(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, राजनीतिक विश्लेषक)
तमिलनाडु में विधान सभा चुनावों से पूर्व ही सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गयी गयी है। यह लड़ाई पार्टी के वर्तमान नेतृत्व तथा कभी राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी की सुप्रीमो रहीं जयललिता के बहुत करीब समझी जाने वाली शशिकला के बीच शुरू हुई है। अगर वर्चस्व की यह लड़ाई रुकी नहीं तो पार्टी को अगले चार महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों में बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
राज्य में दो बड़े क्षेत्रीय दल - द्रमुक और अन्नाद्रमुक बारी-बारी से सत्ता में आते रहे है। लेकिन 2016 के विधान सभा चुनावों में जय ललिता ने दशकों से चले आ रहे इस क्रम को तोड़ने में सफलता पाई थी। उनकी पार्टी ने केवल लगातार दूसरी बार सत्ता में आई बल्कि उसे पहले से भी अधिक सीटें मिली। यह अलग बात है कि आय से अधिक सम्पति के मामले में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा सजा सुनाये जाने के बाद न केवल उन्हें पद छोड़ना पड़ा बल्कि उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया उनको सजा के दौरान उन्हें बंगलुरु की जेल में रखा गया। उनकी अनुपस्थिति में पन्नीरसेल्वम राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में जय ललिता की तस्वीर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रखकर उनके नाम से सरकार चलाते रहे। कुछ समय बाद जब सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें आरोपों से बरी कर दिया वे फिर राज्य की मुख्यमंत्री बनी। लेकिन वे अधिक समय तक पद पर नहीं रह पाई। कई बीमारियों के चलते वे अधिक दिन जीवित नहीं रह पाई। उनकी मृत्यु के बाद पार्टी में संगठन और सरकार पर काबिज़ होने के लिए जो लड़ाई शुरू हुई वह किसी ने किसी रूप में अब तक चलती आ रही है।
पार्टी में शशिकला को जय ललिता के सबसे अधिक करीब माना जाता था। वे न केवल पार्टी की सुप्रीमो के करीब थी बल्कि उनकी पायस गार्डन स्थित उनके निजी आवास में उनके साथ बरसों से रहती चली आ रही थी। ललिता जब मृत्यु से पहले अस्पताल में थी शशिकला को ही उनसे मिलने की इज़ाज़त थी। उस समय सरकार और संगठन पूरी तरह से शशिकला ही चला रही थी। यह मान लिया गया था कि जय ललिता के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में शशिकला ना केवल मुख्यमंत्री बनेगी बल्कि पार्टी की कमान भी उन्ही के हाथ में होगी। ज्यों ही जय ललिता का निधन हुआ पार्टी में मुख्यमत्री पद पाने की लड़ाई शुरू हो गई। दो खेमों में बंटी पार्टी का एक गुट शशिकला के साथ था जबकी दूसरा गुट पनीरसेल्वम के साथ था जो कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे थे।
पार्टी और सरकार को लेकर दोनों गुटों की लड़ाई चल ही रही कि उसी समय अपनी नेता की तरह शशिकला को भी आय से अधिक सम्पति के मामले में चार साल की सजा हो गयी। उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य भी घोषित कर दिया। शशिकला के जेल में जाने के बाद उनके भतीजे दिनाकरण ने पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई जारी रखी। आखिर में पार्टी में विभाजन हो गया। दिनाकरण ने अम्मा मक्कल मुन्तेत्र कजगम के नाम से अलग पार्टी बना ली। उनके साथ पार्टी के लगभग दो दर्ज़न विधायक भी थे। जब प्रमुख विपक्षी दल ने सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखा तो माना जा रहा था की पार्टी से अलग हुए गुट के विधायक अविश्वास प्रस्ताव पर द्रमुक का साथ देंगे। लेकिन विधान सभा अध्यक्ष ने पार्टी से अलग हुए सभी विधायकों को दल बदल कानून के अंतर्गत सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया। सरकार तो बह गयी लेकिन पार्टी की यह गुटबंदी जारी रही।
पिछले दिनों चार साल की सजा के बाद शशिकला की रिहाई के साथ ही यह लड़ाई अब अन्य दौर में प्रवेश कर गई है। बंगलुरु जेल से छूटने के बाद जिस कार से शशिकला चेन्नई आई उस पर अन्नाद्रमुक का झन्डा लगा हुआ था। इसको लेकर अन्नाद्रमुक के सभी स्तर के नेताओं के कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है शशिकला अब पार्ट की सदस्य नहीं है इसलिए वे पार्टी के झंडे का उपयोग नहीं कर सकती। उनका कहना है कि 2017 पार्टी की सदस्यता के पुर्नवीनीकरण के दौरान शशिकला ने आवेदन ही नहीं किया था इसलिए वे अब पार्टी की सदस्य होने का दावा नहीं कर सकती। इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया कि पार्टी विरोधी गतिविधिओं में लिप्त रहने के आरोपों के चलते उन्हें फिर पार्टी की सदस्यता देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उधर शशिकला और उनके समर्थकों का दावा है कि जय ललिता के निधन के बाद पार्टी की हुयी बैठक में शशिकला को जय ललिता के स्थान पर पार्टी के सर्वोच्च- पार्टी महासचिव- के लिए चुना गया था जिस पर वे अभी भी पदस्थ है।
पार्टी के भीतर लडाई का यह दौर अभी शुरू ही हुआ है। आने वाले दिनो में यह और भी तेज होने की सम्भावना है। इस स्थिति का लाभ प्रमुख विपक्षी दल द्रमुक को जरूर मिलेगा। पिछले लोकसभा चुनावों में द्रमुक की भारी जीत हुई थी। उसी के चलते इसके नेताओ को पूरा विश्वास है विधान सभा चुनावों में वह अन्नाद्रमुक को आसानी से पराजित कर फिर सत्ता में आयेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)