वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत की पीडा़...!!

जिसको कविता के रूप में कहा है 

वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद  ज्ञानेन्द्र रावत  ने 


टूट चुकी हैं अब जनता की

बाकी बरसों की आसें


देख रहे हम रोज यहां 

अनगिनती जलती लाशें


साया उठा बच्चों के सिर से

हो गये बिचारे अनाथ 


मां रोई और बहना रोई

उजडा़ सुहाग सती का


धरती कांपी रुदन देख

उस अबला नारि व्रती का


उसकी आंखों से अश्रु पोंछने

अब कौन शिवा आयेगा 

अब कौन शिवा आयेगा...!!