खोने और पाने का चक्र ही जीवन है

लेखक : रश्मि अग्रवाल

नजीबाबाद 

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क्या लक्ष्य है? क्यों जी रहे व क्यों जीना चाहते हैं? सिर्फ खाना-पीना, मौज-मस्ती या समृद्धि? पर जीवन क्या है? मकान नहीं किरायेदार भी नहीं बल्कि वह घर है, जिसे चिंतक की भाँति अलंकृत करते हुए विस्तृत करना है, संकुचन नहीं, कल्याण करना, अहित नहीं, उत्थान करना, पतन नहीं क्योंकि जीवन जन्म से मृत्यु के मध्य की कालावधि कहलाती, जो ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहार है।

फलतः जीविका में नूतन आमोद की किरण दीप्तिमान होने लगेंगी क्योंकि जीवन उस तेज की भाँति है, जिससे न जाने कितने वन-उपवन श्रृंगारित होते होंगे। सार यही है कि जीवन! खोने-पाने का चक्र है पर जैसा दृष्टिकोण होगा वैसा ही जीवन होगा।