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कुछ समय पूर्व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वहां के राज्यपाल जगदीप धनकड़ को खुले शब्दों में चुनौती दी थी कि अगर उन्होंने विश्वविद्यालयो के कुलपतियो के पद पर सरकार द्वारा तय किये गए लोगों की नियुक्तियों पर अपनी सहमति नहीं दी तो सरकार कानून में संशोधन कर विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप उनके अधिकार मुख्यमंत्री को दे देगी। हालाँकि वहां अभी नियुक्तिओं का विवाद ख़त्म नहीं हुआ है, उधर दक्षिण के राज्य केरल में भी कमोबेश वैसी ही स्थिति बनती जा रही है। केरल वाम मोर्चे की सरकार के विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति की सेवा में विस्तार चाहती है जब की राज्यपाल आरिफ बेग ने यह कहते हुए इससे साफ़ इन्कार कर दिया कि सम्बन्धित नियमों के अनुसार उस कुलपति का सेवा काल बढाया नहीं जा सकता।
कुलपतियों अथवा उप कुलपतियों की नियुक्ति सबंधी कानून के अनुसार, राज्यों के विश्वविद्यालयों में राज्यपाल इनके कुलाधिपति होते है तथा इनके कुलपतियों अथवा उप कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार उनके पास ही होता है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए कुलपतियों अथवा उप कुलपतियों कि नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है। सामान्तय, राज्य सरकारे अथवा केंद्र सरकार जिन लोंगों के नामों की इन नियुक्तयों की सिफारिश करती है, केंद्र में राष्ट्रपति और राज्यों में राज्यपाल उन पर अपनी मोहर लगाते रहे है। कुछ दशक पूर्व तक इन नियुक्तिओं को लेकर कभी किसी प्रकार का विवाद नहीं हुआ। अगर कभी असहमति हुई तो विचार विमर्श से मामला सुलझा लिया गया। बाद में ऐसे मामले भी सामने जब केंद्र में किसी एक पार्टी की सरकार होती थी तथा कुछ राज्यों किसी और पार्टी की, तो ऐसी टकराव के घटनाये सामने आने लगी। इसके चलते जब सरकारें अपनी इच्छा से कुलपतियों की नियक्ति चाहती थी जब की केंद्र के प्रतिनिधी के रूप में राज्यपाल इन नामों पर सहमत नहीं होते थे।
केरल में कुछ सप्ताह पूर्व राज्य कीवाम सरकार ने किन्नूर विश्व विद्यालय के कुलपति गोपीनाथ रविन्द्रन का सेवा काल बढ़ाना चाहती थी। राज्य के उच्च शिक्षामंत्री आर बिंदु चाहते थे कि उनका सेवाकाल बढाया जाये। उनकी सलाह पर राज्य सरकार ने राज्यपाल आरिफ बेग के पास उनके सेवा काल में विस्तार की सिफारिश कर दी। कुछ दिनों बाद आरिफ बेग ने सरकार दवारा भेजी गयी फाइल यह कहते हुए लौटा दी कि नियमों के अनुसार रविन्द्रन के सेवाकाल को बढ़ाया नहीं जा सकता। उन्होंने स्पष्ट लिखा कि नियमों के अनुसार रविन्द्रन इस पद पर रहने की अधिकतम आयु सीमा पार कर चुके है। कुलाधिपति के रूप में वे नियुक्ति सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते। अगर वे ऐसा करते है तो इसे कोई भी अदालत में चुनौती दे सकता है।
राज्यपाल के इस निर्णय के बाद सरकार का तिलमिलाना स्वाभाविक था। इससे पहले सरकार और राज्यपाल में हल्का सा टकराव चल रहा कुछ समय पूर्व राज्यपाल आरिफ बेग ने कुलाधिपति के रूप में केरल विश्वविदयालय के कुलपति को एक प्रस्ताव भेज कर कहा था कि देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मानद डी लिट् की डिग्री दी जाये। राज्य की वाम सरकार तो बस मौके का इंतजार ही रही थी। नियमों के राज्य के उच्च शिक्षामंत्री आर बिंदु राज्य के सभी विश्व विद्यालयों के प्रो वाईस चांसलर है। उनकी ओर से राज्यपाल को सूचित किया गया कि नियमों के अनुसार राष्ट्रपति कोविंद को डी लिट् की मानद उपाधि नहीं दी जा सकती। इन दोनों मुद्दों को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि आरिफ बेग इस मुद्दे पर मुखर रूप से बोलने लगे। उन्होंने मिडिया को बुलाकर साफ़ कहा कि अगर सरकार चाहे तो कुलपतियों कीनियुक्तिओं संबधी कानून में सशोधन के लिए सरकार विधानसभा का विशेष स्तर बुला कर शिक्षा मंत्री को कुलाधिपति बनाया जा सकता है। अगर विशेष स्तर बुलाया जाना संभव नहीं है तो सरकार ऐसा एक अध्यादेश जारी करके कर सकती है। वे ऐसे अध्यादेश पर तुरंत अपनी सहमति दे देंगे।
उनका कहना था कि वे कुलपतियों की नियुक्तियों के लिए सरकार से कोई और अधिकार नहीं मांग रहे है लेकिन बस यह पुख्ता करना चाहते हैं कि कुलाधिपति के रूप में वे नियमों तथा व्यवस्थायों का सही और प्रभावी रूप से निर्वहन करे सकें।
उधर सरकार का कहना है कि डी लिट् की मानद डिग्री देने के लिए राज्यपाल अलग-अलग मापदंड अपना रहे है। कुछ समय पूर्व राज्य के संस्कृत विश्वविद्यालय ने तीन विद्वानों को डी लिट् की मानद उपाधि देने के नामों की सिफारिश की थी। नामों के प्रस्ताव पूरी तरह नियमों के अनुसार थे लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल ने आज तक इन पर अपनी सहमति नहीं दी। जिस ढंग से इन मुद्दों को लेकर विवाद बढ़ रहा है उसे देखते हुए यह लग रहा है की आने वाले दिनों में यह और तेज़ हो सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)