(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक है)
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कर्नाटक विधान सभा चुनाव अभी लगभग दो साल बाद होने है लेकिन चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? इसको लेकर राज्य के मुख्य विपक्षी दल कों कांग्रेस में अभी से घमासान शुरू हो गए है। इस पद के प्रमुख दावेदार तथा राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री सिद्धारामिया तथा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार बार-बार दिल्ली जाकर राहुल गाँधी और अन्य नेताओं पर दवाब बनाने में लगे है। उनको अभी से पार्टी का भावी मुख्य मंत्री घोषित कर दिया जाये।
सिद्धारामिया इस समय विधायक दल नेता है और कई साल से उनका पार्टी में दबदबा है। इस समय पार्टी राज्य स्तर तथा तथा जिला स्तर पर जो अधिकारी है वे लगभग उनमे से अधिकतर को उनके मुख्यमंत्री काल में नियुक्त किया गया था। उधर शिवकुमार को राज्य पार्टी का अध्यक्ष बने लगभग एक साल हो गया है लेकिन वे अभी तक प्रदेश कांग्रेस और जिलों में नए पदधिकरियों की नियुक्ति नहीं कर पाए है। समझा जाता है की नई नियुक्तिओं में सिद्धारामिया बार बार अडंगा डाल रहे है। वे नहीं चाहते के पार्टी में शिवकुमार का कद इतना बढ़ जाये की वे पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा बन जाएँ।
मुख्यमंत्री के चेहरे के एक ओर दावेदार मल्लिका अर्जुन खड्गे भी अपनी गोटियाँ ज़माने लगे है। वे पिछली लोकसभा में पार्टी के नेता थे। उन्हें गाँधी परिवार के बहुत निकट समझा जाता। वे पिछला लोकसभा चुनाव हार गए थे फिर भी पार्टी ने उनको राज्यसभा का सदस्य बना दिया।
शिवकुमार, पिछली सिद्धारमिया सरकार में मंत्री थे। 2018 जब राज्य में कांग्रेस ओर जनता दल (स) की मिली जुली सरकार बनी उसमें भीवे मंत्री बने थे। उनकी छवि पार्टी में संकट मोचक की है। कुछ वर्ष पूर्व जब पार्टी के दिवंगत महासचिव अहमद पटेल गुजरात से राज्य सभा का चुनाव लड़ रहे थे तब बीजेपी उनको हराने की हर सम्भव कोशिश कर रही थी। कांग्रेस के विधान सभा सदस्यों को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा था। उस शिवकुमार, जो मंत्री थे, को अहमद पटेल ने संपर्क किया गया। पार्टी के लभभग 40 विधायकों को चार्टेड फ्लाइट से बंगलुरु लाया गया और उन्हें शहर से बाहर के रिसोर्ट में ठहराया गया जिसके मालिक शिवकुमार थे। ये विधायक इस रिसोर्ट में कई सप्ताह रहे तथा उन्हें अहमदाबाद उसी दिन ले जाया गया जिस दिन वहां विधान सभा में राज्यसभा चुनावों के लिए मतदान होना था।
शिवकुमार राज्य के सबसे अधिक धनवान विधायक हैं। चुनावों में अपने नामांकन में उन्होंने जिन चल और अचल सम्पत्तियों का विवरण दिया था उसके अनुसार उनकी सम्पतिओं की कुल कीमत लगभग 700 करोड़ रूपये है। इसके बाद दो मौके फिर आये जब संकट मोचक के रूप में सामने आये। पहले मौका था मध्य प्रदेश में कमल नाथ की सरककर को बचाने के लिए कांग्रेस के विधायकों को उनके रिसोर्ट में लाकर रखा गया। दूसरा था जब राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार संकट में थी तब पार्टी के विधायकों की बाड़ेबंदी के लिए बंगलुरु में लाने का विचार बना था।
2019 के मध्य में जब एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व कांग्रेस - जनता दल (स) सरकार संकट में थी तो फिर शिवकुमार संकट मोचक बने। वे लगभग डेढ़ दर्ज़न बागी विधायकों, जो मुंबई के एक होटल में रखे गए थे, मनाने के लिए कई दिन तक वहां डेरा डाले रहे और वे इन बागी विधायकों में फूट डालने में सफल रहे। उन्होने बीजेपी का राज्य में सरकार पलटने का ऑपरेशन कमल विफल कर दिया। यह अलग बात है की बीजेपी अपने दूसरे ऑपरेशन कमल ऑपरेशन में सफल रही। कुमारस्वामी की सरकार गिर गयी और बीजेपी राज्य दल बदलुओ की सहायता से सत्ता पर काबिज़ होने में सफल रही।
इसी के चलते शिवकुमार बीजेपी की आंख की किरकिरी बने गए। उनके निवास, रिसोर्ट तथा ने ठिकानों पर एन्फोरेसमेंट डिपार्टमेंट की ओर से छापे मरे गए। उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। वे कई दिन तक दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहे। जेल में उनका मिलने जाने वालों में सोनियो गाँधी सहित पार्टी के कई बड़े नेता में शामिल थे।
इसके चलते धीरे-धीरे पार्टी में शिव कुमार का ग्राफ ऊँचा होता गया। जेल से जमानत पर रिहायी के कुछ दिन बाद ही उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। वे पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने में लगे थे। वे एक मज़बूत नेता बन रहे थे जो पार्टी के अन्य नेताओं को रास नहीं आया। वे और आगे बढ़कर मुख्यमंत्री न बन जाएँ इसलिए उनकी टांग खिंचाई शुरू हो गई। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)