रात को जब सोने लगे तो गरमी थी सो पंखा फुल पर चला लिया था। ओढ़ने के लिए चद्दर लेने का तो प्रश्न ही कहाँ उठता। पता नहीं कब दो छींटे पड़ गए कि मौसम ठीक हो गया। नींद में पंखा बंद नहीं कर पाए। सुबह उठे तो कुछ अकड़न सी अनुभव हुई। कुछ हरारत सी भी। ऐसे में सुबह बरामदे में बैठना टाल दिया। तोताराम अन्दर ही आ गया।
हमने कहा-तोताराम, कुछ हरारत सी लग रही है।
बोला- तुम लोगों को कुछ बर्दाश्त थोड़े ही होता है।
हमने कहा- तुम ठीक कहते हो, सच में अब बर्दाश्त कम ही होता है। ज़रा सी गरमी में गरमी और ज़रा सी ठण्ड हो तो स्वेटर पहनने का मन होने लगता है। वास्तव में बुढ़ापा सब तरह से तुनक मिजाज़ होता है।
बोला- मुझे तो पहले से ही पता था कि यह होने वाला है।
हमने कहा- तू तो अन्तर्यामी हो गया। हमें खुद को पता नहीं चला कि सुबह बुखार होगी और तुझे घर पर बैठे ही पता चल गया।
बोल- कल रिकार्ड टीके लगे थे तो यह तो होना ही था।
हमने कहा- हमने तो दूसरा टीका जुलाई में ही लगवा लिया था। उसका बुखार क्या अब अढाई महिने बाद होता ?
बोला- यह तेरे जुलाई वाले टीके का बुखार नहीं है. यह तो 17 सितम्बर को मोदी जी के जन्म दिन पर एक दिन में टीकों का विश्व रिकार्ड बनने पर एक दल को होने वाली जलन का परिणाम है। मोदी जी ने 18 सितंबर को डॉक्टर्स, हेल्थकेयर वर्कर्स और कोविड वैक्सीन के लाभार्थियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा बातचीत करते हुए यह स्पष्ट कर दिया था।
हमने कहा- हमारी तरफ से तो मोदी जी रोज कोई न कोई रिकार्ड बनाएं. हमें क्या परेशानी है। हम तो उनके कम्पीटीशन में हैं नहीं। हमें तो तीन बातें कहनी हैं- पहली यह कि हमेशा सामान्य गति से काम करें। निरंतरता बनाए रखें.देश के विकास की दौड़ सौ मीटर की रेस नहीं है। यह मैराथन है जिसमें धैर्य वाला ही रेस पूरी कर पाता है। यह नहीं कि एक दिन छप्पन भोग और फिर चार दिन उपवास। इससे पेट, पाचन और फिटनेस सब पर दुष्प्रभाव पड़ता है। दूसरी इतने बड़े पद पर पहुंचकर हर शब्द और हर मौके पर विपक्षियों पर व्यंग्य करना शोभा नहीं देता। कभी तो सहज भाव से, शांत चित्त से भगवान की कृपा का आनंद लें और उसका शुक्रिया अदा करें।
एक दिन में पता नहीं चलता लेकिन दीर्घ काल में घृणा व्यक्ति को कुंठित कर देती है।
और तीसरी बात, उन्होंने यह भी कहा ‘न मैं वैज्ञानिक हूं और न डॉक्टर हूं, लेकिन सुना है कि वैक्सीन लेने वाले कुछ लोगों में रिएक्शन होता है, बुखार आता है, बहुत ज्यादा बुखार चढ़ जाए तो मानसिक संतुलन भी चला जाता है। लेकिन ये मैं पहली बार सुन रहा हूं कि जिन 2.5 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगा उनके अलावा एक राजनीतिक पार्टी को भी रिएक्शन हुआ है। उन्हें बुखार चढ़ गया है, इसका कोई लॉजिक हो सकता है क्या?’
हम मोदी जी जितनी लोजिक तो नहीं जानते लेकिन इतना जानते हैं कि जब विज्ञान का ज्ञान न हो तो प्लास्टिक सर्जरी, डिजिटल कैमरा, राडार और मंगल यान में टांग क्यों अड़ाना।
जीवन अतियों से नहीं बल्कि दो अतियों के बीच माध्यम मार्ग अपनाने से चलता है। युद्ध के साथ बुद्ध का काफ़िया मिलाना और बात है और बुद्ध के सम्यक सत्यों को अपनाना और बात। (लेखक का अपना अध्ययन एवं व्यंगात्मक विचार हैं)
लेखक : रमेश जोशी
(वरिष्ठ व्यंग लेखक, साहित्यकार)
सीकर (राजस्थान)
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.