खेल-खेल में सुलझेगी गणित की जटिलताएँ

राष्ट्रीय गणित दिवस दिसम्बर 22 पर विशेष

नवीन जैन (वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, राजनीतिक विश्लेषक)

इंदौर (एमपी) मोबाइल 9893518228

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जीवन लम्बा नहीं, छोटा होना चाहिए। यह बात स्वामी विवेकानंद ने कही थी। वे स्वयं क़रीब 39 वर्ष की उम्र में बिदा हो गए, मग़र अपने क्रांतिकारी विचारों से दुनिया भर के युवाओं को आज भी प्रेरणा देते हैं। स्वामीजी की तरह ही भारत में अनेक नाम हुए हैं, जिनमें से आर्यभट्ट का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है, क्योंकि आम धारणा है कि शून्य ऊर्फ़ ज़ीरो उर्फ़ सिफ़र का आविष्कार उन्होंने ही किया था। कहते हैं शून्य नहीं होता तो गणित और काल गणना कदाचित आज जैसी नहीं होती। इसी प्रथा को स्व. श्रीनिवासन आयंगर रामानुजन ने आगे बढ़ाया, जो आधुनिक भारत के महान गणितज्ञ माने जाते हैं। उन्हीं के जन्म दिवस दिसंबर 22,1887, निधन अप्रैल 26,1920 के अवसर पर देश में गणित दिवस मनाया जाता है। 

इस आयोजन की घोषणा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दिसंबर 22, 2012 को चेन्नई में की थी। सनद रहे कि चेन्नई का नाम कभी मद्रास हुआ करता था, और स्व. रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय में गणित के ही प्रोफेसर थे। स्कूली बच्चे गणित विषय से आम तौर पर डरते या बचते रहे हैं। इसका एक कारण यह भी रहा है कि इस विषय को लेकर अफवाह का माहौल फैला हुआ है, जबकि उक्त सब्जेक्ट से यदि बच्चों को जोड़ना है, तो उनमें जिज्ञासा एवं कड़ी मेहनत की भावनाएं जगाने की ज़रूरत पड़ती है। जब हमारे ही देश के लोग चांद और मंगल गृह तक की सैर कर आए हैं, तब यह नहीं माना जा सकता कि नवनिहालों का अंकों के इस खेल में दिमाग रवा नहीं हो सकता। कहा तो यहाँ तक जाता है हमारा पूरा वजूद ही अंकों से पूरी तरह घिरा हुआ है तथा मैथ्स है, तो हम हैं। 

दिक्कत यह भी है कि बच्चों में इस मनोरंजक विषय को लेकर भय क्यों बना रहता है, इसका विशेष रूप से भारत में बहुत कम मनोविश्लेषण हो पाया है। किसी समस्या के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता, मग़र उक्त इश्यू को हल करने के लिए लगातार शोध किए जाएं तो गणित सीखना भी दूर की कौड़ी नहीं है। इस विषय से बचने वाले बच्चों की शिकायत रहती है कि हमें फार्मूला देकर ही अक्सर पढाया जाता है। फार्मूले को यूँ तो सूत्र भी कहते हैं, और इसी सूत्र को एक तरह से रटना पड़ता है। रटने को कहीं पर भी स्वस्थ पैमाना नहीं माना जा सकता। बच्चे अक्सर कहते मिल जाएंगे कि सूत्र ज़रा सा उलटा सीधा हुआ कि नहीं कि गए काम से। फार्मूला याद कर लेने से सवाल तो हल हो जाता है, परीक्षा फल भी अच्छा आता है, लेकिन हमारी बुनियादी कंसेप्ट या जिज्ञासा शांत नहीं हो पाती कि उक्त फार्मूला बना कैसे? 

यदि यह तार्किक कवायद लगातार करवाई जाती रहे, तो हम नए पैटर्न्स भी विकसित कर सकते हैं। कई बच्चे इतने विचारशील होते हैं कि वे गणित को एब्स्ट्रैक्ट विषय मानते हैं, जिसमें खुले दिमाग की आवश्यकता पड़ती है। यूँ भी निसर्ग के हरेक राज के पीछे कोई न कोई तर्क छिपा होता है। एक्सप्लोरिंग इनफिनितीज के संस्थापक नीलकंठ भानुप्रकाश मैथ्स के प्रति बच्चों में उत्साह बढाते रहने की दिशा में अपने नए नए प्रयोग यानी खेल खेल में अंकों के खेल को समझाने में इतने सफल हुए हैं कि लगभग एक लाख बच्चों का डर काफ़ूर हो गया है। रेजिंग ए मेथेमेटिशियन फाउंडेशन के सह सह संस्थापक विनय नायर कहना है कि वे बच्चों को स्वयं को एक्सप्लोर करने के लिए प्रेरित करते हैं।नायर केम्स एवं प्रोग्रेम आयोजित करते हैं, जिनमें अलग अलग प्रकार के गणित का एक्सपोजर दिया जाता है। 

इन एक्पोजर के तहत सिखाया जाता है कि अंक गणित का रिश्ता बीज गणित से क्या है। बीज गणित से ज्यातिमितिय का क्या रिश्ता है और कम्प्यूटर विज्ञान से गणित से क्या सम्बंध रखता है।नायर का संस्थान शिक्षा देता है कि खेल खेल में किस प्रकार लॉजिकल थिंकिंग एवं स्ट्रेटेजी बनाई जाती है। एक रुकावट समय सीमा की भी है, जिसके तहत तय समय में सवाल हल करने से बच्चे भय या आतंकित तक होने लगते हैं। एक सोच यह भी ठीक नहीं है, कि गणित का जानकार ही बुद्धिमान बच्चा होता है। एक उपाय यह भी हो सकता है कि मैथ्स पढ़ाने का जो दशकों पुराना सिलसिला है, उसे तोड़ा जाए। दैनिक कामकाज में गणित कितना उपयोगी है, इसकी भी समझ उन्हें दी जानी चाहिए। जानकार, तो गणित से डर को विश्व व्यापी समस्या मानते है जबकि कहा जाता है कि गणित का ज्ञान जागरूक ही नहीं, आत्मविश्वास तथ एकाग्रता बढ़ाता है। 

कुछ बच्चे ऐसे भो हैं, जो स्कूल तो नहीं जाते, लेकिन घर पर ही इस जटिल एवं पेचीदा विषय को स्वाध्याय करके  नाम कमाते हैं। कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें उन जगहों की सैर करवाई जाती है, जहां दुनिया के महान गणितज्ञों में शुमार रामानुजन की शिक्षा दीक्षा हुई। हैदराबाद का एक बालक कैलकुलेटर में तो नाम कमा ही चुका है, साथ ही इस हाई टेक सिटी में हितार्थ अजय सिंघानिया एक ऐसा बालक है जिसे अंक बहुत पसंद है। इस बालक की तुलना आप किसी छोटे मोटे गणित वैज्ञानिक से कर सकते हैं, क्योंकि मैथ्स के प्रति दीवानगी के चलते उसने भाग का नया तरीका भी ईज़ाद कर लिया है, जिसे डिवीजन पद्धति कहा जाता है। यह बच्चा अपने साथ दूसरों को भी जोड़ना चाहता है। 

जो बच्चे गणित में दिलचस्पी रखते हैं, उन्हें अवकाश के दिनों में क्रेश कोर्स करने भी भेजा जा सकता है, क्योंकि इस प्रकार के छोटे छोटे प्रयोग कई जगह होने लगे हैं, जैसे एक और जटिल विषय इंग्लिश  जैसे गणित के भी कुछ विश्वसनीय निजी संस्थान प्रत्येक जगह मौजूद है। स्मरण रखा जाना चाहिए कि भारत मे ही 4 नवम्बर 1929 को मानव कंप्यूटर स्व. शकुंतला देवी का जन्म हुआ था जिनके जीवन पर कुछ महीनों पहले एक फ़िल्म आई थी। जिसका नाम था शकुंतला देवी और इसमें विद्या बालन ने शकुंतला देवी का रोल अदा किया था। (लेखक के अपने विचार हैं)