हमारे देश में आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और शैक्षणिक सम्पन्नता थी। बाहर के लोग शिक्षा ग्रहण करने भारत में आते थे।
अंग्रेजों ने भारत की आर्थिक स्थिति को बहुत ही जीर्ण-शीर्ण कर दिया था। इससे पूर्व का भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था।
प्राचीनकाल में भारत में सोने के सिक्के चलते थे। इसीसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे देश में कितना सोना था।
इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए। विदेशी आक्रणकारियों और अंग्रेजों ने भारत को खुब लूटा।
(पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान)
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प्राचीन भारत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। प्राचीनकाल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। सोने की चिड़िया कहे जाने से तात्पर्य है कि हमारा देश भारत प्राचीनकाल में धन-धान्य से सम्पन्न था। यहां पर आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और शैक्षणिक सम्पन्नता थी। बाहर के लोग शिक्षा ग्रहण करने भारत में आते थे। फाह्यान, ह्वेनसांग, मेगस्थनीज जैसे विदेशी भारत में आकर शिक्षा ग्रहण किये और भारत के उन्नत आर्थिक और शैक्षणिक दशा का वर्णन किये है। उनका वृतान्त यह बताता है कि प्राचीनकालीन भारत सुसमृद्ध और सांस्कृतिक रूप से बहुत ही उन्नत दशा में था।
आज अगर हम भारत के इतिहास के बारे में बात करते है तो सबसे पहले अंग्रेजों की गुलामी का ही प्रसंग सुनने को मिलता है। अंग्रेजों ने भारत की आर्थिक स्थिति को बहुत ही जीर्ण-शीर्ण कर दिया था। इससे पूर्व का भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था। ऐसे क्या कारण रहे होंगे कि भारत को विश्वगुरू कहा गया? भारत को क्यों सोने की चिड़िया कहा गया। यदि हम भारत के प्राचीन राजाओं के बारे में बात करें तो उज्जेन के राजा विक्रमादित्य के बारे में चिंतन करना आवश्यक है। उनके ज्ञान, धर्म, विरता, न्याय, उदारता की कहानी जन-जन का कंठहार बनी हुई है। वे एक महान राजा थे उन्होंने भारत को सोने की चिड़िया का खिताब दिया।
भारत के इतिहास में एक ऐसा समय आया जब देश में बोद्ध और जैन रह गये थे। बौद्धों और जैनों ने देश में अहिंसा का वातावरण फैलाया अहिंसा भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र रही है। विक्रमादित्य ने भारत को सांस्कृतिक रूप से बहुत ही समृद्ध किया। राजा का कत्र्तव्य केवल धर्म की रक्षा करना ही नहीं बल्कि न्याय करना भी होता है। प्राचीन राजा लोग भारत को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए सुदूर देशों में व्यापार किया करते थे। भारत से मसाले और खाद्य सामग्री बाहर भेजी जाती थी। उसके बदले में विदेशों से सोना भारत लाया जाता था। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत में सोने की आमद बढ़ गयी। प्राचीनकाल में भारत में सोने के सिक्के चलते थे। इसीसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे देश में कितना सोना था। एक समय था जब भारत की गणना दुनिया के सबसे अमीर देशों में हुआ करती थी। भारत की समृद्धि से आकर्षित होकर विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर कई बार आक्रमण किये और यहां से प्रभूत मात्रा मे धन लूटकर ले गये। आक्रमण की यह परम्परा सदियों तक चलती रही।
मुहम्मद गजनवी, मुहम्मद गोरी जैसे विदेशी आक्रमणकारी ने भारत पर आक्रमण करके यहां के मंदिरों को तहस-नहस किये और प्रभूत मात्रा में धन लूटकर अपने देश ले गये। सोने की चिड़िया का दर्जा भारत को कई वजह से मिला हुआ था। उस समय भारत के राजाओं के पास प्रचूर मात्रा में धन-सम्पत्ति थी। उस समय भारत की कृषि व्यवस्था भी सुदृढ़ थी। यहां से मसाले कपास, लोहा विदेशोें में निर्यात होता था और वहां से उसके बदले स्वर्ण राशि प्राप्त कि जाती थी। भारत को सोने की चिड़िया कहने के पीछे जो एक सबसे बड़ा कारण था वह यहां का मयूर सिंहासन था। मयूर सिंहासन की अपनी एक अलग पहचान थी। जब नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया तो भारत से इस मयूर सिंहासन को वह अपने साथ ले गया। मयूर सिंहासन का निर्माण शाह द्वारा कराया गया था। इस सिंहासन के निर्माण में उसने काफी धन खर्च किया था।
एक अनुमान के मुताबिक इसमें लगभग एक हजार किलो सोने का प्रयोग हुआ था। इसके साथ ही साथ कई वेश कीमती बहुमूल्य हीरे, जवाहारात, कोहिनूर जैसे बहुमूल्य धातुएं भी लगी हुई थी। आज यह हीरा इंग्लैण्ड की महारानी के ताज की शान बढ़ा रहा है। उस समय भारत की आर्थिक स्थिति बहुत ही अच्छी थी। अंग्रेजों की कुटिल नीति के कारण भारत की स्थिति पूरी तरह से परिवर्तित हो गई। अंगे्रजों का उद्देश्य भारत से अधिक से अधिक धन निकासी का था। इसलिए अंग्रेज लोग शासन करने के स्थान पर टैक्स लगाकर अधिक से अधिक धन बटोर कर इंग्लैण्ड ले जाने में लगे हुये थे। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का अधिकांश धन विदेशों में चला गया। भारत आर्थिक रूप से जर्जर बन गया। इस समय भारत की सकल घरेलू उत्पाद बेशक ज्यादा न हो किन्तु ईसा पूर्व और ईस्वी की कुछ शताब्दियों में भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे अधिक थी। भारत के महान् शासकों ने अपने शासनकाल में राज्य की उन्नति के लिए कई कार्य किये थे।
जिससे उनका राज्य आर्थिक रूप से सुसम्पन्न था। कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान देश की आय ब्रिटेन के पूरे राजकोष से भी अधिक थी। इसके अतिरिक्त भारत में ही सबसे पहले वस्तु विनिमय प्रणाली चलती थी। आयात-निर्यात की दृष्टि से भी देखा जाये तो भारत का निर्यात उस समय अच्छी दशा में था। कृषि के जरिये उत्पन्न हुई वस्तुओं का व्यापार उन्नत दशा में था। इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए। विदेशी आक्रणकारियों और अंग्रेजों ने भारत को खुब लूटा। जिसका परिणाम यह रहा कि देश की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी। अगर भारत पर इन लोगों द्वारा शासन न किया जाता तो निश्चित रूप से आज हम यह कह सकते थे कि भारत एक सोने की चिड़िया है। लेकिन समय के परिवर्तन के साथ-साथ भारत का स्थान धीरे-धीरे दुनिया में कम होता चला गया और आज सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारतवर्ष आर्थिक रूप से सुसम्पन्न नहीं रह गया। अब सोने की चिड़िया मात्र मुहावरा ही है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)