तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में अब इंतजार नतीजों का

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक) 

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दक्षिण के तीन राज्यों : तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में विधान सभा चुनाव पूरे हो गए है। अब सभी पार्टियां और उनके उम्मीदवार बेसब्री से नतीजों का इंतजार कर रहे है जो लगभग एक महीने बाद मतों की गिनती से सामने आएंगे। फ़िलहाल सभी पार्टियों के नेता और उनके उम्मीदवार 6 अप्रैल को हुए मतदान का अपने-अपने नजरिये से आंकलन कर रहे है। पर मतों की गिनती के बाद ही यह पता लग सकेगा की उनका आंकलन सही था कि नहीं। 

इन तीन राज्यों के मतदान में एक बात सामान है। वह यह कि इन तीनों राज्यों में पिछले विधान सभा और 2019 के लोकसभा चुनावों की तुलना में कम मतदाताओं ने वोट डाले। अपेक्षाकृत कम मतदान के कारणों का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले दोनों चुनाव वर्ष के इसी अवधि के दौरान ही हुए थे।  इसलिए अधिक गर्मी आदि होना कोई कारण नहीं हो सकता। आम तौर पर यही माना जा रहा है कि मतदाता चुनावों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह है हुई की तीन राज्यों में चुनाव पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीके के पूरे हो गए। केरल में चुनावी हिंसा का इतिहास रहा है लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अधिकांश चुनावी विशेषज्ञ इस मत के है की जब भी किसी चुनाव में मतदान का प्रतिशत अधिक रहता है तब यह माना जाता है की मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल के खिलाफ आगे बढ़ चढ़ कर मतदान किया है। इसे वे सरकार विरोधी हवा बताते रहे है। लेकिन पिछले कई चुनावो में यह अवधारणा गलत साबित हुयी है। मतदान का प्रतिशत कम होने के बावजूद सत्तारूढ़ दल फिर सत्ता में आया जब कि अधिकांश का अनुमान सत्तारूढ़ दल के हराने का था। 

तमिलनाडु में मतदान प्रतिशत सबसे कम रहा। कुल मिलाकर 65 प्रतिशत मतदाता ही वोट देने आये। जबकि 2016 के विधान सभा चुनावों में 74.8 प्रतिशत मतदान हुआ था। लोकसभा चुनावों में मतदान 72.5 मत पड़े थे। केरल में मतदान अधिक होने की बजाये कम हुआ। इस राज्य में 74 प्रतिशत मतदान हुआ  जबकि पिछले विधान सभा चुनावों में यह 77.1 और लोकसभा चुनावों में यह 77.8 प्रतिशत था। इसी प्रकार केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में मतदान 84 से घटकर 80 पर रहा। 

अब बात करते है चुनावी पूर्व सर्वेक्षणों की। लगभग सभी चुनावी सर्वेक्षणों का अनुमान है की इस बार तमिलनाडु में दस साल बाद द्रमुक फिर सत्ता में लौटेगी। इसका बड़ा कारण यह बताया गया कि इस बार अन्नाद्रमुक के पास अपनी करिश्माई नेता जयललिता नहीं थी। दूसरा बड़ा कारण पार्टी में गुटबाजी  चरम पर थी। तीसरे राज्य में सरकार विरोधी हवा चल रही थी। जबकि उधर द्रमुक में स्टालिन ने अपने आपको एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया है . इस राज्य में कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दल दोयम दर्जे की भूमिका निभा रहे है। कांग्रेस का द्रमुक के साथ समझौता था तो बीजेपी का अन्नाद्रमुक के साथ। द्रमुक ने जहाँ कुल 234 सीटों में से कांग्रेस को केवल 25 सीटें दी हैं वहां बीजेपी को अन्नाद्रमुक से इससे भी कम यानी 20 ही मिली। यहाँ लगभग निशिचित सा ही माना जा रहा है की राज्य में द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिलेगा। 

आज से लगभग 6 पहले यह कहा जा रहा था कि दक्षिण के दूसरे बड़े राज्य केरल में कांग्रेस का सत्ता में लौटना तय है। वहां सोना तस्करी कांड में सत्तारूढ़ वाम लोकतंत्रिक मोर्चे के नेताओं की कथित लिप्तता के चलते इस मोर्चे की छवि बहुत धूमिल हो गयी है। लेकिन जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आते गए यहाँ का राजनीतिक परिदृश्य बदलता चला गया। देश में इस समय केरल ही एक मात्र राज्य है जहाँ वामदल सत्ता में है। ये दल हर हालत में इस राज्य में सत्ता में बरकरार रहना चाहते है। सोना तस्करी कांड से पहले सरकार की छवि भी अच्छी और काम करने वाली सरकार की थी। लेकिन कांग्रेस में घोर गुटबंदी है और इसका बड़े नेताओं में कोई सामंजस्य नहीं है। वे एक दूसरे की हार देखने में कोई कोर कसर नहीं रख रहे। अगर राज्य में एक बार फिर वाममोर्चा की सरकार आती है तो इसका श्रेय इसके नेताओं की वज़ह से अधिक कांग्रेस की भीतरी लडाई को जायेगा। सही मायनों में कहा जाये तो कांग्रेस ने यह सत्ता अपनी प्लेट में परोस कर वाममोर्चे के दे दी है। 

पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश में कुल 30 सीटें है। राजनीतिक दृष्टि से इस राज्य का कोई महत्व नहीं हैं। दक्षिण में कर्नाटक के बाद यही एक राज्य जहाँ आल इंडिया एन रंगास्वामी कांग्रेस के साथ चुनावी समझौते के चलते बीजेपी सत्ता में आ सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री एन. रंगास्वामी यहाँ कभी कांग्रेस के बड़े नेता थे। लेकिन गुटबंदी के चलते कांग्रेस से दूर हो गए और उन्होंने अपनी अलग कांग्रेस बना ली। समझौते के अंतर्गत बीजेपी ने उन्हें अपने मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया है। गुटबंदी के चलते इस राज्य में कांग्रेस की हालत बहुत पतली है तथा बीजेपी वाले गठबंधन की सरकार का आना लगभग पक्का माना जा  रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)