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देश-दुनिया आधुनिकता को अपनाने का सपना लिए मीलों का सफर तय कर चुकी है और आगे चलना अभी-भी बाकि ही है। लेकिन जीवन की इस दौड़-भाग में हम कहीं न कहीं अपने कर्तव्यों, आध्यात्म, अन्य प्राणियों की सेवा को बहुत पीछे छोड़ आए हैं। इतना पीछे कि अब तो उस कर्त्तव्यनिष्ठा की धुंध भी नजर नहीं आती है। दूसरों से खुद को आगे देखने की इच्छा हमसे हमारा सब कुछ छीने जा रही है। हम कहाँ भागे जा रहे हैं? हम अपनी जिंदगी को पीछे छोड़ आगे आखिर क्या हासिल करने जा रहे हैं? क्या पैसा कमाना ही हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गया है? हम क्यों हमेशा अपने से ऊपर वाले को ही देखते हैं? हमें क्यों अपने से नीचे वाले व्यक्ति नजर नहीं आते है? क्या आपने कभी रुक कर इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश मात्र भी की है?
अतुल मलिकराम के अनुसार हम इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अपने जीवन की बागडौर सँभालने के साथ ही दान, धर्म, सेवा, आध्यात्म और मानवता जैसे अनेक कर्तव्यों के तले एक व्यक्ति अपने जीवन का ताना-बाना बुनता है। लेकिन हम तो इसका एक कतरा मात्र भी नहीं संजो पाए हैं। पैसे कमाने की होड़ में हम इस ज्ञान को भी भूल चले हैं कि अंत में हमारे साथ पैसा नहीं जाएगा, बल्कि हमारे द्वारा किए गए अच्छे-बुरे कर्म जाएंगे। यह अटल सत्य है कि हम यहाँ से धूल का एक कण भी अपने साथ नहीं ले जा पाएंगे। इसलिए 50 से 55 वर्ष की आयु के बाद अपने काम से रिटायरमेंट लेकर स्वयं को समाज सेवा के लिए अग्रसर करें। मैंने इस ओर कदम बढ़ा लिए हैं। उम्मीद करता हूँ, आप भी इसकी महत्ता को समझेंगे और नई पीढ़ी को भी इसकी भीनी खुशबू से सुगन्धित करेंगे। अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष नेक कार्यों में लगाएं।
जिस गति से हम आगे को बढ़ रहे हैं, अब रुकना तो संभव नहीं है, लेकिन अपने कर्तव्यों के प्रति तो हम वफादार हो ही सकते हैं। ऐसे कई कार्य, कई लोग, कई प्राणी हैं, जिन्हें हमारी बेहद आवश्यकता है। ऐसे कई उदाहरण हम अपनी दिनचर्या में देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। सड़कों पर बैठे हजारों लाचार और मजबूर लोगों को एक समय का भर पेट भोजन भी नसीब नहीं होता है। गर्मी के मौसम में हजारों पशु-पक्षी पानी की एक बूँद को तरस जाते हैं और वह प्यास कारण बन जाती है उन्हें मौत के घाट उतारने का। माता-पिता की गोद से वंचित देश में लाखों अनाथ बच्चे हर दिन भूख से तड़पते हैं, किसी ऐसे व्यक्ति का साथ चाहते हैं, जो उनके सिर पर प्यार से हाथ रख दे।
पूरा जीवन अपने बच्चों का लाड़ से पालन-पोषण करने वाले माता-पिता अपने जीवन के आखिरी पड़ाव में सुख-शांति की आस बांधे रहते हैं, लेकिन विपरीत परिणाम के चलते लाखों बुजुर्ग वृद्धाश्रम में अपने अंतिम दिन गुजारने को मजबूर हैं। आप जिस भी तरह से इनकी सेवा कर सकते हैं, जरूर करें। यदि देश का हर एक व्यक्ति समाज सेवा का प्रण ले ले, तो इसका परिणाम यह होगा कि आने वाले समय में कोई प्राणी भूखा नहीं सोएगा। हर बच्चे को माता-पिता और हर माता-पिता को बच्चों का सुख प्राप्त हो जाएगा। हर धर्म भी यही कहता है कि समाज सेवा ही मानव सेवा है। इसलिए उम्र के सबसे महत्तम पड़ाव में अपने काम से रिटायरमेंट लेकर यह महत्वपूर्ण समय समाज सेवा में लगाएं, फिर देखें कैसी अद्भुत शान्ति आपकी अंतरात्मा को मिलती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)