बाबू जी ज़रा संभल के


प्रेरणा अरोड़ा सिंह की क़लम से

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माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुचर्चित एवं प्रसिद्ध "मन की बात" कार्यक्रम में सड़कसुरक्षा के क्षेत्र में सभी संस्थाओं एवं आमजन से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का आह्वाहन किया हैं। उन्होंने राजमार्गो पर लिखे हुए स्लोगन्स के कुछ उदहारण भी दिए जैसे "It is Highway Not a Runway"  या "Be Mr Late than Late Mr Be"... प्रधानमंत्री का यह संवाद उस समय आया हैं जब पूरा देश "सड़क सुरक्षा माह" (18 जनवरी से 17 फ़रवरी) मना रहा हैं। जी हाँ, पहली बार भारत ने सड़क सुरक्षा सप्ताह से सड़क सुरक्षा माह का सफ़र तय किया हैं और इसमें हमें 31 वर्ष का लंबा समय लग गया जबकि इस देश की सड़कें प्रतिवर्ष 1.5 लाख लोगों के ख़ून से लाल हो जाती हैं। 

पर "देर आयद दुरुस्त आयद".. कम से कम अब आगे ही बढ़ेंगे क्योंकि यह एक सही दिशा में बढ़ने का छोटा सा संकेत हैं.. हालाँकि सड़क पर सुरक्षित व्यवहार वर्ष के 365 दिन एवं दिन के 24 घंटे आपेक्षित हैं और सारे प्रयास इसी को केंद्र में रखकर किये जाना इस समय का सबसे आवश्यक क़दम हैं। आशा करते हैं कि प्रधानमंत्री देश की आम जनता के जीवन को सड़क पर सुरक्षित करने के लिए ठोस क़दम उठाएंगे जैसे उन्होंने कोविड महामारी से लड़ने के लिए उठाये हैं।

पर क्या सिर्फ प्रधानमंत्री एवं सरकारी तंत्र के क़दमों से ही इन मौतों से पार पायीं जा सकती हैं? नहीं बिलकुल नहीं..जब तक भारत का प्रत्येक नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी का सही तरह से निर्वहन नहीं करेगा तब तक हम इन असमय मौतों को नहीं रोक सकते। तो क्या करना होगा हम सबको? 

जवाब कबीर जी के इस दोहे में समाया हुआ हैं - 

"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, 

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।"

वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटनाओं का सबसे मुख्य कारण "तेज़ गति" में वाहन चलाना ही हैं और समाधान छुपा हुआ हैं कबीर के दोहे में.. धीरे चलों सुरक्षित रहों"। यह सिर्फ कहने के लिए नहीं हैं.. यह करके भी दिखाया हैं #safespeedchallenge की महिला चैलेंजरस ने.. जी हाँ, हाल ही में पाँच महिला चालकों ने "सुरक्षित गति" एवं "सुरक्षित दूरीं" की पालना करते हुए वाघा बॉर्डर अमृतसर से कन्याकुमारी का सफ़र सुरक्षित तरीके से पूरा किया हैं और भारत के नागरिकों को यह चुनोती भी दी हैं कि अग़र हम चाहे तो हम ऐसा कर सकते हैं बस जरुरत हैं "सुरक्षित व्यवहार" को अपनी "आदत" बनाने की


 यहां मैं वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के एक प्रसंग का भी वर्णन करना चाहूंगी कि हो सकता हैं कि आप के पास सभी संसाधन हो परन्तु सही समय का होना भी उतना ही आवश्यक हैं और हमें निर्णय लेने की जल्दबाज़ी से बचना चाहिए जैसे भगवान श्री राम ने किया था। जब श्रीराम ने बाली का वध करके सुग्रीव को राजा घोषित कर दिया था तो हनुमान जी ने श्रीराम से कहा कि अब हमें तुरंत रावण से युद्ध शरू कर देना चाहिए और माता सीता को वापस ले आना चाहिए परंतु श्रीराम ने यह कहकर मना कर दिया की अभी वर्षा ऋतु चल रही हैं और इस समय युद्ध नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस ऋतु में हमारी सेना को ख़तरा हो सकता हैं अतः हम शरद ऋतु तक इंतज़ार करेंगे और सही समय पर ही युद्ध करेंगे । 

दोस्तों बस यही बात हमे सड़क पर ध्यान रखनी होती हैं कि जल्दबाज़ी में हम कई अनचाहे ख़तरे मोल ले लेते हैं जिनसे बचा जा सकता हैं अग़र थोड़ा सा इंतज़ार कर लिया जाये.. धीमी सुरक्षित गति एवं सुरक्षित दूरीं बनाकर चलने में थोड़ा समय जरूर ज्यादा लग सकता हैं परंतु वो हमें सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचने की गारंटी भी देता हैं।

तो बाबू जी ज़रा धीरे चलों। ज़रा संभल के चलों। ज़रा देखके चलों और सुरक्षित रहों। ऐसा करके आप देश सेवा एवं विकास में भी अपना योगदान दे सकते हैं।

सफ़र का आनंद लीजिये..

सुरक्षित चलिये..

सुरक्षित पहुंचिये।