(लखनऊ यूपी)
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नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक नये अध्यायन में पता चला है कि कार्बन डाईऑक्सा्इड तथा अन्यए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सिर्जन में कटौती के लिये मजबूत और तीव्र कदम उठाने से अगले 20 वर्षों में ग्लोनबल वार्मिंग की दर कम करने में मदद मिलेगी। अध्यीयन में रेखांकित किया गया है कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिये फौरी कदम उठाने से मौजूदा जिंदगी में ही फायदे मिल सकते हैं। इनके लिये भविष्यक में लम्बा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
वैज्ञानिक पहले ही इस बात से सहमत हैं कि अगर अभी से प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में तीव्र और गहन कटौती की जाए तो इससे इस शताब्दी के उत्तरार्द्ध में वैश्विक तापमान में बढ़ोत्त्री को सीमित किया जा सकता है। हालांकि अगले कुछ दशकों में अति अल्पकालिक लाभ हासिल करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है। खास तौर पर वैश्विक वातावरण और महासागरीय प्रणालियों के कुदरती चक्र, तापमान में भी उतार-चढ़ाव का कारण बन सकते हैं जो जलवायु पर इंसानी गतिविधियों के प्रभावों को अस्थाई रूप से मास्कत कर सकते हैं।
मगर लीड्स यूनिवर्सिटी द्वारा विभिन्न स्रोतों से बड़े पैमाने पर हासिल आंकड़ों को मिलाकर एक नए तरीके से किए गए अध्ययन में प्राकृतिक परिवर्तनशीलता से मानव प्रेरित वार्मिंग को कहीं कम समय के पैमाने पर सुलझाया गया है।
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित इस अध्ययन में विभिन्न जलवायु मॉडल्स के हजारों सिमुलेशंस के साथ-साथ, महसूस की गई प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता के अनेक अनुमानों का इस्तेमाल किया गया ताकि यह पता लगाया जा सके कि अगले दो दशकों में उत्सर्जन में कटौती के विभिन्न स्तर ग्लोबल वार्मिंग को किस तरह प्रभावित कर सकते हैं।
रिपोर्ट में उभरे तथ्य यह दिखाते हैं कि पैरिस समझौते के अनुरूप प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाए जाने से और खासकर वैश्विक तापमान में वृद्धि को औद्योगिक युग से पहले के स्तरों से डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे बनाए रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के मकसद से उत्सर्जन में कटौती किए जाने से अगले 20 वर्षों के दौरान वार्मिंग पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा। प्राकृतिक परिवर्तनशीलता को ध्यान में रखने के बावजूद यह प्रभाव नजर आएगा।
दरअसल वार्मिंग की दर, जो कि पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत हो गई है, का खतरा प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में तीव्र और गहन कटौती के साथ जीवाश्म ईंधन पर खासी निर्भरता जारी रखने वाले भविष्य के 'औसत' के मुकाबले 13 गुना कम हो जाएगा। जीवाश्म ईंधन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की स्थिति में अगले 20 वर्षों के दौरान वैश्विक तापमान में एक से डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तथरी देखी जा सकती है। इसका मतलब यह है कि वर्ष 2050 से काफी पहले ही पेरिस समझौते के तहत व्यक्त की गई प्रतिबद्धता नाकाम साबित होगी।
अध्ययन की मुख्य लेखक डॉक्टर क्रिस्टीन मैक्केना लीड्स में पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च फेलो हैं और वह यूरोपीय संघ द्वारा वित्त पोषित कॉन्ट्रेै न परियोजना पर काम कर रही हैं।
मैक्केना ने कहा ‘‘हमारे नतीजे दिखाते हैं कि प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में तीव्र और गहन कटौती करने से सिर्फ भावी पीढ़ियां ही फायदा नहीं महसूस करेंगी। अगर अभी से कदम उठाए गए तो इसका मतलब यह होगा कि हम आने वाले कुछ दशकों में ग्लोबल वार्मिंग को तेजी से बढ़ने से रोक सकते हैं। साथ ही दीर्घकाल में तापमान में बढ़ोत्तरी को सीमित करने के अपने लक्ष्य के करीब पहुंच सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इसके जरिए हमें उन प्रभावों को टालने में भी मदद मिल सकती है जो तापमान में अधिक तेज और चरम बदलाव के जरिए उत्पन्न हो सकते हैं।
मैक्केना ने कहा इस वक्त दुनिया का तापमान प्रति दशक 0.2 डिग्री सेल्सियस के हिसाब से बढ़ रहा है। अगर हमने फौरी कदम नहीं उठाए तो हम साफ तौर पर पैरिस समझौते का उल्लंघन करने के खतरे से गिर जाएंगे इस रिपोर्ट में उभरे निष्कर्ष सरकारों तथा गैर सरकारी पक्षों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के और मुश्किल लक्ष्य तय करने तथा शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य के साथ कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की प्रदूषण मुक्त भरपाई के लिए और अधिक प्रोत्साहित करेंगे। (लेखक के अपने विचार एवं अध्ययन है)