नेहरू जी और मोदी जी के बीच
लेखक, प्रसिद्ध व्यंगकार 

सीकर (राजस्थान)

प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.

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जैसे ही तोताराम आया, हमने उसके सामने पहेलीनुमा एक प्रश्न फेंकते हुए पूछा-  नेहरू और मोदी के बीच ? 

बोला- यह भी कोई प्रश्न है ?

हमने कहा- जिसे उत्तर मालूम नहीं होता या जो कुछ छुपाना चाहता है वह उत्तर देने की बजाय प्रश्न को ही चेलेंज करता है जैसे संसद में सरकार। कृषि कानूनों को अच्छा बताती है लेकिन किसानों की बात नहीं सुनना चाहती. यह नहीं बताना चाहती कि पेगासस ख़रीदा या नहीं। बस, यही रट लगाए है कि यह कोई मुद्दा ही नहीं है। 

बोला- लेकिन तेरे प्रश्न का तो कोई सिर पैर ही नहीं है। अब क्या बताऊँ ? नेहरू और मोदी जी के बीच समानता या असमानता बताऊँ। 1964 से 2014 के बीच क्या-क्या हुआ यह बताऊँ। 

तुझे पता है, पहेली साहित्य और मनोरंजन की एक विधा है जो अधूरी बात कहकर धोखे और सन्देश का जाल रचती है। बहुत से लेखक, नेता और दार्शनिक इसी चक्कर में लोगों को को फँसाकर अपना काम कर जाते हैं।  

इसके लिए हम भारतीय राजनीति से उदाहरण ले सकते हैं जैसे गाँधी जी कहते थे- यदि मैं भारत का डिक्टेटर बन जाऊं तो पहले ही दिन देश में शराब बंद कर दूँ। अब कैसे तय करें कि उनकी बात में दम था या नहीं। आस्था, गर्व और अहंकार की शराब का धंधा करने वालों ने छह महिने के भीतर ही निबटा दिया। हालाँकि गाँधी की जन्मभूमि के अभिमान का मज़ा लेने वाले गुजरात ने कागजों पर शराबबंदी कर तो दी लेकिन उसकी असलियत हमने 1971 से 1977 तक भली भांति देखी है। नेहरू जी ने कहा था कि जब तक एक भी आँख में आँसू है तब तक हमारी स्वतंत्रता अधूरी है। आज भी हमने बड़े-बड़े लोगों को रोते देखा है इसलिए इस हिसाब से उनकी स्वतंत्रता अधूरी और असफल ही रही। इसके बाद इंदिरा गाँधी को देखें। 'गरीबी हटाओ' का नारा  दिया लेकिन गरीबी है कि आजतक शान से कायम है। 

हमने कहा- लेकिन अब गरीबी कौन सी कम हो गई। बल्कि जीवन का हैप्पीनेस इंडेक्स गिरा है और गरीबों की संख्या बढ़ी है। बढ़ी भी इतनी कि हमारी हैसियत इतनी भी नहीं रही कि मुर्दों को जला भी सकें। गंगा में तिरते शव क्या कहते हैं। लेकिन तूने हमारे मूल प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।  

बोला- वैसे तो हम उत्तर देने में विश्वास नहीं करते। हम तो उत्तर देने की बजाय प्रश्न पूछने वाले से ही प्रश्न करते हैं। जैसे कि 'अच्छे दिन', '15 लाख' की बात करने वाले से पूछते हैं-  जब देश का विभाजन हुआ तब तू क्या कर रहा था ?  

वैसे तेरे इस प्रश्न के दो प्रकार के उत्तर हो सकते हैं। पहला तो यह कि नेहरू जी और मोदी जी में 50 वर्ष का अंतर है। नेहरू जी को गंगा ने बुलाया नहीं बल्कि वे संयोग से गंगा के किनारे 'इलाहाबाद' में पैदा हुए। वे ऐसे मुस्लिम परस्त थे कि यदि उस समय किसी देशभक्त ने 'इलाहाबाद' का नाम 'प्रयागराज' कर दिया होता तो वे 'जाफराबाद' में पैदा हुए होते। उनके निधन के 50 साल बाद गंगा और उत्तर प्रदेश सहित समस्त देश का उद्धार करने के लिए गंगा के निमंत्रण पर मोदी जी बनारस पधारे। नरेन्द्र और नेहरू दोनों में अनुप्रास भी है। 

हमने पूछा -और दूसरा उत्तर ?

बोला- दूसरा यह कि नेहरू जी ने 17 साल तक देश की अर्थव्यवस्था और एकता का सत्यानाश किया। उसके बाद उनकी पार्टी ने इस काम को जारी रखा। 

हमने कहा- देश अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ, परमाणु शक्ति बना, मंगलयान तैयार किया वह ?

बोला- मुझे ज्यादा तो नहीं मालूम लेकिन नेहरू जी ने हॉकी टीम को कभी आत्मनिर्भर नहीं बनने दिया। उनके जाने के बाद उनके परिवार वालों ने इस काम को आगे बढ़ाया और हालत यह हो गई कि पिछले 49 साल में भारतीय हॉकी टीम कोई मैडल नहीं ला सकी। कई बार तो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर सकी। लेकिन अब ओलम्पिक खेलों का उद्घाटन समारोह देखते हुए मोदी जी ने ऐसी तालियाँ बजाईं कि टीम  सेमीफाइनल में पहुंच गई। इंटरेस्ट लेने की बात है मास्टर।  

हमने कहा- शायद आज भारत का मैच बेल्जियम से हैं। देखें क्या हुआ ?

जैसे ही नेट खोला तो पता चला कि भारत बेल्जियम से5-2 से हार चुका था। 

बोला- अभी कांस्य पदक का चांस बाकी है. और 49 साल के खराबे को 7 साल में इतना ठीक कर दिया, यह क्या कम है। काम की गति में 700% की वृद्धि.