वक़्त के साथ नियम एवं परम्पराएँ तोड़ती बीजेपी
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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बीजेपी नेता यह कहते हुए नहीं थकते कि उनकी पार्टी अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न है। इस पर एक परिवार का नियंत्रण नहीं है। छोटा सा कार्यकर्ता पार्टी और इसकी सरकारों में ऊँचे से ऊँचे पद पर पहुँच सकता है, आदि आदि...  यह भी दावा किया जाता है कि पार्टी अपने सविंधान के अंतर्गत बनाये नियमों और परम्पराओं पर न केवल चलती है बल्कि इनका कठोरता से पालन भी करती है। लेकिन समय के साथ यह पार्टी भी मोटे तौर पर अन्य दलों की तरह से चलने लगी है। 

पार्टी सविधान के अनुसार पार्टी का कोई नेता 75 साल की उम्र के बाद पार्टी के किसी पद पर नहीं रह सकता। इस उम्र से अधिक वालों को चुनावों में टिकट नहीं दिया जायेगा और पार्टी के सरकारों में इस उम्र से अधिक नेता अथवा मुख्यमंत्री अथवा मंत्री नहीं बनया जा सकता है। एक परंपरा अथवा अलिखित नियम यह भी है कि पार्टी में वंशवाद को बढ़ावा नहीं दिया जायेगा यानि नेताओं के बच्चो को पिता के स्थान आगे नहीं बढ़ाया जायेगा। इसके चलते पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी के दिग्गज और संस्थापक सदस्य लालकृष्ण अडवाणी को उम्मीदवार नहीं बनाया गया। इसी प्रकार डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे    बड़े नेता को भी टिकट नहीं दिया गया एक प्रकार से जिन जिन को दरकिनार करना था उनको नियमों की दुहाई देकर पद नहीं दिया गया अथवा चुनाव में उतरने नहीं दिया गया। 

लेकिन अब जब जरूरत हो, किसी प्रकार की मजबूरी है अथवा चुनाव जीतना हो तो इन नियमों और परम्पराओं को तोड़ने में गुरजे नहीं किया जाता। इसको  अगर दक्षिण भारत में पार्टी में हुयी कुछ घटनाओ अथवा निर्णयों से जोड़कर देखा जाये तो पिछली कुछ वर्षों में ऐसे कई नियमों और परम्पराओं को सुविधा के अनुसार तोड़ दिया गया।

सबसे पहले बात करते है कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा की। वे राज्य के प्रभावशाली लिगायत समुदाय के है। दक्षिण में लगभग दो दशक पूर्व कर्नाटक में जो बीजेपी की सरकार बनी उसका पूरा श्रेय उन्हीं को जाता है। पार्टी में गुटबंदी के चलते जब उन्हें दरकिनार किया गया तो उन्होंने पार्टी को तोड़ अपने अलग पार्टी बनाली। ये अलग बात है की उनकी पार्टी विधानसभा चुनावों खुद तो बहुत अधिक सीटें नहीं ले पाई लेकिन उसने बीजेपी को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा दिया। 

धीरे-धीरे दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी गलती को महसूस किया और 2018 के विधान सभा चुनावों से पहले वे वापिस पार्टी में लौट आये। उनकी यह मांग मान ली गयी कि चुनावों में उन्हें पार्टी के मुख्यमंत्री पद के रूप में पेश करेगी। उस समय वे उस समय 75 वर्ष पार कर चुके थे। चुनावो में पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई। नेता के रूप में येद्दियुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। लेकिन सरकार ढाई दिन ही चली क्योंकि वह सदन में बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई। इसके एक वर्ष बाद जब दल बदल से राज्य में दोबारा बीजेपी की सरकार बनी फिर येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री का पद दिया गया। यह दूसरी बार नियमों का उल्लघन था। लेकिन राज्य में बीजेपी की सरकार बनाये रखने के लिए येद्दियुरप्पा को पद पर बैठाये रखना पार्टी की मजबूरी थी। 

पिछले लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पूर्व ही केंद्रीय मंत्री रहे पार्टी के राज्य में बड़े नेता अनंत कुमार हेगड़े की अचानक मृत्यु हो गयी। उनकी पत्नी भी पार्टी के सक्रिय नेता थी और यह लगभग तय माना जा रहा था कि लोकसभा चुनावों में पार्टी बंगलुरु से उन्ही को अपना उम्मीदवार बनायेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनके स्थान पर एक युवा नेता को उम्मीदवार बनाया गया। तब यह तर्क दिया गया कि पार्टी अपने यहाँ वंशवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहती इसलिए हेगड़े की पत्नी को उम्मीदवार नहीं बनाया गया। 

लेकिन इस परम्परा  को पार्टी ने हाल ही में तोड़ दिया। कुछ माह पूर्व पार्टी के केंद्रीय मंत्री और राज्य के  बेलगवी चुनाव क्षेत्र से सांसद रहे सुरेश अंगडी का अचानक निधन हो गया। यहाँ 17 अप्रैल को उप चुनाव होना है। उम्मीदवार बनने की दौड़ में कई नेता थे।  पर पार्टी ऐसा उम्मीदवार चाहती थी जो कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवार यहाँ के शुगर किंग और बाहुबली सतीश जारकीहोली को टक्कर दे सके। पहले कहा गया के अंगडी परिवार के किसी सदस्य को उम्मीदवार नहीं बनाया जायेगा। लेकिन आखिर मजबूरी में उनकी पत्नी मंगला को उम्मीदवार बनाया गया। वे भी जारकीहोली की तरह 100 करोड़ से भी अधिक सम्पति की मालिक हैं।

ठीक इसी प्रकार केरल में पार्टी ने 88 वर्षीय मेट्रोमैन के नाम से जाने जाने वाले ई. श्रीधरन को पार्टी ने मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया है। बरसों तक लगातार मेहनत के बाद भी विधान सभा में पार्टी का एक ही सदस्य है। उन्हें एक ऐसा चेहरा चाहिए था जिसको आगे रख पार्टी राज्य में अपनी उपस्थिति बढ़ा सके इसके लिए पार्टी ने अधिकतम उम्र के नियम को दरकिनार कर इतने बड़े बुजुर्ग को ही मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)