कावेरी नदी जल विवाद
लेखक : लोकपाल सेठी
(लेखक, पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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दक्षिण की गंगा कही जाने नदी कावेरी के जल की हिस्सेदारी पर विवाद सौ साल से भी अधिक पुराना है। उस वक्त वर्तमान तमिलनाडु मद्रास रेजीडेंसी और कर्नाटक मैसूर रियासत थी। ब्रिटिश सरकार के प्रयास से 1924 में दोनों पक्षों में समझौता तो हो गया लेकिन किसी भी पक्ष ने इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया। केंद्रीय सरकार ने 1990 में एक कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया ताकि तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच इस नदी के जल के हिस्सेदारी पर 1882 से चला आ रहा है विवाद सदा के लिए समाप्त हो जाये। लम्बी सुनवाई के बाद 2007 में ट्रिब्यूनल का आया फैसला भी दोनों पक्षों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं था। इसे सर्वोच्च न्यायलय चुनौती दी गई, न्यायालय ने कुछ ट्रिब्यूनल के फैसले में बदलाव कर केंद्र से इसे लागू करने को कहा। फैसले के कई भागों को दोनों से अभी भी पालन नहीं किया गया। पिछले महीने कर्नाटक सरकार द्वारा इस नदी के एक स्थान अरकावती के पास इस नदी पर एक बांध बनाने के निर्णय को लेकर दोनों राज्य एक बार फिर आमने सामने आ गए हैं।
तमिलनाडु का कहना है कर्नाटक दवारा यहाँ बांध बनाने से तमिलनाडु के किसानों की खेती के लिए जल आपूर्ति प्रभावित होगी। उसका कहना है कि यह बाँध बनाना इस नदी के जल विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा द्वारा दिए गए आदेश का उलंघन है।
पिछले दिनों कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के. स्टालिन को लिखे पत्र में कहा कि उनकी सरकार को कर्नाटक की इस परियोजना का विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे तमिलनाडु के हिस्से की जल आपूर्ति किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं होगी। उनका कहना है कि तमिलनाडु सरकार इस नदी पर दो पन विद्युत योजनाओं का निर्माण कर खुद इस नदी जल समझौते का उल्लंघन कर चुकी है। येद्दियुरप्पा ने पत्र में स्टालिन से मिलने का समय तय करने का अनुरोध किया था ताकि बातचीत से इस विवाद का हल ढूँढा जा सके। लेकिन स्टालिन ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। उनका कहना है पहले कर्नाटक सरकार तमिलनाडु को उनके हिस्से का जल देने को पुख्ता करे तभी मिल बैठ कर सभी मुद्दों पर बातचीत की जा सकती है।
2018 में जब राज्य में जनता दल (स) और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार बनी थी तब इसके मुख्यमंत्री के रूप में एच.डी. कुमारस्वामी ने इस नदी पर मेकेदाटू बांध बनाने की घोषणा की थी। यह उस वक्त हुआ जब सर्वोच्च न्यायलय ने यह फैसला दिया था की कर्नाटका सरकार नदी ने अपने हिस्से और इलाके में पेयजल और विद्युत् योजनाये आरम्भ कर सकती है। लेकिन उनकी सरकार का एक साल में ही पतन हो जाने से मामला आगे नहीं बढा। राज्य सरकार ने केंद्र तथा अन्य पर्यावरण एजेंसियों से सभी तरह की क्लीयरेंस लेने के बाद इस लगभग 9000 करोड़ कीयोजना के निर्माण की घोषणा पिछले महीने की। इसके अनुसार मेकेदाटू बांध में लगभग 67 एमटीसी पानी स्टोर किया जायेगा। यह तब किया जायेंगा जब नदी के बेसिन में वर्षा से अधिक पानी आयेगा। इस बांध से400 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। बंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर इस बांध से बंगलुरु शहर के लिए पेयजल लाया जायेंगा ताकि राज्य की राजधानी में कभी भी पेयजल का संकट पैदा नहीं हो।
राज्य सरकार तमिलनाडु को बार बार आश्वस्त कर चुकी है की बांध में कावेरी नदी बेसिन में वर्षा से आने वाले अतिरिक्त पानी ही स्टोर किया जायेगा। यह इस बात को पुख्ता करने के लिए किया जा रहा है ताकि तमिलनाडु के जल हिस्से की आपूर्ति किसी भी तरह से प्रभावित न हो।
तमिलनाडु का कहना है कावेरी नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जल बंटवारे के अनुसार कर्नाटक को कुल 419 टीएमसी पानी इस नदी से उसे दिया जाना था। लेकिन कर्नाटक सरकार ने नदी के बेसिन क्षेत्र में कम वर्षा से अधिक पानी नहीं आने का बहाना बना कर उसके हिस्से के जल की आपूर्ति कभी भी नहीं की। उनका यह भी कहना है की पानी के सही बंटवारे को पुख्ता करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय केजल निर्णय के अनुसार गठित किये गए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के आदेशों की भी कर्नाटक सरकार बार बार उल्लंघन कर रही है।
इसी बीच मेकेदाटू परियोजना को रोकने के लिए तमिलनाडु की द्रमुक सरकार केंद्र पर दवाब बना रही है। पिछले दिनों इसके कई मंत्रियो ने दिल्ली जाकर संबंधित केंद्रिय मत्रियों और अधिकारियो से भेंट कर तमिलनाडु का पक्ष रखा। तमिलनाडु को भय है कि दिल्ली में अपनी पार्टी की सरकार होने का पूरा लाभ येद्दियुरप्पा उठाने कोशिश में हैं। वे सभी निर्णयों और नियमों से परे जाकर इस परियोजना को लागू करने में लगे है। तमिलनाडु सरकार ऐसा कोई काम नहीं होने देगी जिससे राज्य के किसानों के हित प्रभावित हों। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)