बढ़ती असमानता आखिर जिम्मेदार कौन ?

विकास का लाभ किसे...?   

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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सरकार का दावा है 2022 में अर्थव्यवस्था के 8.5 फीसदी की दर से बढ़ने के आसार है। जीडीपी की ग्रोथ रेट पहली बार 20.1 प्रतिशत दर्ज हुई है। अक्टूबर में सेंसेक्स 67245 की उंचाई तक पहुंच गया है। कोरोना के मद्देनजर लगे लाकडाउन के हटने के बाद मांग में बढ़ोतरी हुई है परन्तु आपूर्ति पूरी तरह बहाल नहीं हो पाई। मंहगाई लगातार बढ़ रही है। पिछले 12 महिनों में खाद्य पदार्थो की कीमतों में इजाफा हुआ है, दो तिहाई लोग मंहगाई की तपन महसूस कर रहे है। गेंहू 22.35 प्रतिशत, सोयाबीन तेल 52 प्रतिशत, पाम आयल 30 प्रतिशत, काटन 51 प्रतिशत इस प्रकार फूड प्राइस इन्डेक्स में 27.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। एक साल में कच्चा तेल 59.54 प्रतिशत, गैस 32.37 प्रतिशत, कुकिंग कोल 118.24 प्रतिशत मंहगा हुआ है। स्टील 98 प्रतिशत, टिन 106 प्रतिशत, कापर, एल्यूम्युनियम, निकल 22 से 28 प्रतिशत मंहगे हुए है। पैट्रोल-डीजल मंहगा हुआ है। इस प्रकार भारत में एक साल में थोक मंहगाई 14 प्रतिशत है तो 12 साल में उच्चतम है।

मंहगाई का असर सबसे ज्यादा गरीब देश व गरीबों पर पड़ा है। क्रय शक्ति कम हुई है, निजी उपभोग में कमी आई है। 2020-21 में खुदरा मंहगाई 6.2 प्रतिशत रही जिससे निजी उपभोग में 9 प्रतिशत गिरावट आई। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 4 में से 3 लोग मंहगाई के असर को महसूस कर रहे है, 1.8 अरब लोग स्वस्थ आहार से वंचित है।

देश में प्रति व्यक्ति आय 8.24 प्रतिशत घटकर 99694 रह गई। 2019-20 में 108645 थी व 2018-19 में 105526 थी। शहरी बेरोजगारी दर अप्रेल में 11.84 फीसदी पर पंहुच गई। सीएमआईई के मुताबिक देश की बेरोजगारी इस वर्ष 7 प्रतिशत दर्ज की गई। क्रूड आइल की कीमत में तेजी से कई उत्पाद, ट्रांसपोर्ट, रसायनिक, खाद, रबर, पेंट आदि की कमीतों पर असर पड़ा। परिवहन की लागत में बढ़ोतरी हुई, औद्योगिक धातुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हुई, चीनी की कीमतों में तेजी आई। मंहगाई की वजह से आपूर्ति में व्यवधान हुआ है।

मंहगाई के वार व उपभोक्ता पर करो की मार से भुखमरी की समस्या अब भी बनी हुई है। हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार पनप रहा है। विकास का लाभ नीचे तक नहीं पंहुच रहा है। सरकार द्वारा गैर उत्पादक कार्यो पर खर्च बढ़ाया जा रहा है। वल्र्ड इनइक्वेलिटी डेटा बेस के अनुसार आज भारत में नीचे की आबादी का गरीबी स्तर वही है जो 1932 में यानि महामंदी के तत्काल बाद अमेरिका के 50 प्रतिशत नीचे के वर्ग में था। गरीबी में हम अमेरिका से 90 साल पीछे है। आजादी के बाद जो स्थिति में सुधार हुआ है वह गत 3-4 वर्षो में में समाप्त हो गया। हमने गरीबों को न्याय देने का संकल्प किया, 1970 में गरीबी हटाने का नारा दिया। संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द जोड़ा, गरीबों के उत्थान का लक्ष्य बनाया। जो कुछ काम हुआ उसका असर वर्तमान नीतियों के कारण समाप्त हो गया।

सन 2014 में वर्तमान सरकार ने ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ नारा दिया। आजादी के पहले 30 वर्षो में आधी आबादी की वास्तविक सालाना आय मात्र 2.2 प्रतिशत रही, 45 साल तक यही दर बनी रही। नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत सेन के मुताबिक भारत भारत दुनिया के सबसे अधिक आर्थिक असमानता वाले देशों में अग्रणी है। मानव विकास सूचकांक जब 31 साल पहले शुरू हुआ तो भारत 135 वें स्थान पर था, आज उसी के पास है जबकि जीडीपी आयतन में देश दो दर्जन उपर जाकर आज छठे स्थान पर है। स्पष्ट है विकास का लाभ नीचे तक नहीं पंहुच रहा। वर्तमान सरकर की दक्षिणपंथी नीतियों व प्रो-कारपोरेट सेक्टर नीतियों के कारण असमानता तेजी से बढ़ रही है।

हेपीनेस इंडेक्स में भारत की रैंकिंग संतोषजनक नहीं है। पिछले वर्ष 149 देशों में भारत की रैंकिंग 139 रही, जो पिछले वर्षो के मुकाबले मामूली सुधर रही है। सरकार की नीतियां प्रोरिच है, दलित, गरीब, पिछड़े आदिवासी भयंकर गरीबी, भुखमरी, मंहगाई, बेरोजगारी, बीमारी से त्रस्त है। विकास के नाम पर अनउत्पादक कार्यो पर खर्च बढ़ाया जा रहा है। देश की संपत्ति व आय का अधिकांश भाग मात्र कुछ उद्योगपतियों को मिल रहा है। असमानता बढ़ रही है क्योंकि विकास का लाभ नीचे तक नहीं पंहुच रहा है। 

पैट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाकर 23 लाख करोड़ भारत सरकार ने कमाया है, कीमते बेकाबू हो रही है। निवेशकों से दोस्ती कर जनता को अपने तकदीर पर छोड़ दिया गया है। एक ओर आत्मनिर्भरता का नारा है, दूसरी ओर आयात को बढ़ावा दिया जा रहा है। कुल मिलाकर आज भारतीय अर्थव्यवस्था और आम भारतीय के आर्थिक विकास ढलान की तरफ है। भारतीय अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता का मुकाम दूर होता जा रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)