इंसान का स्वभाव और व्यवहार वैसा ही होता है जैसे उसके जीन्स होते

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान

कर्म एवं जीन्स का अन्तर्सम्बन्ध

मनोविज्ञान में जीव और जीवन के बीच अन्तर्सम्बन्ध है। कर्म के सिद्धांतों का अध्ययन इस अन्तर को बिल्कुल स्पष्ट कर देता है। जिस प्रकार आनुवंशिकता जीवन से सम्बन्धित है, उसी प्रकार कर्म जीव से सम्बन्धित है, जिसमें पिछले कई जन्मों के कर्म और प्रतिक्रियाएं कर्म शरीर के रूप में संग्रहित रहते है। इस कारण अलग-अलग व्यक्तियों की योग्यता और उसकी असाधारण प्रतिभा केवल वर्तमान जीवन पर ही आधारित नहीं होती, इसका मूल स्रोत इससे भी परे जीव से बधे हुए संग्रहीत कर्मों अर्थात कर्म शरीर में खोजा जा सकता है। जीव विज्ञान यह विश्वास करता है कि शरीर का महत्वपूर्ण घटक जीन है। यह एक विशिष्ट सूत्र है और अत्यन्त सूक्ष्म है। इसकी सूक्ष्मता मात्र अनुमान से होती है। 

प्रश्न है हमारी चेतना कहां रहती है? ये क्रोमोजोम्स में मौजूद रहती है या जीन्स में? इसी के कारण मनुष्य-मनुष्य के बीच में इतना अंतर पाया जाता है। व्यक्तियों का स्वयं का प्रयास एक जैसा नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति की चेतना भी एक जैसी नहीं होती। कर्म के सिद्धांत के अनुसार इस असमानता का कारण कर्म है। यदि आज के जीववैज्ञानिक से ये प्रश्न पूछा जाये तो वह यह उतर देगा कि इस असामनता का कारण जीन है। जीन्स और क्रोमोजोम्स मानव के व्यक्तित्व का निर्धारण करते है। उसका स्वभाव और व्यवहार वैसा ही हो जाता है जैसे उसके जीन्स होते है। जीन ही समस्त असामनता के लिए जिम्मेदार है। 

जीवविज्ञान के अनुसार प्रत्येक जीन में साठलाख आदेश होते है। कर्म के सिद्धांत के अनुसार कर्म के प्रत्येक कण पर अनन्त निर्देश लिखे हुए होते है। विज्ञान केवल जीन्स तक पहुंचा है। जीन भौतिक शरीर का घटक है, परन्तु कर्म सूक्ष्म शरीर का घटक है। भौतिक शरीर के भीतर एक विद्युत शरीर होता है जो सूक्ष्म होता है और एक कर्म शरीर होता है जो उससे भी अधिक सूक्ष्म होता है। इसके प्रत्येक भाग में अनन्त शब्द अंकित होते है। हमारे स्वयं के प्रयासों, अच्छाई, बुरे कार्यों, सीमाओं और विशिष्टताओं के सारे रिकाॅर्ड कर्म शरीर में उत्कीर्ण रहते है। मनुष्य कर्म शरीर से प्राप्त कंपनों के अनुसार ही व्यवहार करता है। 

कर्म का सिद्धांत अत्यन्त सूक्ष्म है। आनुवंशिकता विज्ञान ने कर्म के इस सिद्धांत को समझने में हमारे बहुत सहायता कि है। जीन आनुवंशिक विशिष्ट लक्षणों के संवाहक है। प्रत्येक विशिष्ट लक्षण के लिए एक विशेष प्रकार का जीन होता है। आनुवंशिकता के ये नियम कर्मवाद के संवादी नियम है। भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर तक की यात्रा अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह शरीर भौतिक है और सूक्ष्म जैविक कोशिकाओं से बना हुआ है। इस शरीर में लगभग साठ खरब कोशिकाऐ साथ में रहती है। एक सूई की नोक पर अनन्त निगोद जीवों को रखा जा सकता है। निगोद वनस्पति प्रजातियों में से एक है। यह एक सूक्ष्म और गुप्त बात है। परन्तु वर्तमान विज्ञान भी बहुत से सूक्ष्म विचारों को तथ्य के रूप में स्वीकार करता है। हमारे शरीर में खरबों कोशिकाऐ होती है और उनमें क्रोमोजोम्स होते है। प्रत्येक क्रोमोजोम एक हजार-दो हजार जीन्स से बना हुआ होता है। 

हमारे शरीर की एक कोशिका में छियालिस क्रोमोजोम होते है जो जीन्स से बने हुए होते है। जीन्स अत्यंत सूक्ष्म होते है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तोे आनुवंशिकता, जीन्स और समस्त रासायनिक परिवर्तन तीनों कर्म के सिद्धांत है। जीन हमारे भौतिक शरीर का घटक है और कर्म हमारे सूक्ष्म शरीर का दोनों शरीर से संबंधित है। जीन्स न केवल माता-पिता के विशिष्ट गुणों का संवहन करते है बल्कि वे हमारे बधे हुए कर्मों का प्रतिनिधित्व भी करते है। परामनोविज्ञान जीन्स के पीछे क्या है इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करता है। परामनोवैज्ञानिक यह दावा करते है कि हमारे एक अचेतन और अवचेतन मन होता है। अचेतन मन कर्म शरीर है और अवचेतन मस्तिष्क तैजस शरीर होता है। व्यक्तियों के बीच मानसिक स्तर पर संदेशों का आदान-प्रदान, अतीन्द्रिय ज्ञान, भविष्य मंे होने वाली घटनाओं का ज्ञान और पदार्थ के ऊपर मन के बारे में अतीन्द्रिय भाव बोध में बात करते है। अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान ये तीन ज्ञान हमारी इन्द्रियों और मन पर निर्भर नहीं है। 

प्रत्येक घटना के पीछे कर्म शरीर और हमारी आत्मा पर उसका प्रभाव होता है। इसी प्रकार कर्मशरीर जीन्स के पीछे भी होता है। जीन्स का उल्लेख वासना अथवा संस्कार के रूप में किया गया है। जैसे कारण शरीर वासनाओं को नियंत्रित करता है, वैसे ही डी.एन.ए. के बारे में समझा जाता है कि वह जीन्स को नियंत्रित करता है। वासनाएं इस बात को स्पष्ट करती है कि मन की गहनतम वृत्तियां किस प्रकार समय में से गुजरती है, भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी बनी रहती है और नये जीवन का निर्माण करती है। 

वासनाएं ही मनोवैज्ञानिक और साथ ही साथ भौतिक लक्षणों के लिए जिम्मेदार होती है। वास्तव में जीवन का निर्माण करने वाले चरम खण्डों की खोज उसके कारण की खोज है। वासनाएं जीन्स के लिए जीन्स है। वे अभौतिक अप्रकट चेतना अथवा भगवान के नाम से पुकारा जाता है, जो कि जीवन का स्रोत है और उसके सूक्ष्मतम प्राकट्य डी.एन.ए, जिसमें जीन्स होता है, के बीच की कड़ी है। योग के कारण डी.एन.ए और जीन्स को समझ पाने में सफल हुए है। भौतिक संसार को समझने में सफल होने के बावजूद पाश्चात्य विज्ञान अपनी उपलब्धियों को लेकर एक ऐसे गर्व के बोझ तले दबा हुआ है जिसका वह अधिकारी नहीं है। इस प्रकार कर्म अपनी भूमिका जीन्स के माध्यम से निभाते है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)