गांधी जी आज भी प्रासंगिक हैं : ज्ञानेन्द्र रावत

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गांधीजी बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक समर्थ और अनूठे सत्याग्रही संत योद्धा थे जिन्होंने देशवासियों को अपने जमाने के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के खिलाफ नि:शस्त्र खडे़ होने का साहस और साधन दिया।असलियत में वह दया, शांति, करुणा,सेवा व त्याग की प्रतिमूर्ति थे।

यदि अल्बर्ट आइंसटाइन की मानें तो वह अपनी जनता के ऐसे नेता थे जिसे किसी बाह्य सत्ता की सहायता प्राप्त नहीं थी। उनकी सफलता न चालाकी पर आधारित थी न किसी शिल्पिक उपायों के ज्ञान पर। उन्होंने योरोप की पाशविकता का सामना सामान्य मानवीय यत्न के साथ किया।

उन्होंने आगे कहा कि- "आने वाली पीढी़ शायद ही मुश्किल से यह विश्वास कर सकेंगीं कि गांधीजी जैसा हाड़-मांस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा।"

अमेरिकी सेनापति मैक आर्थर ने कहा था कि-" वह एक ऐसा महापुरुष था जो अपने जमाने से कहीं आगे जीता था। किसी न किसी दिन दुनिया को उनकी बातें सुननी पडे़ंगीं नहीं तो दुनिया का विनाश हो जायेगा।"

ऐसा आध्यात्मिक,आधिभौतिक और नैतिक शक्ति संपन्न महात्मा देवात् युगों-युगों में पैदा होता है। ऐसे महापुरुष की आज के ही दिन 1948 में एक सिरफिरे आतंकवादी ने हत्या कर दी। अहिंसा के पुजारी ऐसे महामानव के बलिदान दिवस पर आदर, श्रृद्धा और सम्मान सहित शत शत नमन।

वह आज भले हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार, दर्शन और बताया मार्ग आज भी प्रासंगिक है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार हैं। हम आभारी हैं रावत साहब के जिन्होंने अपनी ख़राब ताब्यात के दौरान भी हमारे पाठकों के लिए गाँधी जी पर अपने विचार भेजे))


लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं)