निशांत की रिपोर्ट
लखनऊ (यूपी) से
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पूरी मानवता के अस्तित्व के लिये खतरा बन रही ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के अधिक प्रभावी उपाय तलाशने के मकसद से ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित COP26 शिखर वार्ता में विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। इस सन्दर्भ में विशेषज्ञों का मानना है कि समयबद्धता, जवाबदेही और क्रियान्वयन को लेकर स्पष्टता की कमी के कारण इन मुद्दों से काफी भ्रम की विकट स्थिति पैदा हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि REDD+ (रेड्युसिंग एमिशन्स फ्रॉम डीफोरेस्टेशन एंड फारेस्ट डीग्रेडेशन) कार्बन फाइनेंस को लेकर व्याप्त अस्पष्टता और विभिन्न देशों में अपनी-अपनी भूमिका को लेकर भ्रम की स्थिति है। इसे फौरन दूर किया जाना चाहिये।
REDD+ एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित ढांचा है जिसका उद्देश्य वनों के विनाश को रोककर जलवायु परिवर्तन को रोकना है। REDD का अर्थ है "वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करना"; "+" का चिन्ह वनों के संरक्षण, सतत प्रबंधन और वन कार्बन स्टॉक में वृद्धि की भूमिका को दर्शाता है।
ग्रीनपीस इंटरनेशनल में वरिष्ठ राजनीतिक रणनीतिकार लुइजा कैसन ने एक वेबिनार में कहा, COP26 में पिछले 24 घंटों के दौरान हमने देखा कि विभिन्न मुद्दों और पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया है। आज सुबह आर्टिकल सिक्स नाम से एक नया दस्तावेज सामने आया है। आज भी हमारे सामने कई बड़े जोखिम खड़े हैं और और आर्टिकल सिक्स से हमें आगे का रास्ता मिल सकता है, मगर इसे लेकर भ्रम की स्थिति भी व्याप्त है।
उन्होंने कहा दुनिया के कई देश अब भी अपने यहां उत्सर्जन में कमी लाए जाने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा पा रहा है। उनके दावों की विश्वसनीयता को लेकर के भी कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता। आर्टिकल 6.4 में तो कई बातें स्पष्ट की गई हैं, मगर आर्टिकल 6.2 में अभी कई ऐसी बातें हैं जिनको लेकर बहुत सा भ्रम व्याप्त है।
लुइजा ने कहा कि यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के मामले में हमारी प्रगति स्थिर है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से बंद करना होगा और वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 50% तक की कटौती करनी होगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विध्वंस का यह दौर और आगे ना बढ़े तथा इसे रोकने के रास्ते कमजोर ना हों।
उन्होंने कहा कि ग्लास्गो में एकत्र हुए दुनिया के कई युवाओं, सिविल सोसाइटी सदस्यों और वैज्ञानिकों विश्व के तमाम नेताओं से आग्रह कर रहे हैं कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए हो रहे प्रयासों में व्याप्त कमियों को दूर किया जाए और ऐसी खामियां ना पैदा की जाएं जिससे पेरिस समझौते की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हों। क्योंकि ऐसा होने से स्थिति बदतर हो जाएगी।
कार्बन मार्केट वॉच के पॉलिसी अफसर जिल्स दुफ्रासने ने आर्टिकल 6 में शामिल REDD+ क्रेडिट को लेकर व्याप्त अस्पष्टता और जवाबदेही की कमी की स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि आर्टिकल 6 में ‘REDD+ क्रेडिट’ को शामिल किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण और पेचीदा मुद्दा है। REDD+ क्रेडिट उपेक्षित किए गए डिफॉरेस्टेशन से संबंधित है। इसके जरिए देशों को डिफॉरेस्टेशन कम करने के लिए धन दिया जाएगा। समस्या यह है कि डिफॉरेस्टेशन को मापना मुश्किल है और ऐसे अनेक क्रेडिट यह साबित नहीं करते कि उनसे पर्यावरण को फायदा हो रहा है। जीवाश्म ईंधन को जलाए जाने की भरपाई के लिए उपेक्षित डीफॉरेस्टेशन परियोजनाओं पर REDD+ क्रेडिट को खर्च करना समझदारी भरा कदम नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि प्रदूषण का सम्पूर्ण न्यूनीकरण दरअसल वैश्विक उत्सर्जन का मुद्दा है। ऐसे में सिर्फ उत्सर्जन की भरपाई करना पर्याप्त नहीं होगा। इसे प्रभावी रूप से लागू करने के लिए हमें क्रेडिट को निरस्त करने का रास्ता भी खुला रखना होगा। यानी अगर कोई परियोजना अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पा रही है तो उसके वित्तपोषण को रद्द करना होगा। आर्टिकल 6.2 और 6.4 के लिए COP26 में अभी तक कोई भी समझौता नहीं हुआ है।
जिल्स ने कहा कि जहां तक मानवाधिकार के मामले का सवाल है तो COP26 के दस्तावेजों में मानवाधिकार से संबंधित जो भी बातें कही गई हैं वे वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते के प्राक्कथन से ‘कॉपी-पेस्ट’ की गई हैं। एक बात को रेखांकित किया जाना चाहिए कि बाजार को भी मानवाधिकारों का सम्मान करना होगा। कॉपी-पेस्ट करने से स्थितियां आगे नहीं बढ़ेंगी। ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिन परियोजनाओं की वजह से लोगों पर बुरा प्रभाव पाए उन्हें कार्बन क्रेडिट के लाभार्थियों की सूची से हटाया जा सके।
पब्लिक इंट्रेस्ट मैनेजमेंट की साझीदार एना टोनी ने कहा कि इस बात को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है कि COP26 में सामने आए मुद्दों के क्या प्रभाव होंगे। मुझे लगता है कि यह एक हथकण्डा है ताकि वातावरण में भ्रम की स्थिति बनी रहे। यह एक नया बाजार है और कोई भी नहीं जानता कि कि उसकी भूमिका क्या है। मेरा मानना है कि हमारी भूमिका ऐसी होनी चाहिए कि हम खामियों को पहचान सके और उनका निवारण कराने की कोशिश करें। कई ऐसे कदमों की बात की गई है जिनके बारे में अभी यह नहीं पता है कि उन्हें जमीन पर कैसे उतारा जाएगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)