(लेखक ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार, चर्चित पर्यावरणविद, राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष व राजकीय इंटर कालेज,एटा के पूर्व छात्र हैं।)
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पद्मश्री, पद्मविभूषण और लगातार तीन बार फिल्मफेयर आदि अनन्य पुरुस्कारों से सम्मानित प्रख्यात गीतकार गोपाल दास नीरज चलते-फिरते महाकाव्य थे। वह गर्व के साथ कहते थे कि आत्मा का शब्द रूप है काव्य...। मानव होना यदि भाग्य है तो कवि होना मेरा सौभाग्य...। मेरी कलम की स्याही और मन के भाव तो मेरी सांसों के साथ ही खत्म होंगे। उनका मानना था कि मेरे 1965 में आई फिल्म "नई उमर की नई फसल" का गीत 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे' और 1971 में आई ''जोकर'' फिल्म के गीत 'ए भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी' इन दोनों में जीवन का दर्शन छिपा है।
असलियत में प्रेम के गीतों के लिए ख्यात नीरज जी जीवनभर प्यार के चक्रव्यूह से निकल नहीं पाये या यूं कहैं कि वह प्यार के लिए तरसते रहे। वह बात दीगर है कि उन्हें समर्थकों-प्रशंसकों और देश की जनता ने अपार प्यार-दुलार और सम्मान दिया लेकिन उनके अंतस में कहीं न कहीं प्यार की कमी जरूर रही। गीतों में वह पीडा़ अक्सर बाहर आ ही जाती थी। उनका यह गीत इसका प्रमाण है:- देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा।
मुझे गर्व है कि वह मेरे राजकीय इंटर कालेज, एटा के छात्र रहे और अक्सर बातचीत में वह इसका उल्लेख भी जरूर करते थे। हम सब पूर्व छात्रों ने भाई संजीव यादव के संयोजकत्व में जब 2014 में कालेज का शताब्दी समारोह आयोजित किया था, अस्वस्थता के बावजूद वह उसमें आये थे।उस समारोह के वह मुख्य अतिथि थे। उस समय उन्होंने कहा था कि आज मैं अपनी शाला में बरसों बाद आकर अभिभूत हूं। मुझे गर्व है कि मुझे अपने कालेज के शताब्दी समारोह में सहभागिता का सौभाग्य मिला। उस समय छात्रों की मांग पर अपने संस्मरणों और गीतों से हजारों मौजूद छात्रों को उन्होंने सम्मोहित सा कर दिया था।
एटा में उन्होंने पचास के दशक में अपने मामा जी प्रख्यात वकील हर नारायण जौहरी साहब के यहां रहकर अध्ययन किया। उनके बारे में मुझे मेरी मां बताया करती थीं कि बचपन से ही वह भगवान शिव के परम भक्त थे। उस समय जब वह कुंए पर स्नान करते थे तो उस समय ' महामंत्र है यह कल्याणकारी, जपाकर जपाकर हरिओम तत्सत, हरिओम तत्सत' गुनगुनाया करते थे। मैंने अक्सर खुद देखा है कि उनका यह शेर और गीत बहुत ही पसंद किया जाता था मुशायरों और कवि सम्मेलनों में ' इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में, न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में' और 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे।' वह भले इटावा जिले में पैदा हुए लेकिन एटा जिले और जीआईसी को अपने इस विलक्षण प्रतिभा के धनी सरस्वती पुत्र पर हमेशा गर्व रहेगा। उनकी जयंती पर हम सबका शत शत नमन। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार हैं)