देश के दो महान शिल्पी नेहरू व पटेल

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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कांग्रेस एक लोकतांत्रिक संगठन रहा है। आजादी की लड़ाई में बड़े नेताओं में वैचारिक मतभेद रहे परन्तु मनभेद नहीं रहा। उनमें आपसी सद्भाव व विश्वास रहा। नेहरू व पटेल के बीच अनेक मुद्दों पर मतभेद हुआ। दोनों की सोच व कार्य प्रणाली में गहरा अन्तर होने के बावजूद मूलभूत मुद्दों, गांधी जी की अनिवार्यता तथा भारत की स्वतंत्रता की अपरिहार्यता पर दोनों एक मत थे।

जवाहर लाल नेहरू की पकड़ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर थी तो पटेल राष्ट्रवादी राजनीति के प्रमुख थे। सरदार पटेल निडर किसान नेता थे। उनको खेडा व बारदोली किसान आन्दोलन में सफलता तथा नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन के समर्थन ने गांधी का आजीवन सेवक व विश्वासपात्र बना दिया।

नेहरू की अन्तर्राष्ट्रीय छवि व सभी वर्गों के विष्वासपात्र होने के कारण गांधी जी की इच्छा के अनुरूप नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। सरदार के पास प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियों का बहुमत था परन्तु उन्होंने गांधीजी के निर्णय को बिना हिचकिचाहट स्वीकार किया। सरदार पटेल ने उनको अपना नेता कहा ओर दिलोदिमाग से नेहरू के साथ रहे। 1931 में नमक सत्याग्रह के बाद उन्हें नेहरू के उत्तराधिकारी के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने युवा कांग्रेसकर्मियों व नेताओं से अपील की ‘‘गांधी 63 वर्ष के हो गये और वे 56 वर्ष के हो गये, युवाओं से कहा ‘‘मरने से पहले हम स्वतंत्रता चाहते है, हम तुमसे ज्यादा जल्दी में है व भगतसिंह राजगुरू आदि क्रांतिकारियों की प्रशंसा की।’’

नेहरू, पटेल के बीच अनेक मामलों में वैचारिक मतभेद व दृष्टिकोण में अन्तर था। अनिवार्य मुद्दों पर उनमें अनेक बार मतभेद रहा। नेहरू सभी वर्गों, अल्पसंख्यकों व युवाओं के पक्षधर थे। समाजवादी विचारों के पक्षधर थे। उनकी अन्तर्राष्ट्रीय छबि व गांधी के भावनात्मक जुड़ाव से नेहरू को अहमियत मिली। किशोर मशरूवाला के अनुसार ‘‘गांधी व सरदार के बीच रिश्ते एक भाई की तरह व गांधी व नेहरू के रिश्ते को पिता-पुत्र की तरह के थे।’’ साम्यवादी नेता स्व. नम्बूदरीपाद के अनुसार ‘‘कांग्रेस के भीतर कार्य विभाजन था, नेहरू भीड को आकर्षित करते तथा उनका वोट सुरक्षित करते, सरदार पटेल चुनाव जीतने के बाद मंत्रियों पर नियंत्रण करते।’’

1940 में युद्ध की शुरूआत में गांधी, सरदार पटेल, नेहरू, राजाजी, सुभाष की विचारधारा में बदलाव आया। सुभाष, नेहरू सामुहिक अवज्ञा के पक्ष में थे। बल्लभ भाई व राजाजी ब्रिटिश सरकार के नया संविधान बनाने की प्रक्रिया संबंधी घोषणा से संतुष्ट थे। अहिंसा को धर्म बना चुके गांधी ने हिंसक युद्ध का समर्थन नहीं किया। सामुहिक अवज्ञा के संबंध में भी उनकी सोच थी कि हिन्दु मुस्लिम तनाव बढ़ सकता है। नेहरू की द्वितीय युद्ध के सम्बन्ध में शर्त थी कि युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटेन भारत को स्वतंत्र घोषित करें। 1942 में गांधी ने औपचारिक रूप से नेहरू को उत्तराधिकारी बना दिया। देष व पार्टी में पटेल का प्रभाव रहा, वहीं नेहरू का आकर्षण रहा।

राजाजी व डा. राजेन्द्र प्रसाद में से राष्ट्रपति चुनने के मुद्दे पर भी सरदार पटेल व नेहरू के बीच मतभेद पनपे। सरदार पटेल की इच्छानुरूप डा. राजेन्द्र प्रसाद लोकतांत्रिक भारत के पहले राष्ट्रपति बने। परन्तु पटेल ने नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल कराया व कलकत्ता में बैठकर साम्प्रदायिक दंगों को रोकने का पूरा प्रयास किया।

सरदार पटेल ने किसानों को कांग्रेस की ओर मोड़ा ओर नेहरू ने युवाओं और अल्पसंख्यकों को। नेहरू मानववादी थे और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखते थे। समाजवादी विचारों के थे जबकि सरदार पटेल ने समाजवादियों की खुले रूप से खिलाफत की। अन्तर्राष्ट्रीय संबंधी समझौतों के संबंध में भी उनमें मतभेद रहे। सरदार पटेल ने काफी कुशलता से राज्यों के एकीकरण किया। नेवी (जल सेना) व वायु सेना में उत्पन्न अशांति को काफी कुशलता से संभाला, आत्मसमर्पण कराकर अनुशासन स्थापित किया।

सरदार पटेल अखण्ड भारत के शिल्पी थे। हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर, यूनाइटेड स्टेट आफ काठियावाड, उड़ीसा के 40 राज्यों को भारत के साथ जोड़ने के साथ-साथ गांधी जी की इच्छानुसार जीर्ण शीर्ण सोमनाथ मंदिर का पुनरूद्धार कराया। कश्मीर व तिब्बत के परिप्रेक्ष्य में नेहरू से मतभेद रहे परन्तु पटेल ने सदैव जवाहर लाल नेहरू को सार्वजनिक रूप से अपना नेता बताया।

30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के कुछ समय पूर्व ही बल्लभ भाई और नेहरू के बीच विचार, मतभेदों के विषय में बल्लभ भाई के साथ गांधी जी की आंतरिक बातचीत हुई थी। महात्मा गांधी के सरदार को नेहरू के साथ मिलकर कार्य करने का निर्देष दिया। अल्पसंख्यकों के प्रति नेहरू के दयाभाव के कारण भी मतभेद रहे। परन्तु इन दोनों महापुरूषों ने देश सेवा, स्वतंत्रता व एकता को सर्वोपरी मानकर साथ नहीं छोड़ा। पटेल ने सम्मान के साथ अंत तक नेहरू का साथ निभाया व सार्वजनिक रूप से नेता माना।

पं. नेहरू ने लोकतंत्र व संसदीय प्रणाली की नींव रखी। अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में भारत को विशेष स्थान मिला। रविन्द्र नाथ ठाकुर ने कहा ‘‘राजनीतिक संघर्ष के क्षेत्र में जहां बहुधा छल और प्रवंचना चरित्र को विकृत कर देते है, शुद्ध आचरण के आदर्श का निर्माण किया। उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में जो दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।’’

आज अनेक दल, संस्थान व्यक्ति दोनों के मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर, मतभेद बताकर दोनों के बीच खाई होना बताते है। परन्तु वे लोग भूल जाते है, दोनोें महापुरूषों अनेक ऐसे गुण थे, ऐसी भावनात्मक एकता थी जिसने इस देष को खड़ा करने , आगे बढ़ने में अविस्मरणीय योगदान किया।  

जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल के स्वर्गवास के समय दिये अपने वक्तव्य में कहा यह एक बहुत बड़ी कहानी है, जिसे हम सब जानते है और सारा देश भी जानता है। इतिहास के अनेक पृष्ठों में लिखा जायेगा, ’’जहां उन्हें नये भारत का निर्माता तथा एकीकरणकर्ता बताकर उनके संबंध में अनेक बाते भी लिखी जायेगी।’’ स्वातंत्रय युद्ध की हमारी सेनाओं के एक महान सेनापति के रूप में हममें से अनेक व्यक्ति उन्हें संभवतया सदा स्मरण करते रहेंगे। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने संकटकाल में तथा विजय की वेला में सदा ही ठोस और उचित परामर्श दिया। वे एक ऐसे मित्र, सहयोगी तथा साथी थे जिनके उपर निर्विवाद रूप से शक्ति की ऐसी मीनार के रूप में भरोसा किया जा सकता था जिसने हमारे संकट के दिनों में हमारी दुविधा में पड़े हुए हृदयों को पुनः शक्ति प्रदान की।

कौमी जुनून पर सरदार पटेल ने पं. नेहरू से  कहा था कि मैं सरकार छोडकर जनता के बीच में जाना चाहता हॅू तब पं0 जवाहर लाल नेहरू ने कहा था -ना, सरदार ना। बापू गये अब  अकेले तुम बचे हो मेैं तुम्हें कैसे जाने दूॅ। मैं सोच भी नहीं सकता कि सरदार के बिना जवाहर रह सकता है। सरदार पटेल की आँखें छलछला आई थी और जवाहर भी अपने को नहीं सभाल पाये थे। सरदार पटेल ने मणि से कहा था -बापू ने जवाहर मेरे हवाले किया था वह बहुत प्यारा इंसान है, पाक है, इस देश के लिए बहुत कुछ करने की  तमन्ना रखता है। जवाहर मेरा छोटा भाई है। मैं जवाहर को अच्छी तरह जानता समझता हॅू। निहित स्वार्थ से जो लोग जवाहर लाल नेहरू व सरदार दोनो महापुरूषों को अपनी स्वार्थ भरी दृष्टि से देखते हैं वे देष के शुभ चिंतक नहीं हो सकते।

सरोजनी नायडू के शब्दों में ‘‘सरदार पटेल अपने सख्त और दीर्ध गंभीर बाह्य रूप के बावजूदएक लोहे के संदूक की तरह है जिसके अंदर संवेदना, मृदुता और समर्पण रूपी हीरे जवाहरात भरे है।’’ डा. राधाकृष्णन के शब्दों में ‘‘सरदार पटेल ने गांधी के मौलिक आदर्शो पर एक आज्ञांकित सिपाही की तरह काम किया। उन्होंने राष्ट्र हित में आज्ञापालन और अदम्य साहस का बहूमूल्य उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत किया।’’

16 जनवरी 1948 को सरदार बल्लभ भाई ने महात्मा गांधी को लिखा था, मैं बोझ के तले अत्यन्त थका हुआ अनुभव कर रहा हूॅ , मुझे यह प्रतीत होता है कि पद से जुड़े रहने से मैं देष की सेवा नहीं कर सकूगां। जवाहर लाल मेरे से अधिक बोझ उठा रहे है परन्तु वे अपना दुःख अपने अन्दर संचित कर रहे है, हो सकता है अपनी वृद्धावस्था के कारण मुझे उनके साथ रहते हुये भी उनके बोझ को कम करने में असमर्थ बना देती हैं।

पंडित नेहरू व सरदार पटेल की प्रभावशाली जोड़ी महात्मा गांधी के पीछे रहने वाली दो प्रबल शक्तियां थी जिन्होंने भारत निर्माण के स्वप्न को जीवन का उद्देश्य बनाया, जिन्होंने गांधीजी के भारत को आकार देने में सर्वाधिक योगदान दिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)