लखनऊ (यूपी) से
(लेखक एक पत्रकार और विज्ञान एवं जलवायु जनसंचार पेशेवर हैं जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को हिंदी भाषा की मुख्यधारा में लाने को प्रयासरत हैं)
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वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का स्तर कोविड-पूर्व के स्तरों के नज़दीक पहुंच चुका है, यह कहना है ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा जारी कार्बन बजट के आंकड़ों के मुताबिक।
वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान जीवाश्म ईंधन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में 5.4% की गिरावट आई थी लेकिन नई रिपोर्ट में लगाए गए अनुमान के मुताबिक इस साल इसमें 4.9 फीसद की वृद्धि हुई है और इस तरह से यह अब कुल 36.4 बिलियन टन हो गया है। वर्ष 2021 में कोयले और गैस के इस्तमाल में और वृद्धि होने जा रही है जबकि तेल का प्रयोग वर्ष 2019 के स्तर से नीचे बना हुआ है।
प्रमुख उत्सर्जकों के लिए वर्ष 2021 में उत्सर्जन का हाल कोविड-पूर्व के रुख की तरफ लौटता हुआ दिख रहा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी और भारत में इस उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है। चीन में कोविड महामारी की प्रतिक्रियास्वरूप कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में और वृद्धि को बढ़ावा दिया गया। इसे बिजली और उद्योग क्षेत्रों की तरफ से खासतौर पर तेजी मिली।
रिसर्च टीम में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (यूईए), सिसेरो और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सड़क परिवहन और हवाई यातायात कोविड-19 महामारी से पूर्व वाली स्थिति में लौटे और कोयले का इस्तेमाल इसी तरह स्थिर रहा तो प्रदूषण के महामारी से पहले की स्थिति में लौटने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
इस अध्ययन के नतीजे ऐसे समय पर आये हैं जब ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 में दुनिया के विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के लिये भविष्य की रणनीति बनाने मुद्दे पर व्यापक सहमति के निर्माण के मकसद से गहन विचार-मंथन कर रहे हैं।
इस अध्ययन के नेतृत्वकर्ता और एक्सेटर के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर पियरे फ्रीडलिंगस्टीन ने कहा कोविड-19 महामारी जनित नुकसान की भरपाई के लिये अर्थव्यवस्थाओं को फिर से खड़ा करने की कवायद से कार्बन उत्सर्जन में फिर से तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। इसे रोकने के लिये वैश्विक स्तर पर फौरन कदम उठाने की जरूरत है।
वर्ष 2021 में वैश्विक जीवाश्म कार्बन उत्सर्जन में पलटाव पूर्व-कोविड जीवाश्म-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर वापसी को दर्शाता है। कुछ देशों की कोविड के बाद की भरपाई योजनाओं के तहत पूर्व-कोविड उत्सर्जन के करीब वापसी से बचने के लिये हरित अर्थव्यवस्था में निवेश अब तक अपने आप में अपर्याप्त रहा है।
यूईए के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल साइंसेज में रॉयल सोसाइटी रिसर्च की प्रोफेसर कोरिन ले क्वेरे ने इस साल के विश्लेषण में योगदान दिया है। उन्होंने कहा “कार्बन डाई ऑक्साइड के वैश्विक उत्सर्जन पर कोविड से संबंधित व्यवधानों के पूर्ण प्रभाव नजर आने में अभी कुछ समय लगेगा। वर्ष 2015 में पेरिस समझौते को अपनाए जाने के बाद से वैश्विक ऊर्जा को डीकार्बनाइज़ करने के काम में बहुत प्रगति हुई है। साथ ही अक्षय ऊर्जा एकमात्र स्रोत है जो महामारी के दौरान भी वृद्धि करता रहा। नए निवेश और मजबूत जलवायु नीति को अब हरित अर्थव्यवस्था को अधिक व्यवस्थित रूप से समर्थन देने और जीवाश्म ईंधन को समीकरण से बाहर करने की जरूरत है।”
16वीं वार्षिक ग्लोबल कार्बन बजट’ रिपोर्ट में प्रमुख प्रदूषणकारी देशों के बारे में निम्नांकित विश्लेषण (इन आंकड़ों में अंतर्राष्ट्रीय परिवहन, खासतौर से विमानन सम्बन्धी आंकड़े शामिल नहीं किये गये हैं) प्रस्तुत किया गया है:
● चीन : वर्ष 2020 के मुकाबले उत्सर्जन में 4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान, यह वर्ष 2019 के स्तर की अपेक्षा 5.5 प्रतिशत अधिक हो गया है। कुल 11.1 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड, वैश्विक उत्सर्जन का 31 प्रतिशत।
● अमेरिका : वर्ष 2020 के मुकाबले उत्सर्जन में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान, यह वर्ष 2019 के स्तर की अपेक्षा 3.7 प्रतिशत कम हो गया है। कुल 5.1 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड, वैश्विक उत्सर्जन का 14 प्रतिशत।
● ईयू27 : वर्ष 2020 के मुकाबले उत्सर्जन में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान, यह वर्ष 2019 के स्तर की अपेक्षा 4.2 प्रतिशत अधिक हो गया है। कुल 2.8 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड, वैश्विक उत्सर्जन का 7 प्रतिशत।
● भारत : वर्ष 2020 के मुकाबले उत्सर्जन में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान, यह वर्ष 2019 के स्तर की अपेक्षा 4.4 प्रतिशत अधिक हो गया है। कुल 2.7 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड, वैश्विक उत्सर्जन का 7 प्रतिशत।
दुनिया के बाकी देशों को एक सम्पूर्ण इकाई के तौर पर लिया गया है और इनमें जीवाश्म ईंधन के कारण उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर वर्ष 2019 के स्तरों के मुकाबले नीचे बना हुआ है।
पिछले एक दशक में, भूमि-उपयोग परिवर्तन से वैश्विक शुद्ध कार्बन उत्सर्जन 4.1 बिलियन टन था। इसके अलावा वनों की कटान और अन्य भूमि-उपयोग परिवर्तनों से से 14.1 बिलियन टन सीओ2 उत्सर्जित हुई थी। वहीं वनों के पुनर्विकास और मिट्टी को हुए नुकसान की भरपाई के जरिये 9.9 बिलियन टन कार्बन समाप्त हो गया था। पिछले दो दशकों के दौरान वनों और मिट्टी से प्रदूषणकारी तत्वों के अवशोषण में वृद्धि हुई है, जबकि वनों की कटाई और अन्य भूमि-उपयोग परिवर्तनों से हुआ उत्सर्जन अपेक्षाकृत स्थिर रहा है, जो भूमि-उपयोग परिवर्तन से शुद्ध उत्सर्जन में हालिया गिरावट का इशारा देता है। हालांकि इसके साथ एक बड़ी अनिश्चितता भी जुड़ी है।
जब जीवाश्म स्रोतों से कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन और शुद्ध भूमि-उपयोग परिवर्तन को मिलाकर देखते हैं, तो पिछले दशक में कुल उत्सर्जन अपेक्षाकृत स्थिर रहा है। इस दौरान यह औसतन 39.7 बिलियन टन रहा।
निष्कर्षों के आधार पर, वायुमंडलीय सीओ2 की सांद्रता 2021 में 2.0 पीपीएम से बढ़कर 415 पीपीएम तक पहुंचने का अनुमान है, जो कि 2021 में ला नीना की स्थिति के कारण हाल के वर्षों की तुलना में कम है।
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस, 1.7 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का 50% मौका पाने के लिए, शोधकर्ताओं का अनुमान है कि शेष "कार्बन बजट" अब क्रमशः 420 अरब टन, 770 अरब टन और 1,270 अरब टन तक कम हो गया है - यह 2022 की शुरुआत से 11, 20 और 32 साल तक के समकक्ष है।
फ्रीडलिंगस्टीन ने कहा, 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुँचने पर वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में हर साल औसतन 1.4 बिलियन टन की कटौती करनी होगी।
वर्ष 2020 में उत्सर्जन में 1.9 बिलियन टन की गिरावट आई इसलिए 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमें हर साल उत्सर्जन में कोविड के दौरान देखी गई गिरावट के बराबर कटौती करनी होगी। यह कार्रवाई के उस पैमाने पर प्रकाश डालता है जो अब आवश्यक है, ठीक उसी तरह जैसे कि सीओपी26 की चर्चाओं का महत्व है।
वैश्विक कार्बन बजट का वार्षिक अपडेट पूरी तरह से पारदर्शी तरीके से स्थापित कार्यप्रणाली पर आधारित है। वर्ष 2021 का संस्करण प्रीप्रिंट के रूप में प्रकाशित हुआ है और अर्थ सिस्टम साइंस डेटा जर्नल में एक खुली समीक्षा के दौर से गुजर रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)