(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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सामान्य तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च निर्णायक निकाय, अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा की वार्षिक बैठकें तो देश के अलग-अलग हिस्सों में होती है लेकिन त्रिवार्षिक बैठक, जिसमें अगले तीन सालों के लिए नए पदाधिकारियों का चुनाव होता है, केवल संघ के मुख्यालय नागपुर में ही होती रही है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक नागपुर की बजाये किसी अन्य स्थान पर हुई। इसके लिए कर्नाटक, जहाँ बीजेपी की सरकार है, की राजधानी बंगलुरु को चुना गया।
जो लोग संघ की कार्य प्रणाली को ठीक से जानते और समझते हैं उनकी नज़र में यह कोई बड़ा बदलाव नहीं है। उनका कहना है की प्रतिनिधि सभा की पिछली वार्षिक बैठक बंगलुरु में होनी थी लेकिन कोरोना के चलते यह बैठक स्थगित कर दी गयी थी। तभी यह निर्णय किया गया था कि इसकी बजाये सभा की त्रिवार्षिक बैठक यही की जायेगी। क्योंकि कोरोना अभी गया नहीं है इसलिए इस बार इस सभा के सभी15,00 सदस्यों को इसमें नहीं बुलाया गया तथा यह संख्या घटा कर 450 तक सीमित रखी गयी।
इस बैठक में दत्तात्रये होसबोले को अगले तीन साल के लिया संघ का सरकार्यवाह (महासचिव) चुना गया। वे राज्य के शिवमोग्गा के रहने वाले है तथा पिछले 12 साल से संघ के सह सरकार्यवाह की रूप में काम कर रहे थे। संघ तथा इसके अनुसांगिक संगठनो, जिनकी संख्या लगभग 30 है, में होसबोले की नियुक्ति को सामान्य बदलाव से अधिक नहीं माना गया। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षक इस बदलाव को राजनीतिक नजरिये से देखते हुए यह कह रहे है कि संघ की यह एक दूरगामी रणनीति है जिसके अंतर्गत वे संघ का दक्षिण में विस्तार उत्तर भारत की तरह का देखना चाहते है। यह भी कहा जा रहा है कि इसका सीधा लाभ आने वाले समय में बीजेपी को मिलेगा जो पिछले कई दशकों से दक्षिण के राज्यों में अपनी उपस्थिति बढाने की कोशिशे करती रही है लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
महाराष्ट्र से लगते कर्नाटक में संघ का काम काफी पहले ही विस्तार कर चुका था जिसका लाभ सीधा बीजेपी को मिला तथा लगभर दो दशक पूर्व दक्षिण में पहली बार कमल खिला और राज्य में बीजेपी की सरकार बनी। लेकिन ऐसा दक्षिण के किसी अन्य राज्य में इसलिए नहीं हो सका क्योंकि वहां सघ के काम में अपेक्षित रूप से व विस्तार नहीं हुआ था। केवल केरल ही ऐसा राज्य था जहाँ संघ के काम में वृद्धि हुई।
अगर हम संघ, जिसकी स्थापना महाराष्ट्र के नागपुर में हुई, में शुरू से महाराष्ट्र के चित्तपावन ब्रहामणों का दबदबा रहा है। हालांकि इसका बाद में उत्तर भारत के राज्यों में विस्तार हुआ लेकिन इसके अधिकतर केन्द्रीय अधिकारी महाराष्ट्रियन, विशेषकर चित्तपावन ही रहे। दशकों बाद पहली बार उत्तर भारत के राजेंद्र सिंह की रूप, जिन्हें रज्जू भैया के नाम से पुकारा जाता था, पर कोई हिंदी भाषी और उत्तर भारतीय इस हिंदूवादी संगठन के शीर्ष पद, सरसंघचालक (अध्यक्ष) तक पंहुचा।
इसके बाद कर्नाटक के के.सी. सुदर्शन लम्बे समय तक इस पद पर रहे। इसी तरह पहली बार सर कार्यवाह के रूप इसी राज्य के शेषाद्रि इस पद पर पहुंचे। होसबोले के रूप वे दूसरे कन्नाडिगा है जो इस पद पर पहुंचे है, वे सुरेश भैया जोशी, जो महाराष्ट्रियन है, का स्थान लेंगे जो इस पद पर पिछले 12 साल से हैं।
अब हम होसबोले की नियुक्ति को बीजेपी की रणनीति से जोड़ कर देखते है। लोकसभा चुनावों से पूर्व बी.एल. संतोष की बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) के पद की गयी थी। वे कर्नाटक के ही है तथा वे लम्बे समय से संघ के प्रचारक है। वे काफी समय तक कर्नाटक बीजेपी के महासचिव ( संगठन) रहे है। उन्हें राज्य में बीजेपी के जड़ें ज़माने वाले के रूप देखा जाता है। परम्परा के अनुसार संघ के किसी प्रचारक को ही बीजेपी में संगठन महासचिव के पद पर नियुक्त किया जाता हैं। कहने को उनका स्थान अध्यक्ष के बाद दूसरा माना है लेकिन व्यवहारिक रूप से पार्टी में कोई भी निर्णय उनकी मर्जी से नहीं लिया जाता।
अगर जे.पी. नड्डा पार्टी के अध्यक्ष के रूप में पहले स्थान पर हैं तो संतोष दूसरे स्थान पर है तथा पार्टी का काम दैनंदिन रूप से देखते है। इसी प्रकार संघ में सरकार्यवाह का स्थान सरसंघचालक के बाद आता है संगठन के विस्तार की जिम्मेदारी उसके पास में होती है।
इसे संयोग ही कहेंगे कि इस समय बीजेपी और संघ में दूसरे सबसे ऊँचे पद कन्नाडिगा ही है। भैया जोशी के बारे में आम तौर पर यह कहा जाता है कि उनकी राजनीति में रूचि नहीं के बराबर थी। वे बीजेपी के शीर्ष नेताओं के लगातार सम्पर्क में कम ही रहते थे। इसके विपरीत होसबोले राजनीति में पूरी रूचि लेते है तथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बहुत नज़दीक माने जाते है। सह सरकार्य वह के रूप में उनकी जिम्मेदारी संघ और बीजेपी में समन्वय बनाये रखने की थी। यह माना जा रहा है उनकी नियुक्ति से दोनों संगठन दक्षिण में अपने विस्तार के रणनीति को नया रूप दे सकेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)