सोशल एक्टिविस्टों का केंद्र बनता जा रहा है बंगलुरु
लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, राजनीतिक विश्लेषक)

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लगभग एक साल पूर्व जब दिल्ली सहित देश के कई भागों में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन और धरने हो रहे थे तो बंगलुरु में ऐसे ही प्रदर्शन  के दौरान एक ऐसी घटना हुई जो अगले दिन समाचार पत्रों की सुर्खी बन गयी। 

यह घटना तब हुई जब कई मुस्लिम संगठनों की ओर से आयोजित एक सभा में जिसे मुसलमानों के एक बड़े और मुखर नेता असदुद्दीन ओवैसी ने संबोधित करना था। उनके बोलने से कुछ समय पूर्व अचानक एक युवती मंच पर आई। उसने माईक को पकड़ा और “पाकिस्तान जिंदाबाद“ के नारे लगाने शुरू कर दिए। इसके उत्तर में सभा में उपस्थित कुछ लोगों ने भी उसके साथ यही नारे दोहराने शुरू कर दिए। स्थित को संभालते हुए ओवैसी ने बिना समय गंवाए  उस युवती से माईक छीन लिया। युवती जिसका नाम अमूल्या लोयने था को तुरंत मंच से उतर जाने के लिए कहा गया। साथ ही यह भी कहा कि इस युवती का इस आयोजन से कुछ लेना-देना नहीं है। ना ही वक्ताओं की सूची में उसका नाम है। वहां उपस्थित पुलिस ने उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया। पूछताछ में यह बात सामने आई कि वह कुछ वामपंथी संगठनों से जुडी हुयी थी तथा सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय थी। इस मंच पर वह आमतौर पर बीजेपी सुर इसकी सरकार के विरोधी बातें लिखती थी। इसके अलावा वह नागरिकता संशोधन कानून पर लोगों को जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही थी। वह एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई, जिसने इस सभा का आयोजन किया था, के नेताओं के लगातार सम्पर्क में थी।  जैसी आशंका व्यक्त की गई थी तुरंत कई सामाजिक संगठनों और सोशल एक्टिविस्टों ने उसकी रिहाई के लिए मुहीम शुरू कर दी। 

अब ठीक वैसा ही दिशा रवि, जिस पर आरोप है कि वह टूलकिट नाम की उस सोशल साईट का हिस्सा थी जिस पर स्वीडन की नामी सोशल एक्टिविस्ट ग्रेटा  थनबर्ग ने दिल्ली के आसपास धरना दे रहे किसानों के पक्ष में पोस्ट लिखी थी। दिल्ली पुलिस, जिसने दिशा को बंगलुरु में उसके घर से गिरफ्तार किया था, यह भी कहना है कि मूलत: इस पोस्ट को दिशा ने तैयार किया था ग्रेट ने तो बस इसे पोस्ट ही किया। उधर दिशा का कहना है कि उसने तो केवल इसकी दो पंक्तियों का संपादन मात्र किया था। लेकिन उसने यह बात छुपा ली वह कि वह ग्रेटा की एक संस्था फ्राइडे फॉरफ्यूचर की भारतीय इकाई की प्रमुख भी है तथा लगातार उसके संपर्क में रहती रही है। 

धीरे-धीरे यह बात भी सामने आई कि उसने मुंबई की निकिता जैकब तथा पुणे के एक एक्टिविस्ट और पेश से वकील शांतनु के साथ मिल उन्हीं एक अकाउंट  से टूलकिट बनाई गई थी। ये तीन कनाडा में बैठे खालिस्तानी संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के मुखिया धालीवाल और उसकी महिला साथी पुनीत के साथ गत कई दिनों से वीडियो चैट से संपर्क में थी। पुलिस ने इस चैट का और इनकी आपसी मेल के जरिये यह पता लगाया है कि उन्होंने 23 जनवरी को ही   ऐसी एक योजना का खाका तैयार किया था कि दिल्ली के आसपास धरना दे रहे किसान जब 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली करेंगे उस दिन “कुछ बड़ा“ होना  चाहिए। बाद में यही बड़ा किसानों के एक वर्ग द्वारा दिल्ली में प्रवेश कर लाल किले पर पीला झंडा फहराने जैसी एक बड़ी घटना के रूप में समाने आया। 

जैसाकि लग रहा था ठीक वैसे ही दिशा की गिरफ्तारी के अगले दिन कई सोशल संगठन बंगलुरु की सडकों पर उतर आये तथा उसे तुरंत रिहा करने की मांग करने लगे। उनका नेतृत्व वामपंथी इतिहासकार और सोशल एक्टिविस्ट रामचद्र गुहा कर रहे थी। इससे वामपंथी विचारधरा के कई लोग भी जुड़ गए। इनका कहना है दिशा रवि जो एक किसान परिवार से आती है, ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके लिए उनके खिलाफ देशद्रोह जैसा मुकदमा बनाया जाये। 

अगर हम पिछले कुछ दशकों पर नज़र डालें तो उससे यह बात सामने आती है कि बंगलुरु शुरू से हिंदूवादी विचारधारा के खिलाफत का गढ़ रहा है। कन्नड़ भाषा के प्रमुख लेखकों. विचारकों और सोशल एक्टिविस्टों ने सदा से ही कट्टर हिन्दूवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई है। फिर वे चाहे शिवराज कारंत, अनंत कृष्णमूर्ति, गिरीश कर्नाड तथा इंद्रा लंकेश हो। इनमें से लंकेश की हत्या लगभग ढाई साल पूर्व बंगलुरु में उनके घर के पास कर दी गयी थी। इस मामले में अब तक जितने भी लोगों को गिरफ्तार किया गया है वे सभी किसी ना किसी संगठन से जुड़े हुए थे।

ये सोशल एक्टिविस्ट अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उसके घटकों, जिनमें बीजेपी सबसे प्रमुख है, को अपना निशाना बनाते है। चूँकि कुछ सालों से केंद्र में तथा कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है इसलिए वे किसी भी बीजेपी विरोधी मुहीम के साथ जुड़ जाते है जैसाकि उन्होंने दिल्ली के किसान आन्दोलन के मामले में किया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)