एक नज़र : नारी-पुरुष संबंधों पर

लेखिका : रश्मि अग्रवाल

नजीबाबाद। 9837028700

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हमनें मान लिया कि आज हम लंका में रह रहे, पर तब रावण जैसा वचनबद्ध विचारों वाला शासक व सीता जैसी, अपने स्त्रीत्व की रक्षा करने वाली स्त्री दोनों ही धर्म व कर्म से मज़बूत थे। 

सामाजिक समरसता की बात करें तो स्त्री व पुरुष एक-दूसरे के पूरक थे, हैं और रहेंगे पर वर्तमान परिपेक्ष्य में जो बदल रहा, वह ठीक नहीं उनमें विदू्रपता आ गई है। जो तरुणियाँ हैं, उनके अन्दर बहुत चांचल्य आ गया और वो बहुत अधिक द्रुतगति से प्रतिस्पर्धा की विचारधारा से आगे बढ़ना चाहती हैं। मैं तो आश्चर्यचकित होती हूँ कि नयी पीढ़ी के जीवन में ये कैसा प्रगतिवाद? ये श्रेष्ठता का अहं कहीं न कहीं हमारी प्रत्येक अभिव्यक्ति में चाहे वो प्रणय अभिव्यक्ति, वात्सल्य या किसी भी प्रकार की हो, वो ये सम्पे्रषित करती है कि हम (पुरुष) संरक्षक हैं और आप (महिला) संरक्षित हैं। इसी खींचातानी में कहीं न कहीं उत्पन्न ‘तनाव पुरुष सेक्स द्वारा निकलता, इसके लिए चरमराता सामाजिक ढांचा जिम्मेदार, जहाँ सामाजिक विषय को विशेषकर स्त्री-पुरुष संबंधों को तुलनात्मक और गुणात्मक रूप से देखा ही नहीं जाता क्यों?