कुशल राजनीतिज्ञ एवं प्रशासक थे सरदार पटेल

15 दिसम्बर पुण्यतिथि

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

(लेखक, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं) 

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भारत में राष्ट्रवाद का उदय अनायास ही नहीं हुआ। अनेक प्रवर सुधारकों बुद्धिजीवियों, सामाजिक तथा धार्मिक सुधारकों, राजनेताओं, शिक्षकों आदि ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु इस प्रक्रिया में भाग लिया था। कुछ ने परिवर्तन के लिए शोषण की स्थितियों की आलोचना की परन्तु कुछ ने समाज व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था को बदलने के लिए जी-जान से मेहनत की, दुःख सहे, आंदोलन किये और लोगों के चिंतन में राष्ट्रवाद का प्रभावषाली तत्व उत्पन्न किया।

सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में हुए खेडा सत्याग्रह और बारदोली किसान आन्दोलन ने उन्हे एक मजबूत किसान नेता और कांग्रेस नेता के रूप में प्रतिष्ठित किया। पं. जवाहर लाल नेहरू की ज्यादा पकड अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर थी, तो पटेल राष्ट्रवादी राजनीति के प्रमुख थे। उनकी संगठन कुशलता के सभी नेता कायल थे। वे आर्थिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे। उन्होंने भारत में सामाजिक रूढीवाद तथा आधुनिक पश्चिम सभ्यता का समन्वय किया। सरदार पटेल स्वराज में अटूट आस्था रखते थे, वे गांधी जी की हिन्दू सुधार वाद की मूल बातों के समीप थे। सरदार पटेल भारत की सांस्कृतिक निधि विशेषकर हिन्दू संस्कृति के प्रति भी बडे ही सजग थे। भारत के अतीत में उनकी अटूट आस्था थी परन्तु गांधी के समान हिन्दू मुस्लिम एकता में बडी रूची रखते थे।  

गाॅधी का अभिप्राय बहुत हद तक द्विपक्षीय था, स्वतंत्रता प्राप्त करना व समन्वित धर्म की रक्षा करना था और इसी प्रकार की नीति का अनुसरण गाॅधी के सच्चे अनुयायी सरदार पटेल ने किया। उन्होंने काॅग्रेस के अन्दर ओर बाहर गाॅधीवादी विचारों और विधियों पर जोर दिया और अपनी शक्ति को गाॅधी के विचारों  को मूर्तरूप्स देने के हितों की रक्षा की । एक वैष्णव के रूप में पटेल गाॅधी के समान हिन्दु मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। गाॅधी के अनुयायी के रूप में उनहोंने अहिंसा के संदेश को स्वीकार किया, परन्तु समाजवाद व माक्र्सवाद का विरोध किया। कांग्रेस में भारतीय समाजवादियों तथा वामपंथियों के बढते प्रभाव का विरोध किया, उन्होंने महसूस किया था कि मार्क्सवादी सैद्धान्तिक समाजवाद भारत के लिए उपयोगी नहीं हो सकता, परन्तु उनका मत था कि एक बार स्वतंत्रदेष बनने के बाद उसे समाजवादी राज्य में परिवर्तित करने का प्रयास किया जा सकता है वे किसानों व विद्यार्थियों को उत्साही देखना चाहते थे।

पटेल ने 1947 में भारत को विखण्डित होने से बचाया। देश को उनका दृढ नेतृत्व मिला, 565 छोटी-बडी रियासतों का भारतीय संघ में विलिनीकरण का कठिन काम उन्होंने सफलतापूर्वक सम्पन्न किया और रियासतों को भारत में विलय के लिए मजबूर किया। 1948 में हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही से मिलाया। किन्तु कुछ हिन्दू सुधारवादियों ने राष्ट्रवाद को हिन्दू धर्म के साथ ही जोड दिया जिसके कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों के मन में हिन्दुओं के प्रति संदेह की भावना जागृत हुई।  फलतः घृणा और हिंसा का वातावरण बन गया । विभिन्न समुदायों में घृणा और शत्रुता की भावनाऐं तीव्र हो गई। तब सरदार पटेल ने कहा था कि उन्होंने कभी मुसलमानों का कल्पना में भी बुरा नहीं सोचा, देश हित  के सामने देश की प्रति सभी की वफादारी का मुद्दा अहम है।

सरदार पटेल के सम्बन्ध में  माउण्टवेटन ने प. जवाहर लाल नेहरू से एक बार कहा था कि तुम भाग्यषाली हो  कि तुम्हारे पास सरदार पटेल जैसा कुषल संगठनकर्ता व प्रषासक है जो उपर से अखरोट जैसा सख्त है पर छिलका तोडने पर वह मुलायम गुदा सा रह जाता है। कौमी जुनून पर सरदार पअेल ने पं. नेहरू से  कहा था कि मैं सरकार छोडकर जनता के बीच में जाना चाहता हॅू तब पं0 जवाहर लाल नेहरू ने कहा था -ना, सरदार,ना । बापू गये अब  अकेले तुम बचे हो मेैं तुम्हें कैसे जाने दूॅ। मैं सोच भी नहीं सकता कि सरदार के बिना जवाहर रह सकता है। सरदार पटेल की आँखें छलछला आई थी और जवाहर भी अपने को नहीं सभाल पाये थे। सरदार पटेल ने मणि से कहा था -बापू ने जवाहर मेरे हवाले किया था वह बहुत प्यारा इंसान है, पाक है, इस देश के लिए बहुत कुछ करने की तमन्ना रखता है। जवाहर मेरा छोटा भाई है। मैं जवाहर को अच्छी तरह जानता समझता हॅू। निहित स्वार्थ से जो लोग जवाहर लाल नेहरू व सरदार दोनो महापुरूषों को अपनी स्वार्थ भरी दृष्टि से देखते हैं वे देष के शुभ चिंतक नहीं हो सकते।

सरदार यानी भारत के बल्लभ भाई पटेल का भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो योगदान रहा है वह सदैव देशवासियों केा स्मरण रहेगा। पं.जवाहर लाल नेहरू गांधी के राजनैतिक उत्तराधिकारी हुए परन्तु आध्यात्म उत्तराधिकारी हुए बिनोवा भावे व सरदार पटेल। बल्लभ भाई पटेल को गाॅधी जी ने उनकी दृढता, संगठन एवं नेतृत्व क्षमता को देखते हुए ही सरदार की उपाधि दी थी।

पंडित नेहरू और सरदार पटेल के बीच मतभेद चरम सीमा तक पहुंच गये तो महात्मा गांधी मध्यस्थ बने थे। सरदार पटेल ने कलकत्ता की एक सभा में कहा ‘‘हम लोगों ने अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा कर लिया है, व्यक्तिगत इच्छाओं को त्याग गांधी जी के नेतृत्व में बिना शर्त, अपने आपको हिन्दुस्तान की सेवा हेतु एक सैनिक मानता हूं।’’ इसलिए कठिन परिस्थितियों में अजेय रहने वाले इस महान राजनीतिज्ञ को भारत का शिल्पी और निर्माता कहा जाता है।

पंडित नेहरू व सरदार पटेल की प्रभावशाली जोड़ी महात्मा गांधी के पीछे रहने वाली दो प्रबल शक्तियां थी जिन्होंने भारत निर्माण के स्वप्न को जीवन का उद्देश्य बनाया, जिन्होंने गांधीजी के भारत को आकार देने में सर्वाधिक योगदान दिया। सरदार पटेल को सारा भारत लौह पुरूष कहता आया है। उन्होंने कहा था ‘‘मैं अपने आपको हिन्दुस्तान का एक सेवक मानता हूं और अपने जीवन के अंतिम समय तक एक सैनिक ही रहूंगा।’’ महात्मा गांधी की नीतियों और सुझावों को भी कई बार उन्होंने नहीं माना और यहां तक कहां कि ‘‘मुझे राज चलाना है, बंदुक रखनी है, तोप रखनी है, आर्मी रखनी है। गांधी जी कहते हैं कि कुछ न करो, तो वह मैं नहीं कर सकता, क्योंकि मैं 30 करोड़ का ट्रस्टी हो गया हूं, मेरी जिम्मेदारी है कि सबकी रक्षा करूं। देश पर हमला होगा तो मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा क्योंकि मेरी जिम्मेदारी है। मैंने गांधी जी से कहा है कि आपका रास्ता अच्छा है लेकिन वहां तक मैं नहीं जा पाता हूं।’’ उनके स्वयं के शब्दों में ‘‘गरीब की सेवा, ईश्वर की सेवा है। इस सेवा के मार्ग से हटूंगा तो संभवतया वह मेरा अंतिम समय होगा।’’ (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)