मास्क को हम जीवन शैली में शामिल कर लें, तो बुराई क्या है?

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ये पंक्तियां लिखे जाने तक कोविड 19 के संक्रमितों की संख्या में एकदम उछाल आकर यह आंकड़ा प्रतदिन 43000 से ज़्यादा हो गया है। इनमें से 22000 के लगभग केस तो केरल में हैं, जहाँ केन्द्र सरकार ने विशेष निगरानी दल भेजा है। कानपुर जैसे शहरों से ढाई महीने पहले तक श्मशान घाटों, और कब्रस्तानों के कम पड़ने की खबरें आ रही थीं। बाद में संक्रमण शून्य के आसपास आ गया, लेकिन अब फिर उक्त आँकड़ा प्रतिदिन 70 से 80 तक आ गया है। मतलब है कि कोरोना की अंतिम विदाई की स्थिति बनने के जरा से भी अवसर नज़र नहीं आते। उधर, नीति आयोग ने सतर्क कर दिया है कि तीसरी लहर सितम्बर या अक्टूबर तक आ जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सनद रहे कि उक्त महामारी की पहला प्रकरण केरल में ही दर्ज किया गया था। फिर, दूसरी लहर भी उक्त दक्षिण के राज्य से ही शुरू हुई थी, जबकि इस सूबे में शिक्षा का प्रतिशत 99 तक बताया जाता है। यानी कुल मिलाकर सावधानी और सुरक्षा में कोई लापरवाही नहीं बरतने की सलाह यदि विज्ञानी, डॉक्टर, और जानकर दे रहे हैं, तो ज़रूरत है इसे पर्याप्त गम्भीरता से लेने की।

विशेष बात यह है कि कुछ ही दिनों में फेस्टिव सीजन उर्फ़ त्योहारों का लम्बा मौसम प्रारम्भ होने जा रहा है, जिसमें कोविड अनुशासन तोड़े जाने की ज़्यादा से ज़्यादा सम्भावना बनी रहेगी।इस सम्बंध में इज़रायल देश का उदाहरण बड़ा अनुकरणीय हो सकता है। दूसरी लहर के आते ही वहाँ के लोगों ने सरकार और डॉक्टर्स की सलाह का भरपूर ध्यान रखा। देखते ही देखते यह दुनिया के अकेला यहूदी देश लगभग पूरी तरह से कोविड मुक्त हो गया। इससे उत्साहित होकर वहाँ के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यानहू ने सभी कामकाज प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी, साथ ही खुद मास्क हटाकर लोगों का भी आव्हान किया कि वे भी मास्क हटा दें। 

ध्यान देने की बात यह है कि उनके आव्हान का सकारात्मक प्रभाव पड़ालेकिन कई लोगों ने मीडिया से यह भी कहा कि हमने,तो मास्क को अपनी जीवन शैली में हरदम के लिए सम्मलित कर लिया है।इस नए प्रयोग में बुराई ही क्या है? उक्त लोगों ने बड़े काम की बात यह कही कि मास्क हमें ज़िंदगी भर दूसरी एलर्जी से भी बचाने में मददगार सिद्ध हो सकता है। केरल के बारे में कहा जा रहा है कि वहाँ बक़रीद के अवसर पर लगातार तीन दिनों का अवकाश घोषित कर दिया गया। कई जानकारों का मानना है कि उक्त तीन दिनों में जो सामाजिक दूरी नहीं बरती गई, और मास्क के उपयोग से बचा गया होगा, उसने भी स्थिति को फिर बेक़ाबू करने में मदद की हो सकती है। यहाँ यह स्प्ष्ट कर देना चाहिए कि धार्मिक तीज त्योहार मनाए जाने को लेकर इस तरह के अवकाश से हालात बिगड़ भी सकते हैं।ऐसे ही मौकों के लिए लगभग छह महीने एक हाई कोर्ट ने कहा था कि त्योहार एक साल बाद फिर आ जाएंगे, लेकिन अच्छी भली ज़िंदगी को महामारी के खतरे में डालने से बचा जाना चाहिए, क्योंकि यह महा संक्रामक बीमारी है।

सही है कि अभी तक तमाम जानकार हवाला देते हैं कि वैक्सीन के दोनों ही डोजेस अभी तक कोविड से बचाव का तरीका है, मग़र कई प्रकरणों में देखा गया है कि दोनों डोजेस लेने के बाद भी कोरोना का प्रहार मरीज पर हुआ है। उसे ऑक्सीजन लगाना पड़ा, रेमेडिसिवर इंजेक्शन देने से डायबिटीज न होते हुए भी  स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा। जो लोग इस महामारी से बाहर आए, उन्हें स्टेयराड देने से आंखों में ब्लैक फंगस की जानलेवा बीमारी हो गई। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि जिस अमेरिका में कोरोना की लहर ने अल्प प्रलय का रूप धारण कर लिया था और जहां सबसे ज़्यादा मौते हुईं, वहीं दोनों टीकाकरण से 2,79000 लोगों की जानें बचा भी ली गई, इसी देश ने कोरोना के 2.50 हज़ार लोगों को अस्पताल जाने से बचा लिया, जिसके कारण मृत्युदर भी कम से कम रही।

कोविड के टीके लगवाने को लेकर भारत में भारी उत्साह देखा जा रहा है, लेकिन अखबारों में आ रहीं तस्वीरें चिंताजनक हैं। लोग बड़ी बड़ी कतारों में तो खड़े दिखाई पड़ते हैं, मगर उनके मुँह से मास्क  लगभग ग़ायब है और सामाजिक दूरी के नियम का पालन भी नहीं किया गया है। सभी जिम्मेदारियों को सरकारों के हवाले करके उक्त महामारी से उबरने का विचार भी करना अपने को अंधेरी सुरंग में धकेलने जैसा होगा। भारत आखिरकार एक स्वयंभू गणतंत्र है और किसी भी गणतंत्र में कोई तंत्र बिना गण के सहयोग के किसी इतनी बड़ी चुनौती  से सपने में भी नहीं निपट सकता। आशय यह कि एन 95 मास्क यदि सस्ता नहीं, तो ज़्यादा महंगा भी नहीं है। सर्व सुलभ भी है। और, अन्य कोविड अनुशासन पर रोक यूँ लगाई जा सकती है कि हम अपनी भावनाओं को अपने ही नहीं दूसरों के हित में भी काबू में रखें।



लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार

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