(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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संसद के मानसून स्तर में एक बहुत बड़ा और अति महत्वपूर्ण 127 वां और संविधान संशोधन विधेयक पारित किया गया था। इसका उद्देश्य राज्य सरकारों कोजाति आधारित जन गणना का अधिकार दिया गया था अब राज्य सरकारे अपनी इच्छा से किसी भी पिछड़ी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग के सूची में शामिल कर सकती हैं। संविधान संशोधन से पूर्व यह अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास था। लगभग तीन दशक पहले वी.पी. सिंह की गैर कांग्रेस सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया था जिसके अंतर्गत अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल गया था। मंडल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था की देश में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों की आबादी कुल आबादी का 52 प्रतिशत है। उस समय अनुसूचित और तथा अनुसूचित जन जातियों को कुल 23 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ। चूँकि संविधान के प्रावधानों के अनुसार आरक्षण अधिकतम 50 प्रतिशत तक ही हो सकता है इसलिए संख्या अधिक होने के बावजूद अन्य पिछड़ा वर्ग के जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण ही मिल सका। इसके बाद कई राजनीतिक दलों द्वारा यह मांग की गयी कि आरक्षण की अधिकतम सीम को बढ़ाया जाये। तब यह मांग भी उठी थी कि अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों की सूची बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को मिलना चाहिए।
ज्यों ही संसद ने 127 संविधान संशोधन विधेयक पारित किया गया विपक्षी दलों ने दो मांगे उठायीं। एक केंद्र को जाति आधारित जन गणना करवानी चाहिए ताकि इस बात का सही आंकलन हो सके की देश में किस जाति के कितनी जन संख्या है। दूसरी मांग थी कि आरक्षण की अधिकतम सीमा कोबिना विलम्ब के बढाया जाए। केंद्र सरकार को इस बारे में जल्दी से जल्दी संविधान में सशोधन करना चाहिए।
देश में कर्नाटक पहला राज्य था जहाँ 2015 में, जब वहां सिद्धारामिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी, जाति आधारित जनगणना करवाई थी। उस समय सरकार ने जाति आधारित जन गणना को सामाजिक, आर्थिक सर्वेक्षण का नाम दिया गया था तथा इस काम के लिए बाकायदा एक आयोग का गठन किया गया था। बताया जाता है कि सिद्धारामिया ने यह जन गणना इसलिए करवाई ताकि 2018 के विधान सभा में उनकी पार्टी अपनी चुनावी रणनीति जातीय समीकरणों के हिसाब से तैयार कर सके। देश में आखरी जातीय आधारित जनगणना 1931हुई थी। इसके बाद जब भी किसी जातीय समूह की संख्या का आंकलन किया गया वह इस जन गणना के आंकड़ो पर ही आधारित था। हर जाति के अपने जातीय समूह के संख्या को लेकर बड़े बड़े दावे करते हैं लेकिन ये वास्तव में एक अंदाजा ही होता है क्योंकि सही संख्या का अनुमान जातीय जन गणना के आधार पर ही हो सकता है।
कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिंगा दो ऐसे जातीय समुदाय है जो अपने आपको को राज्य का सबसे बड़ा जातीय समूह बताने का दावा करते है। दोनों समुदाय राज्य की कुल 6 करोड़ आबादी का 16-16 प्रतिशत होने केदावा करते रहे हैं। राजनीतिक दल में भी इसी आधार पर उम्मीदवार खड़े करने की मांग होती थी। इसी के चलते राज्य की विधान सभा में, जिसकी बल संख्या 224 है, सभी दलों को मिलाकर कम से कम 100 सदस्य इन दोनों समुदायों के ही होते आये हैं। अन्य जातियों के नेताओं की यह शिकायत रहती थी कि इन दोनों दोनों समुदायों को उनकी आबादी के तुलना में बहुत अधित सीटें मिलती है।इन सबको देखते हुए सिद्धारामिया ने जाति आधारित जानगणना करवाई। आयोग ने अपने रिपोर्ट विधान सभा चुनावों के कुछ महीने पहले दे दी। लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट के आंकड़ों को जारी नहीं किये और न ही इस रिपोर्ट को औपचारिक रूप से स्वीकार किया।
कारण यह था की इस रिपोर्ट के आंकड़ों ने जातियों के संख्या बल के कई भ्रमों को तोड़ दिया था। मसलन रिपोर्ट कहा गया है कि राज्य में अनुसूचित जातियों के जन संख्या लगभग 20 प्रतिशत हैयह राज्य के सबे बड़ा जातीय समूह है। आम तौर पर संख्या 14 से 16 प्रतिशत मानी जाती थी। इसी प्रकार यह माना जाता था कि राज्य में मुस्लिम आबादी 9 प्रतिशत है जब किस आयोग ने इसे 16 प्रतिशत बताया है। सबसे बाद झटका लिंगायत औरवोक्कालिंग समुदाय के लोगों को लगा जब रिपोर्ट में कहा गया की वे मात्र 14 और 11 प्रतिशत है कांग्रेस के केद्रीय नेताओ ने अपनी पार्टी की राज्य सरकार को कहा कि इस रिपोर्ट को जारी नहीं किया जाये क्योंकि उनको भय था इसके चलते पार्टी को विधान सभा चुनावों में नुकसान हो सकता था।
इसे बाद राज्य में बनी कांग्रेस और जनता दल (स) की मिली जुली सरकार ने भी इस रिपोर्ट को दबाये रखा। उस समय बीजेपी इस रिपोर्ट को जारी करने की मांग कर रही थी। 2019 सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने भी इस रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं की। सभी सरकारों ने यह जारी न करने तर्क दिया राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग रिपोर्ट का मूल्यांकन कर रहा है लेकिन पिछले तीन साल में मूल्याकन नहीं हो पाया। लगता है अब यह रिपोर्ट ठन्डे बस्ते में ही पडी रहेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)