"नाम लल्लू है मेरा, मैं सबकी खबर रखता हूं" वरिष्ठ पत्रकार एलएल शर्मा

 कुलदीप शर्मा की फेसबुक वॉल से

वरिष्ठ पत्रकार एलएल शर्मा के दैनिक नवज्योति समाचार पत्र में 31 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर पत्रकार कुलदीप शर्मा ने फेसबुक वाल पर लिखा आलेख : 

जयपुर। चतरपुरा के लल्लू लाल, जो कि दैनिक नवज्योति के चीफ रिपोर्टर के रूप में एलएल शर्मा कहलाये, उन्होंने दैनिक नवज्योति में अपने इकत्तीस साल पूरे कर लिए हैं, उन्हें नवज्योति में अपनी पत्रकार यात्रा के ग्यारह हजार तीन सौ पन्द्रह दिन और दो लाख इकत्तहर हजार पांच सौ साठ घंटे से अधिक पूरे करने पर हार्दिक बधाई, मैं रात दस बजे यह लिख रहा हूं और इसमें ये घंटे और सम्मिलित हो चुके हैं। दो अक्टूबर, 1936 को कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी ने नवज्योति की शुरूआत की थी और पत्रकारिता का यह वटवृक्ष सोलह साल बाद अपनी शताब्दी मना रहा होगा, तब भी एलएल शर्मा जी अपनी इसी ऊष्मा और उत्साह के साथ पत्रकारिता की रौनक होंगे, यह विश्वास तो है ही और साथ ही उन्हें अग्रिम शुभकामनाएं भी हैं।

 

पत्रकारिता, साहित्य और कला ऐसे रचनात्मक और सृजनशील क्षेत्र हैं, जिनमें जैसे-जैसे साधक की उम्र बढ़ती है, उसका ओज निखरता है, इस लिहाज से तो अभी एलएल शर्मा जी की पत्रकारिता अपनी युवावस्था में है और उन्हें कई कीर्तिमान बनाने शेष हैं। लेकिन नवज्योति में बिताये उनके इकत्तीस वर्ष पर यदि मैं आज अगर कुछ नहीं कहूं तो यह मेरी कृतघ्नता होगी। वैसे, सहृदय पत्रकार रोशनलाल जी शर्मा पहले ही यह कह चुके हैं कि यदि कभी मौका आया तो वे ' लल्लू जी ' पर किताब जरूर लिखना चाहेंगे...और मैं समझता हूं कि लल्लूजी पर किताब या उपन्यास जो भी लिखा जाये, वह एक ऐसी रचना होगी, जो कि पत्रकारिता और समाज के लिए एक अनमोल धरोहर होगी। ऐसा क्यों ? इसके लिए हम इकत्तीस साल पहले के चतरपुरा गांव में पहुंचना होगा।

जयपुर शहर से करीब तीस किलोमीटर दूरी पर गोनेर के पास बसे एक छोटे-से चतरपुरा गांव‌ के एक हरियाणा ब्राह्मण किसान परिवार में जन्मे ' लल्लू जी ' ने दांतली और गोनेर के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और स्कूली शिक्षा के बाद जयपुर के राजस्थान कॉलेज में प्रवेश‌ लिया। चतरपुरा उन दिनों महज पचास घरों की ढ़ाणी था, इस ढ़ाणी में पहली बार सड़क भी लल्लूजी के पत्रकार बनने के बाद उनके प्रयासों से बनी थी। लल्लूजी के स्कूली दिनों में चतरपुरा सिर्फ सड़क से ही वंचित नहीं था, वहां अखबार भी नहीं पहुंचता था। 

....और उसी चतरपुरा से एक ऐसा पत्रकार निकला, जिसकी बेबाकी ने श्री प्रणब मुखर्जी को प्रेरित किया कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद अपने नाम के आगे लगा ' दा '  उच्चारण हटा लें। दरअसल, राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित होने के बाद वर्ष 2012 में श्री प्रणब मुखर्जी जयपुर आये तो वे होटल क्लार्क आमेर में सभी कांग्रेस विधायकों से मिले। इस मौके पर वे पत्रकारों से भी मुखातिब हुए और स्वभाव के अनुसार बेबाक एलएल शर्मा जी ने उनसे पूछा कि - "  राष्ट्रपति बनने के बाद भी क्या वे खुद को ' प्रणब दा ' कहलाना पसंद करेंगे। " 

इस एक पंक्ति ने विलक्षण राजनेता और अध्येता -लेखक प्रणब मुखर्जी जी को गहराई तक झकझोरा, उन्होंने एलएल शर्मा जी के बारे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान से जानकारी ली और ' लल्लूजी ' से अलग से भी बातचीत की। सबसे जोरदार बात यह रही कि, राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने पहला आदेश यही निकाला कि उन्हें ' प्रणब दा ' नहीं कहा जाये और श्री प्रणब मुखर्जी ही लिखा जाए। 

जब लल्लूजी स्कूल में थे, तभी उनमें यह बेबाकी जग गई थी। वे चतरपुरा, दांतली और आस-पास के गांवों की जन -समस्या साईकिल पर घूमकर जानते और उन्हें अखबार के ' पाठकों के स्तंभ ' में लिखने भेजा करते। ऐसा करते हुए वे बतौर स्टिंगर राष्ट्रदूत के लिए अपने क्षेत्र के गांवों की खबरें भेजने लगे और 29 दिसंबर, 1989 को दैनिक नवज्योति से बतौर स्टिंगर जुड़ गये। उनमें इस कदर जुनून था कि रोजाना गांव-गांव साईकिल से घूमकर सांगानेर तहसील की खबरें जुटाते और फिर साईकिल पर ही उसे जयपुर शहर में स्टेशन रोड स्थित दैनिक नवज्योति कार्यालय में देने आते।

एलएल शर्मा जी

गांवों के हाल-चाल जानने जब लल्लूलाल शर्मा गांव की चौपाल पर बैठे लोगों से बतियाने लगे तो उनमें एक आक्रोश‌ भी हिलोरें लेने लगा और नब्बे के दशक की शुरूआत में उन्होंने तय कर लिया कि यदि इन गांवों की तस्वीर बदलनी है तो उन्हें स्टिंगर से ऊपर उठकर बड़ा पत्रकार बनना ही होगा। यहीं से उनमें एक ' जिज्ञासु पत्रकार ' कौंधा और सांगानेर तहसील में 137 बीघा सरकारी जमीन पर फर्जी दस्तावेजों से कब्जे के खिलाफ उनकी कलम कौंधी और जमाने का परिचय एक निर्भीक युवा पत्रकार से हुआ। 

उस वक्त मुख्यमंत्री श्री भैरोंसिंह जी शेखावत थे। उन्होंने इस खबर पर संज्ञान लिया और यह जमीन कब्जे से मुक्त हुई। जब शेखावत जी महल आवासीय योजना का शिलान्यास आये तो उन्होंने हजारों लोगों के सामने इस नौजवान पत्रकार के साहस और अन्वेषी पत्रकारिता की भरपूर तारीफ की। वह दिन‌ था जब चतरपुरा के लल्लूलाल शर्मा पूरे इलाके में गोनेर से सांगानेर तक चप्पे-चप्पे में ' लल्लूजी ' के रूप में मशहूर हो गये और उस दिन से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

लल्लूजी ने दैनिक नवज्योति के क्राइम रिपोर्टर के रूप में काम करना शुरू किया। अपनी मोटर साईकिल से हर वारदात की सूचना पर मौके पर भागकर पहुंचना और पुलिस से बिना दबे अपनी ' छठी इंद्री ' से जांच-पड़ताल करना। वह दौर ना मोबाइल का था और ना ई-मेल का। टीवी चैनल भी नहीं थे, इसलिए क्राइम रिपोर्टर भी कम थे, उस दौर में भी पुलिस तंत्र से अलग अपनी बेबाक छान-बीन करना, अपने गहरे सोर्स बनाना और रात को एक बजे तक ऑफिस में जूझना। उसके बाद पूरे उत्साह के साथ ऑफिस छोड़ना और अगले दिन सुबह ग्यारह बजे उसी जोश के साथ ऑफिस पहुंच जाना। दिन में यादगार, मोर्चरी के चक्कर लगाना, हर मौके पर पहुंचना...यह सब करते हुए सन् 1997 तक ' लल्लूजी ' एक कामयाब क्राइम रिपोर्टर बन चुके थे। उन्होंने कई उलझे हुए चर्चित हत्याकांडों और संगीन अपराधों में पुलिस को आगे बढ़कर सुराग दिये, यह उनकी अन्वेषी पत्रकारिता का ही नतीजा था। शिवानी जड़ेजा तेजाब कांड में आरोपित महिला का उन्होंने हवाई जहाज की यात्रा में इंटरव्यू लेकर तहलका ही मचा दिया था। सीबीआई उस महिला को खोज रही थी और लल्लूजी ने उसका कई शहरों में पीछा कर उसे हवाई यात्रा में जा खोजा था। 

यही वह समय-काल था, जब मैंने पत्रकारिता में कदम रखा ही था। इसके बाद अगले एक दशक तक टुकड़ों में ऐसे अनेक मौके आये, जब मैंने करीब पांच साल तक दैनिक नवज्योति में ' लल्लूजी ' के साथ काम किया। वे मेरे चीफ रिपोर्टर भी रहे। इसलिए मैं ' लल्लूजी ' के ' एलएल शर्मा ' बनने की यात्रा का चश्मदीद हूं। मेरे पास पत्रकारिता की कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन मेरे अंदर एक जिज्ञासा भाव था और जो व्यक्ति मेरे से कुछ फीट दूर अपने केबिन में बैठकर क्राइम रिपोर्टिंग करता था, मैं उसका हर हाव-भाव चुपचाप नोट करता था, वे किस तरह फोन पर खबर के लिए बातें करते हैं, किस तरह रिपोर्टिंग मीटिंग में उनका प्रस्तुतिकरण होता है और सबसे बढ़कर वे फील्ड में किस तरह से काम करते हैं, यह जानने-समझने के लिए मैंने लल्लूजी को बिना बताये उनकी कार्यशैली का बहुत ज्यादा अवलोकन किया।

क्राइम रिपोर्टिंग में झंडे गाड़ने के बाद एलएल शर्मा जी ने राजनीतिक और शासन सचिवालय की रिपोर्टिंग में कदम रखा तो यहां उनकी जन-परक, मिलनसार छवि उभर कर सामने आयी। लल्लूजी जो गांव-ढाणी के व्यक्ति हैं, असल किसान हैं, गांव‌ की संवेदनाओं से जुड़े हैं, समाज के मूल्यों की समझ रखते हैं और जिनकी जनता के हर वर्ग  तक गहरी पहुंच है। वे सुबह आठ बजे गांव के लोगों से मिलने-जुलने निकल पड़ते हैं। गांव-गांव में उनकी पैठ है। एक बार विधानसभा चुनाव में मतदान के दिन हम कुछ पत्रकारों ने दांतली, गोनेर का दौरा किया, लल्लूजी को बिना बताये। हमें वहां लोगों ने कहा कि यह सामान्य सीट होती तो ' लल्लूजी ' को विधायक चुनाव में कोई नहीं हरा सकता। कुछ युवाओं ने कहा कि - " जनता के एमएलए तो लल्लूजी ही हैं, सारे विकास कार्य वही कराते हैं। " सांगानेर से बस्सी तक हम उनकी लोकप्रियता अपनी आंखों से देखकर लौटे।

उन लल्लूजी को राजनीतिक पत्रकारिता में तो सफल होना ही था, क्योंकि उनकी जिंदादिली, बेबाकी, काम के प्रति जबर्दस्त जुनून ये सब बातें राजनेता हो या अफसर या कोई अदना सा कर्मचारी या फिर गांव का कोई साधारण किसान या मजदूर... लल्लूजी बहुत जल्दी अपनापन का रिश्ता बना लेते हैं और उनसे जुड़ा व्यक्ति हमेशा के लिए उन्हीं का हो‌ जाता है। उन्होंने जिला प्रशासन, शासन सचिवालय में भी ऐसे ही रिश्ते गहराई तक बनाये। लल्लूजी की भाषा में जो अपनापन और सादगी है, उसे ग्रामीण परिवेश नैतिक आभा प्रदान करता है। वे अपनी अंग्रेजी की कमी कभी छिपाते नहीं, लेकिन उनके पास जो ' दिल की जुबां ' है, वह ईश्वरीय देन है।

लेकिन कुछ और बातें भी लल्लूजी को दूसरों से अलग करती है, उनमें एक तो यह कि, वे इकत्तीस साल से नवज्योति से जुड़े हैं और इस अखबार के प्रति उनकी श्रद्धा अपार है। लल्लूजी को हमेशा इस बात का गर्व रहा कि वे नवज्योति जैसे प्रतिष्ठित अखबार से जुड़े हैं और यही अहसास उन्होंने अपने युवा सहयोगियों को कराया। इसलिए नवज्योति अखबार की संपादकीय संस्कृति में हमेशा एक गरिमापूर्ण विशिष्टता रही। लल्लूजी ऐसे चीफ रिपोर्टर हैं, जो हमेशा जिस जोश से रोजाना अखबार में आते हैं, उसी जोश से घर जाते हैं, मैंने कभी उन्हें थका-मांदा नहीं देखा और ना ही छुट्टियां लेते। उनमें काम करने की अद्भुत क्षमताएं हैं और सटीक विश्लेषण, दूरदर्शिता तथा स्मरण-शक्ति तो उनमें विलक्षण है।

दूसरी बात, लल्लूजी की मानवीय करूणा और संवेदना है, जिसने उन्हें पिंकसिटी प्रेस क्लब का पांच बार अध्यक्ष ही नहीं बनाया बल्कि पत्रकारों के घरों तक हृदय से भी जोड़ा है। उन्होंने पत्रकारों के हर सुख-दु:ख में आधी रात को भी उनका साथ दिया है। हालांकि बात पुरानी है, एक बार एक स्वतंत्र बुजुर्ग पत्रकार को आधी रात को किसी निजी विवाद में पुलिस ने थाने में बंद कर दिया, और दूसरे पक्ष से मिलकर संगीन धाराओं में झूठा मुकदमा दर्ज करने की कार्रवाई शुरू कर दी। मुझे जब यह जानकारी मिली तब मैंने लल्लूजी को फोन किया, रात डेढ़ बजे लल्लूजी ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक को थाने पर भिजवाया और उन पत्रकार को ससम्मान‌ रिहा कराया और जब पत्रकार रात ढ़ाई बजे घर सलामत पहुंच गये, तब जाकर लल्लूजी सोये। 

एक प्रसंग और है, जब हम पत्रकारों पर कोर्ट में शिवानी जड़ेजा तेजाब कांड की कवरेज के दौरान हमला हुआ और प्रेस फोटोग्राफरों के साथ हुई मारपीट के बाद हम रिपोर्टर भी हमलावरों से लड़-भिड़ लिए। पुलिस के एक थानेदार मुझ पर मुकदमा दर्ज करने के लिए पैंतरेबाजी करने लगे कि दोनों पक्षों पर मुकदमा होगा। लल्लूजी बीसियों पत्रकारों को लेकर तत्काल सदर थाने पहुंच गये और वहां पचास पत्रकार इकठ्ठे कर लिए। वह मोबाइल का दौर नहीं था, वर्ष 1998 की बात है, और लल्लूजी ने थाने के घेराव का एलान कर दिया। इसके बाद न्यायोचित पुलिस कार्रवाई हुई और पत्रकारों पर जानलेवा हमले को लेकर आरोपियों पर सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ, वे जेल गये।

मैंने लल्लूजी के साथ काम तो पांच साल ही किया है, लेकिन उनसे दिल से करीब तेईस साल से जुड़ा हूं। एक बार पत्रकारों के आधी रात को झोटवाड़ा थाने पर धरने के समय, वह भी पत्रकारों पर हमले का विषय था, मैं बात को समझ नहीं सका और दूसरों की बातों में आकर एलएल शर्मा जी पर गुस्सा हो गया। पचास पत्रकारों के सामने वे मेरी धैर्य से सारी बात सुनते रहे और बिल्कुल शांत रहे। मुझे देर रात घर आकर अपनी गलती का अहसास हुआ और मैं आत्मग्लानि का शिकार हो गया। सोचता रहा कि लल्लूजी भाईसाहब से दुबारा कैसे मिलूं ? लेकिन जब वे मिले तो मुझे गले लगा लिया। उन जैसी उदारता, बड़प्पन, मानवीय संवेदना मैंने शायद ही किसी और व्यक्ति में इतनी गहराई से देखी है। 

लेकिन एलएल शर्मा से जो सबसे सीखने की बात है, वह है उनका एक-एक व्यक्ति से जीवंत रिश्ता। क्राइम रिपोर्टिंग के समय उन्हें जयपुर शहर के हर थाने के सिपाहियों के गांव-नाम सब मुंहजुबानी याद थे और गहरे आत्मीय रिश्ते थे। ऐसा ही जुड़ाव उनका हर क्षेत्र में है, उन्हें हजारों लोगों के नाम -पते, किस्से सब याद हैं।

"नाम लल्लू है मेरा, मैं सबकी खबर रखता हूं" कुछ इसी तर्ज पर लल्लूजी ने पिछले तीन दशक में स्वयं को इस तरह विकसित किया है कि नवज्योति में उनके ' राजकाज ' कॉलम में भी बहुत गहरा मर्म और पैनापन होता है, वे जो लिखते हैं, वह दूर तक असर करता है। जिस बेबाकी से एलएल शर्मा ने श्री प्रणब मुखर्जी जी से बात की थी, यह बेबाकी उनकी जिंदगी का हिस्सा है, जिसने उन्हें लल्लूजी से एलएल शर्मा ही नहीं बनाया बल्कि वे हर उस नये पत्रकार के लिए एक पाठशाला हैं, जो जिंदगी में एक स्वप्न लेकर पत्रकारिता में आता है, मैं तो कहूंगा कि लल्लूजी जीवन के हर क्षेत्र में युवाओं के लिए पाठशाला हैं, प्रेरक तत्व हैं। 

उन पर कितना ही लिखो, लिखने का कोई अंत नहीं है। एक प्रखर पत्रकार, एक लौह-पुरुष व्यक्तित्व, एक संवेदनशील मनुष्य, उन पर बहुत कुछ लिखना शेष रहेगा... खुद एलएल शर्मा ने एक बार अपने बारे में लिखा कि "जीवन ऐसा जीयो जो अपनी गाथा खुद कहे। ऐसा ही जीवन कप्तान साहब ने जीया। "

अपने-आप में क्रांतिधर्मा आंदोलन और मूर्धन्य पत्रकार कप्तान दुर्गाप्रसाद जी चौधरी को आदर्श मानने वाले 'लल्लूजी' कप्तान साहब के रोपित दैनिक नवज्योति की चेतना-शक्ति बन हमेशा आगे बढ़ते रहें, यही कामना है।