अनूठा सौंदर्य प्रकृति का
लेखिका : रश्मि अग्रवाल

नजीबाबाद, 9837028700

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प्रकृति का विराट रूप, लेकिन आधुनिक मानव कृत्रिम सुख की चाह में प्राकृतिक स्रोत को झुठलाता, प्रकृति पर शासन कर, उसके सुखद एहसास से वंचित जैसे- नीला आकाश, टिमटिमाते तारे, लाल-नारंगी सूर्यास्त, हरे-भरे पहाड़, कल-कल करते झरने, बहती हवाएँ, जीवंत पुष्प जैसे- प्राकृतिक आशीर्वाद से विमुख होता जा रहा है। जबकि प्रकृति के बदलाव की शक्ति जो मानव के तन-मन को संतुलित करती, उसे स्वस्थ जीवन का उपहार देती और कवि के उद्गारों को बड़ा खजाना क्योंकि प्रकृति देना जानती लेना नहीं।

वहीं मानव भूख लगने पर दूसरों का निवाला छीन लेता, सुगंधित कलियों को मसल देता, वृक्षों के सीने पर वार कर जख़्म देता और बड़े शान से दो-चार पेड़ लगाकर, खुद को प्रकृति का मालिक समझ लेता, जबकि बारिश की बूदों का एहसास हो तो वो कह रहीं कि कितनी भी ऊपर उठ जाओ आना धरा पर ही है। तात्पर्य है कि मानव को प्रकृति के अनुसार होना चाहिए न कि प्रकृति को मानव के अनुसार।