कर्नाटक में अब धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की तैयारी

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक) 

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कर्नाटक की बीजेपी सरकार विधान सभा के शीतकालीन अधिवेशन में धर्मांतरण विरोधी कानून लाने की तैयारी कर रही है। राज्य में ईसाई समुदाय के नेताओं में इसको लेकर कई तरह की अशकाएं है। इस समुदाय के धार्मिक नेताओं को कहना है कि यह कानून केवल ईसाईयों को निशाने पर रख बनाया जा रहा है तथा यह सविंधान की मूल भावनायों के विपरीत है। ऐसा कानून धर्म के बारे में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाये जाने जैसा ही है।

इस समय लगभग आधा दर्ज़न राज्यों में किसी न किसी प्रकार के धर्मांतरण विरोधी कानून है। राज्य के गृह मंत्री  ए जैनेन्द्र का कहना है कि इन राज्यों के  धर्मांतरण विरोधी कानून का अध्यन करने के बाद ही राज्य सरकार ने अपने धर्मांतरण विरोधी कानून का प्रारूप तैयार किया है। इसमें किसी नागरिक द्वारा  स्वेच्छा धर्म बदलने पर कोई बंदिश नहीं है। केवल उन लोगों अथवा संगठनो पर अंकुश लगाना है जो किसी तरह का लालच देकर अथवा बल पूर्वक किसी का धर्म परिवर्तित करवाने में लिप्त होंगे। लेकिन ईसाई समुदाय का कहना है कि इसका दुरूपयोग होगा तथा बिना किसी वज़ह के लोगों को तंग किया जायेगा। इस विधेयक के विरोध को लेकर राज्य की राजधानी में ईसाई समुदाय द्वारा लगातार रैलियां की जा रही हैं। पिछले दिनों समुदाय के एक प्रतिनिधि मंडल ने  राज्य के मुख्यमंत्री बोम्मई का एक ज्ञापन दिया दिया जिसमें इस विधेयक के सन्दर्भ में ईसाईयों की आशंकायों के बारे में विस्तार से उल्लेख किया है। 

बंगलुरु के आर्चबिशप रे.पीटर मचाडो का कहना है कि 1970 से राज्य में चर्चों पर हमले की घटनायों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इन में लिप्त लोगों और संगठनों को सत्तारूढ़ दल का संरक्षण मिलता है तथा पुलिस दोषियों के खिलाफ न तो मुकदमे दर्ज़ करती है और न ही उनके खिलाफ समुचित कार्यवाही करती है। मचाडो के अनुसार चर्चों और अन्य ईसाई स्थलों पर हमलों में कर्नाटक का स्थान देश में तीसरा है सरकारी आंकड़ो के अनुसार चालू वर्ष में ईसाईयों के धर्म स्थलों पर कुल 33 बार हमले हुए। इनमें से 28 मामलों में भवनों को तोडा फोड़ा गया। कम से कम 85 ऐसे मामले हुए जिसमे सत्तारूढ़ दल के  नेताओं के दवाब में पुलिस ईसाई संगठनों को 85 मामलों में धर्मसभा करने की अनुमति नहीं दी। 

उधर राज्य के सबसे प्रभावशाली लिंगायत समुदाय के नेताओं का कहना है कि ईसाई सगठनों से जुड़े मिशनरियों ने पिछले एक साल में लगभग एक लाख लोगो का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाया गया है। बीजेपी के हौसेदुर्ग से विधायक डी. शेखर का आरोप है केवल उनके इलाके में ही बीस हज़ार हिन्दूओं  का धर्म परिवर्तन करवाया गया है। यहाँ तक कि वे उनकी मां को भी ईसाई बनाने में सफल रहे। इन मामलों की जब जाँच करवाई गई तो यह बात सामने आई इतने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन की घटनाएँ नहीं हुई है। हाँ इक्का दुक्का लोगों ने अपना धर्म बदला है जो उन्होंने स्वेच्छा से किया तथा इसका लेकर किसी ने कोई शिकायत नहीं की है। 

मचाडो को कहना है कि सरकारी आंकडे बताते है कि देश में ईसाईयों की आबादी लगातार कम होती जा रही है जो इस बात का संकेत है कि देश में बड़े स्तर पर लोग ईसाई नहीं बन रहे है। 2001 की जन गणना के अनुसार देश में ईसाई कुल आबादी का 2.34 थे जो 2011 में घटकर 2.31 प्रतिशत रह गए। जहाँ तक  कर्नाटक का सवाल है वहां 2001 में राज्य कुल आबादी में केवल 1.91 प्रतिशत ही ईसाई थे जो 2011 में घट कर 1.87 रह गए। यह साफ़ दर्शाता है की राज्य में ईसाईयों की आबादी बढ़ने की बजाये घट रही है। 

लेकिन विश्व हिन्दू परिषद् तथा ऐसे ही अन्य हिन्दू संगठनों के नेताओं का कहना है कि राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की पकड़ से बचने के लिए ईसाई मिशनरियों ने धर्मांतरण के तरीको को बदल लिया है। ये मिशनरी गरीब और पिछड़े, विशेषकर  अनुसूचित और अनूसूचित जातियों के लोगों को अपने जाल में फंसाते है। उन्हें लालच देकर ईसाई बना लेते है, लेकिन न तो उनको कोई नया ईसाई नाम दिया जाता है तथा न ही कानून के प्रावधानों के अंतर्गत जिला अधिकारियों को इस बारे में सूचित किया जाता हैं। 

इस  प्रकार के धर्मांतरण के आंकडे सरकारी आंकड़ो में शामिल नहीं होते। इसलिए आंकड़ो के अनुसार देश में ईसाईयों के आबादी घट रही जब कि वास्तव में बढ़ रही हैं। यह तरीका इसलिए अपनाया गया क्योंकि जब इन समुदायों को लोगों का हिन्दू धर्म बदल कर मुस्लिम अथवा ईसाई हो जाता है तो वे इनके लिए आरक्षण के अधिकारों से वंचित हो जाते हैं। इस प्रकार वे रोज़मरा जीवन में आस्थावान ईसाई है लेकिन सरकारी रूप से वे हिंदूं ही है और आरक्षण का पूरा लाभ उठा रहे है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)