मुंबई। ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के मौके पर एण्डटीवी के शो ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ की लैला यानी रिद्धिमा तिवारी ने बताया कि आखिर महिला होने का क्या मतलब है। वह जिन महिलाओं को पसंद करती हैं, उन्होंने उनके बारे में चर्चा की और सशक्त महिला किरदारों को निभाने के बारे में बात की। यहां प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंशः
‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ का विषय ‘वीमन इन लीडरशिप: अचीविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 आपके लिये क्या मायने रखता है?
मैं इस बात से चर्चा शुरू करना चाहूंगी कि ज्यादातर हिस्सों में जहां कोविड-19 महामारी से जंग लड़ी गयी और उसे हराया गया, उसका नेतृत्व महिलाओं के हाथ में था। मुझे इस बात से बेहद हैरानी होती है कि क्यों हम महिलाओं की समानता और अधिकारों का राग अलपाते रहते हैं। काफी समय से, महिलाओं ने अपनी कुशलता, ज्ञान का प्रदर्शन किया और अपने बलबूते पर वो सबसे ऊंचे मुकाम पर पहुंच रही हैं। वे निडर और महत्वाकांक्षी हैं लेकिन साथ ही अपने आस-पास के लोगों का ध्यान रखती हैं और उन्हें सेहतमंद रखती हैं। इस दुनिया को ज्यादा से ज्यादा फेमिनिन एनर्जी की जरूरत है और एक महिला को बार-बार खुद को साबित करने की जरूरत नहीं। इस महामारी के दौरान महिलाओं ने फ्रंट लाइनर्स के रूप में अपनी तरफ से जो प्रयास किये उसे नकारा नहीं जा सकता। रिकवरी की इस प्रक्रिया में चीजों को बेहतर बनाने के लिये महिलाएं भी उतनी ही जिम्मेदार हैं। महिलाओं ने भी महामारी के दौरान उतनी ही मुश्किलें झेली हैं, जिसका परिणाम काफी भयावह रहा। घरेलू हिंसा, बेरोजगारी, गरीबी और बिना किसी वेतन के लोगों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी, जैसी चीजें देखने को मिलीं। इन सारी मुश्किलों को पार करते हुए महिलाएं पहले से भी ज्यादा मजबूत बनकर उभरी हैं। वे चुनौतियां लेने को तैयार हैं, अपने और अपने आस-पास के लोगों के लिये उम्मीद और पाॅजिटिविटी लाना चाहती हैं। वे एक नई शुरुआत के लिये आगे बढ़ रही हैं और उनका रास्ता कोई नहीं रोक सकता।
आपके लिये सबसे प्रेरणादायी महिला कौन हैं (किसी बड़े पद पर और मनोरंजन की दुनिया में) और क्यों?
मैं इन दो हस्तियों से बेहद प्रभावित हूंः न्यूजीलैंड की सम्मानीय प्रधानमंत्री जैकिंडा आर्डेन और फिनलैंड की सना मारिन। जैकिंडा आर्डेन ने अपने बाकी विपक्षी लीडर्स की तुलना में कोविड-19 के मामले को पूरी मजबूती, संवेदना और सहानुभूति के साथ संभाला। वह जिस तरह से न्यूजीलैंड को संभाल रही हैं उसकी झलक उनके बेखौफ अंदाज और सौम्यता में मिलती है। उनकी अचंभित कर देने वाली लहर ने बाकियों की बोलती बंद कर दी और वे अवाक रह गये हैं। उन्होंने इस समस्या को जड़ से खत्म करने और उखाड़ फेंकने पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि ऐसे संवेदनशील स्थिति में उनके निणर्य लेने की क्षमता साबित हो सके। वहीं फिनलैंड की 35 साल की प्रधानमंत्री सना मारिन ने सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री चुने जाने पर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। राजनीतिक फलक पर महिलाओं को कम आंका जाता है और उन्हें उतना महत्व नहीं दिया जाता, लेकिन उन्होंने पूरा खेल ही पलट कर रख दिया। उनके साथ दूसरी पार्टियों से 5 अन्य महिलाओं ने सबका ध्यान खींचा, क्योंकि सबने पहली बार महिला नेतृत्व वाली सरकार देखी थी। यह पल ही तारीफ का सबसे बड़ा पल है और इसे बढ़ा-चढ़ाकर भी बताने की जरूरत नहीं। लेकिन इसे बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ था। उनकी शुरूआती प्रतिक्रिया को पूरी दुनिया में काफी सराहा गया। हिन्दी मनोरंजन की दुनिया में सोनू सूद कई लोगों के लिये सही मायने में सुपरहीरो बन गये हैं! मुझे सही वजहों और सही मायने में प्रेरित करने के लिये उन्हें सर्वोच्च स्थान देने में बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। मैंने पहले भी कहा कि मैं उन लोगों में से हूं जोकि समानता पर विश्वास रखते हैं और महिलाओं के सशक्तिकरण को सिर्फ एक दिन के लिये सीमित नहीं करते। मैं सही मायने में उन्हें ‘मसीहा’ का खिताब देना चाहूंगी, जो लोग उन्हें प्यार से बुलाते हैं। उन्होंने इतने संवेदनशील समय में काफी सहानुभूति दिखायी है। ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के मौके पर मैं खासतौर से उनका जिक्र करना चाहती हूं, क्योंकि इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिये ऐसे और भी ज्यादा पुरुषों की जरूरत है। इतने मुश्किल समय में उनके प्रयासों को गिनना बेमानी होगा, मैं यह कहकर यहीं बात खत्म करना चाहूंगी कि सोनू सूद ने इंसान शब्द को पुनः परिभाषित किया है।
पिछले साल से ही, हम देश में महामारी की स्थिति से लड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में आपने अपने काम को किस तरह संभाला, जब पूरी दुनिया पर छंटनी और आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे थे?
किस्मत से मेरा पिछला शो लाॅकडाउन से पहले बेहद ख्याति वाली स्थिति में खत्म हुआ था, जिससे मैं आर्थिक रूप से सुकून की स्थिति में थी। हमारे प्रोड्यूसर काफी अच्छे थे और सबको समय पर उनका पैसा दे देते थे। इतनी मुश्किल घड़ी में मेरी हमेशा रक्षा करने के लिये मैं भगवान का जितना भी शुक्रिया अदा करूं, कम है। लाॅकडाउन की वजह से अचानक ही मंदी आ गयी और आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह थम गयी, हमारी एंटरटेनमेन्ट इंडस्ट्री पर भी प्रभाव पड़ा था। ऐसे समय में बुरे ख्याल आना और उम्मीद की एक भी किरण नज़र ना आना, स्वाभाविक सी बात है। शुक्र है, मेरे पति जस के पास लाॅकडाउन से पहले काम आ गया था, जिससे जैसे ही पहले अनलाॅक की घोषणा हुई वह तुरंत ही शुरू हो गया। एक कपल के तौर पर हमने यह महसूस किया कि एक-दूसरे का आभार व्यक्त करना ही समय की मांग है। हमने सोच-समझकर खुद को किसी भी नेगेटिविटी से दूर किया, न्यूज़ और सोशल मीडिया, जो हमें प्रभावित कर सकते थे या हमारे उत्साह को कम कर सकते थे सबको बंद कर दिया। हमने सब भगवान के ऊपर छोड़ दिया, हमने मिलकर नये लक्ष्य तय किये, चुनौतियों को स्वीकार किया, खुद को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया। हमने एक-दूसरे का पूरा साथ दिया, एक साथ घर का काम करते हुए हमने काफी सारा क्वालिटी टाइम बिताया। इससे हमारी आत्मा को संतुष्टि मिली और हम पहले से बेहतर हुए। आज हम ज्यादा से ज्यादा सिर्फ इस पल पर ध्यान लगाने लगे हैं। लाॅकडाउन ने मुझे जीवन के तर्क के परे देखने में मदद की, अपने अंदर की सारी क्षमताएं बाहर लाने में मदद की। मैंने कभी नहीं सोचा था कि अनुकूल परिस्थिति ना होने और साधनों की कमी के बावजूद मैं ऐसा कर सकती हूं। इसने मुझे आम चीजों से ऊपर असाधारण की तरफ देखने के लिये प्रेरित किया। लाॅकडाउन के दौरान मैंने एक शाॅर्ट फिल्म की शूटिंग की, जिसे कई सारे इंटरनेशनल अवाॅर्ड मिले और लोगों ने काफी तारीफें कीं। लाॅकडाउन ने मुझे बेहद सहनशील, दृढ़ और शांत बनाया। अब मैं आज में जीती हूं और मौजूदा पल को अच्छी तरह जीने को महत्व देने लगी हूं। मुझे जो मिला है उसके लिये आभार व्यक्त करती हूं, मन ही मन शुक्रिया अदा करती रहती हूं। मुझे घर की चारदीवारी के अंदर सीमित खुशियों की विशालता का अंदाजा है। मेरा शांत दिमाग मुझे स्वस्थ रखता है और मुझे खुशी-खुशी बाहर जाने के लिये तैयार करता है। साथ ही मेरे एण्डटीवी के शो ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ की शूटिंग पर जाने के लिये मुझे प्रेरित करता है, क्योंकि कोविड से जंग अभी भी जारी है।
आपको क्या लगता है, आज के दौर की महिलाओं के सामने सबसे मुश्किल चुनौती कौन-सी है, खासकर कामकाजी महिलाओं को अपने काम और जीवन के बीच संतुलन बनाने में कैसी मुश्किल आती है?
घर और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत मुश्किल काम होता है। दोनों के बीच सीमा तय करने के लिये एक रेखा खींचनी ही पड़ती है, लेकिन कहना जितना आसान है करना उतना ही मुश्किल। आमतौर पर एक-दूसरे के नियम आपस में टकराते हैं, माहौल खराब होता है और दोनों ही दुनिया प्रभावित होती है। एक महिला अपने आस-पास सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिये जी-जान लगा देती है, लेकिन अक्सर लाचार, बेकार, हारी हुई और हतोत्साहित महसूस करती हैें। लेकिन फिर एक बार यह चुनाव करने का मामला है। महिलाएं बेहतरीन मल्टीटास्कर होती हैं, लेकिन उन्हें भी परिवार की तरफ से समय पर तारीफ, सपोर्ट, प्यार और समझ की जरूरत होती है, ताकि वह अकेले सारी चीजों को संभाल पायंे। महिलाओं को यह समझने की जरूरत है कि आदर्श महिला के फ्रेम में फिट ना भी हुए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। घर और बाहर के बीच संतुलन बिठाने का लगातार दबाव और संघर्ष महिलाओं की सेहत पर गंभीर प्रभाव डालता है। महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वह बच्चों को संभाले, मेहमानों का ख्याल रखें, खाना पकायंे, घर की जिम्मेदारियां उठायंे। यह सोच आज भी पुरुष-सत्तामक समाज में मौजूद है। हालांकि, पुरुषों को यह समझने की जरूरत है कि घर में कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को बराबर बांटा जाना चाहिये। परेशानियों को परिपक्वता और आपसी समझ के साथ सुलझाने की जरूरत है। इससे महिलाएं हर जगह और भी ज्यादा आत्मविश्वास और काबिलियत के साथ अपना नाम रौशन कर पायेंगी।
आपका किरदार दर्शकों के दिलोदिमाग पर छाया हुआ है। आपके हिसाब से इस भूमिका/किरदार की खासियत क्या है?
‘दूसरी औरत’ वाली बात हमेशा ही दर्शकों का ध्यान खींचती है। जब भी मनोरंजन की बात आती है,, पति-पत्नी और वो का काॅन्सेप्ट हमेशा से ही एक प्रासंगिक हिट फाॅर्मूला रहा है। पुरुष जहां ग्लैमर और कल्पनाओं की दुनिया में खो जाते हैं, वहीं महिलाएं पत्नियों से सहानुभूति जताती हैं, लेकिन उन्हें भी ग्रे शेड के साथ जुड़ा वह तड़का, ग्लैमर, डिजाइनर वियर साड़ियां, गहने, हेयरस्टाइल और मेकअप लुभाते हैं। वह पूरी तरह से एक छमक छल्लो के रूप में इतराती हैं और बिल्कुल अप्रत्याशित ढंग से अपने अंदर छिपे जोश एवं आकर्षण को सामने लाती है।
आपके हिसाब से महिला होना क्या है?
मेरे विचार से, एक महिला को अपनी सही पहचान होना जरूरी है। महिला होने के अपने गुणों को पूरी तरह स्वीकार करें और उसे अपनायें। उन्हें अधिकारों के लिये लड़ने या प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं। जिस पल वह अपने खामियों और सीमाओं को स्वीकार कर लेगी, वह अपनी ताकत को भी समझ पायेगी। वह स्वतः ही शक्ति का रूप बन जायेगी- एक ऐसी देवी जिनमें असंभव को भी संभव कर दिखाने की असीम ताकत है। एक महिला हर रूप में पूर्ण है और उसे पूर्ण होने के लिये किसी और की जरूरत नहीं। उनमें प्यार, ममता की धारा हमेशा से ही बहती आ रही है, लेकिन हम महिलाएं अक्सर अपने आपको ही भूल जाते हैं। हमें खुद को भी उस धारा में से प्यार देने की जरूरत है और हम किसी दूसरे को तभी प्यार दे पायेंगे जब प्यार से ओत-प्रोत हो रहे हों। एक महिला को प्यार का पर्याय माना जाता है, लेकिन सही मायने में वह खुद को तभी परिभाषित करती है जब वह सारी रूढ़ियों को तोड़ देती है। मेरे लिये एक महिला जैसी है वैसी ही परफेक्ट होती है।
आप सभी लड़कियों और महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी?
आप जैसे हैं वैसे ही रहने में खूबसूरती है, क्योंकि किसी को भी परफेक्शन पाने का संघर्ष छोड़ देना चाहिये। अपनी सीमाओं पर भी ध्यान दें, अपनी ताकत को आगे लायें, बड़े सपने देखें, अपने सपनों को बचाकर रखें और उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखें। प्यार की कमी को भरने, अहमियत या सम्मान पाने के लिये दूसरों पर निर्भर रहना छोड़ दें। सबसे पहले अपने लिये करें। खुद से प्यार करें और एक आदर्श महिला बनने की दौड़ बंद कर दें। जीवन में मौज-मस्ती करना कभी भी बंद ना करें और किसी को भी ऐसे कहने ना दें कि तुम ऐसा नहीं कर सकती। नारीवादी बनना बंद कर दें, दुनिया के मामलों को सुलझाने से पहले अपने अंदर के व्यक्तिगत कारण को जानने की कोशिश करें और सदियों पुराने पुरुष-सत्तामक नियमों का पालन ना करें। आप अपने शौक को पूरा करें, लेकिन जल्द से जल्द कामयाबी पाने के लिये कोई गलत रास्ता ना चुनें। रुककर सोचें, मेडिटेशन करें, अकेले ट्रिप पर जायें या फिर अपनी गर्ल गैंग के साथ घूमें, भले ही आपकी शादी हो गयी हो। साथ ही अपने आस-पास मौजूद लाचार महिलाओं को आगे बढ़ने में मदद करें।