कल्पना कवि की
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सोचो अगर हम जौहरी ना होते तो क्या होता ?
सोचो क्या होता उन सात जन्मों के वादों का वो मंगलसूत्र अगर ना होता,
पहली मुँह दिखायी की वो हीरों का हार ना होता,
अगर सगाई में अंग़ूठी से सगाई का रोका ना होता,
कैसे कहलाती वो बहुरानी अगर सास के हाथों का दिया, कंगन ना होता,
सोचो अगर हम जो जौहरी ना होते तो क्या होता ?
सोचो अगर विश्व सुंदरी के सर पर ये सोने और रत्नो से जड़ा ताज ना होता
सोचो अगर हम जौहरी ना होते तो इन रिश्तों का क्या होता?
दुल्हन के अरमानों का क्या होता ?
बिना शृंगार के देवो की प्रतिमा और हमारा मन्दिर कैसा होता ?
सीता भी ना मिलती राम को अगर हनुमान जी के पास अंग़ूठी में राम का नाम ना होता
सोचो हम ना होते तो दुल्हन के साज-शृंगार का क्या होता ?
वो ख़ूबसूरती पे, उनपे लिखे गीत, ग़ज़ल, नज़्मों का क्या होता ?
सोचो हम ना होते तो ख़ूबसूरती का क्या होता ?
सोचो अगर हम जो जौहरी ना होते तो क्या होता ?
लेखक : विजय ”संदीप” गोलेछा
गोलेछा ज्वेल्स, जयपुर