यह गीत "कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे....",  और मेरा नाम जोकर फिल्म का यह गीत "ए भाई जरा देख के चलो, आगे भी नहीं पीछे भी....." तो लोगों के सिर चढ़कर बोला। उनके गीतों ने लोगों के दिलो दिमाग में एक अमिट छाप छोडी़। सच यह है कि नीरज जी खुद एक महाकाव्य थे। 

2014 में कालेज के शताब्दी समारोह में मंच पर नीरज जी, साथ में हैं कालेज के पूर्व छात्र दिल्ली के उप राज्यपाल के ओ एस डी आई जी अजय चौधरी व आई जी नवनीत सिकेरा

वह हमारे कालेज राजकीय इंटर कालेज एटा के 1942 के छात्र थे। यहीं से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। बातचीत में वह अक्सर एटा और अपने कालेज का जिक्र करना भूलते नहीं थे। उनका अपने कालेज से स्नेह सदैव बना रहा। अस्वस्थता के बावजूद भी वह 2014 में हम सभी पूर्व छात्रों और संजीव यादव द्वारा आयोजित कालेज के शताब्दी समारोह में वह एटा आये थे। वह वहां आकर इतने प्रसन्न थे कि वहां उपस्थित हजारों छात्रों के अनुरोध पर उन्होंने घंटों न केवल उनके साथ अपने अनुभवों को साझा किया बल्कि लगातार गीत भी सुनाते रहे । आज वह भले हम सबको छोड़ कर चले गये हैं लेकिन हमेशा गीतों के माध्यम से जीवन का दर्शन और प्यार,भाईचारे का पाठ बताने वाले नीरज जी हम सबके बीच हमेशा जीवित रहेंगे। उनको भुलाया नहीं जा सकता। प्रेम के पुजारी नीरज जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन।

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)