मिश्रा बनने आया था, और मिर्जा बन गया : पवन सिंह



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मुम्बई। एण्डटीवी का हल्के-फुल्के सिचुएशन कॉमेडी शो और भई क्या चल रहा है?ष् में लोकल कलाकारों को लिया गया है ताकि एक असली लोकल शो को बनाया जा सके। यह शो लखनऊ की विविध एवं गहरी संस्कृति को दर्शाता है। कई जाने-माने चेहरों में से एक पवन सिंह, शो में जफर अली मिर्जा का किरदार निभाते हुए नजर आ रहे हैं। उनके इस सफर में फरहाना फातिमा शांति मिश्रा के रूप में, आकांक्षा शर्मा साइना मिर्जा के रूप में और अंबरीश बॉबी रमेश प्रसाद मिश्रा के रूप में शामिल हुए हैं। अपने धमाकेदार परफाॅर्मेंस से सभी सुनिश्चित कर रहे हैं कि दर्शकों का हंसते-हंसते पेट दर्द हो जाए। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री ने पवन सिंह को टेलीविजन पर कई अलग अवतारों में देखा है। पवन सिंह दर्शकों के दिमाग में अपनी एक और यादगार छवि बनाने के लिए बिल्कुल तैयार हैं। एक खुल्लम-खुल्ला बातचीत में, पवन ने अपनी भूमिका के बारे में, शो के प्लॉट के बारे में विस्तार से बातचीत की और साथ ही कुछ मजेदार सवालों के जवाब दिए रू

हमें अपनी भूमिका के बारे में बताइए और आपको ये कैसे मिला?

मैं जफर अली मिर्जा की भूमिका निभा रहा हूं,जो लखनवी नवाब है। वह हवेली के आधे हिस्से में रहता है और इसे अपने सबसे कट्टर दुश्मनों और सबसे अच्छे दोस्तों के साथ शेयर करता है। उसकी अपनी चाय की दुकान है जोकि पूरे शहर में बहुत मशहूर है। मिर्जा एक अच्छा आदमी है और अपनी बातों का पक्का है। वह खुद को सवा शेर समझता था लेकिन सिर्फ तब तक जब तक उसकी जिंदगी में उसकी प्यारी बेगम नहीं आई थी। अब सब कुछ उसी के बारे में हैं और वह क्या चाहती है उस बारे में है। पूरी दुनिया के लिए, मिर्जा किसी शेर से कम नहीं है, लेकिन जब उनकी बेगम सामने आती है, मिर्जा भीगी बिल्ली बन जाता है। वह उससे डरता नहीं है लेकिन अक्सर उसके द्वारा की गई चीजें और उसके लिए अपने अटूट प्यार की वजह से वह फंस जाता है। मिर्जा के भी रंग बदलते रहते हैं। ये भूमिका मुझे मिलना अधिक दिलचस्प इसलिए था क्योंकि शुरुआत में मैंने मिश्रा की भूमिका के लिए ऑडिशन दिया था। मिश्रा बनने आया था, और मिर्जा का दर्जा मिला गया। शो के मेकर्स ने इस बात पर जोर दिया कि मैं मिर्जा की भूमिका के लिए बिलकुल फिट हूं क्योंकि, मेरा लुक, आकार और दाढ़ी सभी चीजंे सरलता से किरदार के साथ जाती हैं। ऑडिशन के दौरान मुझे लगातार सरप्राइज मिलते रहे, पहले तो मेरे किरदार में बदलाव हुआ और उसके बाद भाषा में। दिल्ली का होने के नाते, मेरी बोली और शब्दों का उच्चारण लखनवी की तुलना में बिलकुल अलग है। विनम्रता और सभ्यता एक ऐसा महत्वपूर्ण गुण था जिस पर मुझे बहुत काम करना था। मेरे तौर-तरीकांे और व्यवहार में बदलाव के लिए मैंने दिन-रात मेहनत की ताकि मैं अपने डायलॉग्स ढंग से बोल सकूं। लेकिन कठिनाइयां यहां पर खत्म नहीं होती, क्योंकि जो बड़ी चुनौती थी वो ये थी कि शुद्ध भाषा के साथ-साथ मुझे इसमें थोड़ी कॉमेडी भी जोड़नी थी। इस पर अत्यधिक काम करने और धैर्य रखने के बाद, मुझे लगता है कि मैंने नवाब की तरह बातचीत करने और चुटकुले सुनाने की कला में भी महारत हासिल कर ली।

शो आपकी खुद की चाय की दुकान है। तो, क्या अपनी वास्तविक जिंदगी में भी आपको चाय पीना पसंद है?

दिल्ली की चाय मेरे रग रग में बहती है। हां, मुझे चाय पीना पसंद है। चाय हर किसी व्यंजन के साथ बिल्कुल परफेक्ट है। ये एक मिलनसार पार्टनर की तरह है, जैसे कि मिर्जा सकीना के लिए है। चाय एक भरोसेमंद पेय पदार्थ है जो कभी भी गलत नहीं होगा, यह जितनी मीठी होगी उतनी ही बेहतर होगी। क्या कभी आपने कोई ऐसा व्यक्ति देखा है जो चाय को लेकर शिकायत करें? शर्त है नहीं देखा होगा । ठण्ड का मौसम मेरा सबसे पसंदीदा समय है जब आप गरमा-गरम चाय की चुस्की लेते हैं जो आपको गर्मी से भर देता है।

जैसा आपने कहा, मिर्जा की पत्नी साधना हमेशा एक कदम आगे रहती है। क्या यह आपके वास्तविक जीवन की तरह है?

इस बात का जवाब सिर्फ शादी-शुदा मर्दों के पास है। मैं क्यों मिर्जा की तरह अभिनय कर सकता हूं इसका कारण है क्योंकि मैं वास्तविक जीवन में वैसा हूं। मिर्जा और मेरे अंदर बहुत कुछ एक जैसा हयै हमें जो भी थोड़ी बहुत स्वतंत्रता मिलती है हम उसका पूरा आनंद लेते है, हमारे लिए हमारी पत्नियां हमारी पूरी दुनिया हैं और हम दोनों को ही चाय पीना पसंद है। मुझे उसके हास्यास्पद संघर्षों का अहसास है। जिस तरह से वो अपनी पत्नी को किसी भी चीज के लिए ना नहीं कह सकता, वह मेरे साथ तुरंत क्लिक करता है। मुझे याद है कि लॉकडाउन के दौरान एक बार मुझे बर्तन धोने थे और मेरी पत्नी ने यह सुनिश्चित किया कि यह मेरी ऑफिशियल ड्यूटी बन जाए। उसने इस बात का दावा किया कि वह मेरे द्वारा धोए गए बर्तनों में खुद को देख सकती है। या तो वो बहुत मीठी बाते करने वाली है या फिर मैं सच में अच्छे बर्तन धोता हूं।

और भई क्या चल रहा है?- ऐसा शब्द है जिससे बातचीत शुरू होती है। इसी तरह, क्या आपके पास इससे जुड़ी कोई मजेदार घटना है जिसे आप साझा करना चाहेंगे?

और भई क्या चल रहा है? वास्तव में एक ऐसा शब्द है जिससे हम अक्सर अपनी बातचीत की शुरुआत करते हैं। लेकिन, इस सामान्य सवाल का जवाब बहुत विचित्र और अलग तरह से मिलता है। मुझे याद है जब मैंने अपने दोस्त से एक सवाल पूछा था, तो वह गुस्सा हो गया था और उसने भड़क कर कहा श्बहुत कुछ चल रहा है, तुम्हे क्या बताऊं?श् वह एक के बाद एक अपनी जिंदगी की परेशानियों के किस्से सुनाता चला गया। जिसके बाद मैं लगातार ये सोचता रहा कि मैं कैसे और क्यों यहां आया।

चाय की दुकान गॉसिप के लिए बहुत मशहूर है और शो में आपकी खुद की दुकान है। क्या आपका इससे जुड़ा कोई यादगार उदाहरण है?

एक चाय का स्टॉल तब सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान होता है जब भारतीय क्रिकेट मैच चल रहा होता है। जो गपशप करने वाले हैं वो आप पर इतना विश्वास करते हैं, जितना सचिन तेंदुलकर भी खुद के बारे में नहीं जानते होंगे। वो कहते हैं दीवारों के भी कान होते हैं और चाय के स्टॉल की दीवार तो पूरी गॉसिप से ही बनी हुई है। पॉलिटिक्स से जहां बात शुरू होती है, बीवी की करतूतों पर खत्म होती है। जो सबसे कम बोलने वाला व्यक्ति होता है वो भी गॉसिप करने के लिए खुद को आगे रखेगा, यह देखना मजेदार होगा कि कैसे। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति दुनिया में अपने समस्त ज्ञान के बारे में बात करता है और चाय की दुकान उसका स्टेज बन जाता है। मुझे खुद लोगों को सुनने और उनकी बातों को आॅब्जर्ब करने में मजा आता है। जितने भी किरदार चाय की दुकान पर आकर रुकते हैं वो सभी बहुत अनोखे हंै और ऐसे हैं जिनसे आप कभी बोर नहीं होंगे। ऐसा ही एक यादगार किस्सा है जब एक बूढ़ा व्यक्ति कड़वी चाय पीने के बाद मेरे पास एक चम्मच शक्कर मांगने के लिए आया था।

आपका ड्रीम रोल क्या है?

कोई भी ऐसी भूमिका जो मेरे अंदर के कलाकार को चुनौती देती है, उसे मैं बताना चाहूंगा। मैं हास्य भूमिकाओं को ज्यादा पसंद करता हूं क्योंकि वो काम और नाटक के बीच की बारीक रेखा को खत्म करती है। अगर अवसर मिलेंगे, तो मैं नकारात्मक शेड में रहते हुए डार्क किरदार निभाने में दिलचस्पी लूंगा।

हवेली में एक साथ रहने वाले आदमी घर के बाहर अपनी बिल्डिंग बनाते हैं। क्या ये सच है, या फिर अपने बीच की अंदरूनी दुश्मनी को छुपाने के लिए है?

प्यार भी है और तकरार भी। मिर्जा और रमेश प्रसाद मिश्रा (अंबरीश बॉबी)भाइयों की तरह झगड़ते और बहस करते हैं। असल जिंदगी में, अंबरीश जी और मैं एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छे हैं। हम सेट पर पहली बार मिले थे और दोनों एक-दूसरे से फ्रेंडली हो गए थे। वह लखनऊ से हैं और जब भी मुझे मदद की जरूरत होती है तो वह हमेशा सहयोग करते हैं। वह बहुत ही समझदार हैं और एक बड़े भाई की तरह मुझे प्रेरित करते हैं और मुझे मेरा सर्वश्रेष्ठ देने की अनुमति देते हैं। हम दोनों का परदे पर और परदे से बाहर एक अच्छा तालमेल है। इस शो में रमेश प्रसाद मिश्रा और जफर अली मिर्जा, दोनों पति जोरू के गुलाम हैं और उनकी पत्नियों शांति और सकीना के बीच बिना किसी नुकसान के ईर्ष्या को दर्शाया गया है। यह शो दर्शकों को इन दोनों परिवारों के इर्द गिर्द घूमने वाली मनोरंजक एवं दिलचस्प कहानी दिखाएगा। ये दोनों परिवार ‘अच्छे वक्त के सबसे बड़े दुश्मन और बुरे वक्त के सबसे अच्छे दोस्त‘ हैं।