लेखक : नवीन जैन
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक)
इंदौर (मप्र)
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अमेरिकी राष्ट्रपति के बेहद चर्चित माने जाने वाले चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जो बाइडेन से हाल में यादगार पराजय हुई है, उसके गहरे विश्लेषण में जो तो अभी पर्याप्त समय लगेगा, मग़र कुछेक मूल कारणों पर चर्चा हो सकती है। सबसे पहली बड़ी वजह यह लगती है कि ट्रम्प अति आत्मविश्वास का शिकार हो गए। उनकी यह खुशफहमी कदाचित इसलिए बनी थी कि चार साल पहले वे जब वे हिलेरी क्लिंटन से उक्त पद का चुनाव जीत गए थे। तब दुनिया भर के चुनावी पण्डितों ने उनकी इस फ़तेह के कारण दांतों तले ऊंगली दबा ली थी। खुद अनेकानेक अमेरिकी नागरिकों को लगा था कि तौबा यह कैसे हो गया। तब आशंका जताई गई थी कि कुछ विदेशी जासूसी एजेंसियों ने ट्रम्प का साथ देने का परिस्थिति अनुरूप कर्तव्य निबाहा था। दूसरा और कदाचित सबसे बड़ा सबब यह हो सकता है कि ट्रम्प ने मनमानी के तहत 48 या 50 प्रदेशों से घिरे महाशक्ति शाली कहे जाने वाले अपने वतन के स्वास्थ्य को ही एक ही झटके में दाँव पर लगा दिया। स्वास्थ्य सेवाओं में आज भी अमेरिका अवल्ल है, और हो सकता है रहेगा भी, लेकिन क्या कारण रहा कि उक्त राष्ट्रपति महोदय कोविड 19 या कोरोना के देशव्यापी संक्रमण को एक तरह से मजाक में लेते रहे।
उनकी गुस्ताखी की हद देखें कि जब इसी जान लेवा बीमारी की जकड़न में वे खुद,उनकी पत्नी एवं सहयोगी तक आ गए, तब भी वे आम लोगों के सम्पर्क में आने से नहीं बचे और जब हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर लौटे तो उनका यह बयान जमकर वायरल हुआ कि अब मैं फिर जीतूँगा क्योंकि मुझे फिर से अमेरिका को महान बनाना है। जानकारों का सोचना है कि यह भारत की तर्ज पर ही उड़ाया गया चुनावी लोकलुभावन गुब्बारा था, जिसे फूटना ही था। ट्रम्प शायद अपने देश की गिरती हुई अर्थव्यवस्था का लालीपॉप पकड़ा रहे थे, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था या इकोनॉमी किसी कच्ची हवेली की तरह भी नहीं है कि ध्वस्त होने की कगार ही पहुंच जाए। और तो और, भारत जैसे ग़रीब मुल्क की अर्थव्यवस्था भी कोविड-19 के अंधड़ में इतनी बेपटरी नहीं हुई कि आम जनता सकते में आकर आतंकित होने लगे।
अमेरिका में कोविड-19 से मृत एवं संक्रमित लोगों का पुष्ट और ताज़ा आंकड़ा बाहर आ जाए, तो आश्चर्य ही कीजै, क्योकि इसका दूसरा बवंडर ब्रिटेन में तो आ गया है। वहाँ एक दिसंबर तक फिर सख्त लॉक डाऊन घोषित कर दिया गया है। जब हालत यूके, भारत, ब्राजील में इतने बुरे थे, तो ट्रम्प के पास कौनसी जादू की पुड़िया या अमृत कलश था, जो उन्होंने मुल्क की तबीयत से ऐसा खिलवाड़ किया। कोविड-19 का कारगर टीका रूस ने सबसे पहले विकसित किया और भारत को बड़ी संख्या में उपलब्ध कराने का वादा भी कर दिया। ब्रिटेन की स्थिति भी कदाचित यही है, लेकिन ट्रंप सिर्फ घोषणाएं करते रहे। अगर अपनी इस यादगार शिकस्त के सबसे बड़े जिम्मेदार कोई हैं ,तो सिर्फ और सिर्फ ट्रंप साहब ही हैं। अब ट्रम्प सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दे रहे हैं। उन्हें रोका किसने है? वैसे ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ट्रम्प साहब की पसंद के माने जाते है। भारत में तो बस्ती का हारा हुआ पार्षद भी कोर्ट चला जाता है।कारण सामान्य तौर पर यह होता है कि कुर्सी पर उक्त वर्ग अपना जातीय हक मानता है। जो.बाइडेन ने लगातार लोगो को भरोसा दिलवाया कि उनके लिए अपने प्रत्येक नागरिक की जान सबसे प्यारी है।
उसकी रक्षा के लिए वे हर सम्भव प्रयास करेंगे, क्योंकि जनता ही नहीं रही तो सुदृढ अर्थव्यवस्था क्या कर लेगी। यदि इकोनॉमी में यही करिश्मा होता तो कोरोना की पहली खेप में अमेरिका में इतने लोग क्यों मरते? बाइडेन का यह भावुक बयान, विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका के पढ़े लिखे एवं जागरूक समाज पर भी कयामत जैसा असर कर गया, क्योंकि मनुष्य होने के नाते इतनी छोटी सी बात तो उनके गले भी उतरती न कि जान है तो जहाँ है। इस पूरे चुनाव अभियान की गहराई से पड़ताल की जाए, तो अमेरिकी समाज ने समझ यह दिखाई कि तमाम वैचारिक रस्साकशी के बावजूद देश हित में किस तरफ मुड़ना मुफीद रहेगा। भारत में तो ट्रम्प के हारने पर यहाँ तक कहा जा रहा है कि कोई ज़रूरी नहीं है कि रावण दहन के लिए प्रभु श्रीराम राम को ही अवतरित होंना पड़े। कभी कभी लोकतंत्र यदि मजबूत तो आम जनता ही यह कर्तव्य पूरा कर देती है। वाशिंगटन पोस्ट के वर्तमान एसोसिएट एडिटर बॉब वुडवर्ड का नाम तो आपने सुना होगा।
उक्त पत्रकार ने अपने एक साथी के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को वाटरगेट कांड के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था। पत्रकारिता के नोबल माने जाने वाले पुलित्जर अवार्ड से नवाजे गए उक्त पत्रकार ने डोनाल्ड ट्रंप पर करीब डेढ़ साल पहले किताब लिखी है, जिसका हिंदी टाइटल है, अमेरिका के सबसे विवादास्पद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प।इसमें बयाया गया है कि ट्रम्प के ग़ुस्सेल, चिड़चिडे, बिना सोचे स्वभाव के कारण उन्हीं के सुरक्षा अधिकारी हरेक पल उनकी हरकतों पर जासूसी नजर रखते हैं। अक्सर देखा गया कि ट्रंप मीडिया से भिड़ने के मूड में ही रहते हैं। भारत दौरे के वक़्त उन्होंने अपने ही देश के वरिष्ठ मीडियाकर्मी को ऐसा चमकाया था कि दोनों में जबानी जंग हो गई थी। अपनी अलोकप्रियता की सबसे बडी वजह वे मीडिया की आलोचना को ही देते रहे, और कहते रहे कि मीडिया में मेरे अच्छे कामों तारीफ ही नहीं होती। एक अन्य पुलित्जर अवॉर्डी अमेरिकी पत्रकार ने अपनी किताब में ट्रम्प के सामान्य ज्ञान को लेकर रोचक जानकारी दी थी कि अमेरिकी यात्रा के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में उन्होंने कह दिया कि चीन की सीमा भारत से कहीं नहीं मिलती।
एक बार कह दिया कि अमेरिका के दो बार राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा अमेरिकी इतिहास के सबसे अज्ञानी राष्ट्रपति थे। सनद रहे कि बराक ओबामा इस महादेश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। आंकड़े बताते हैं कि चार साल पहले उन्हें पढ़े लिखे युवा वर्ग ने रोजगार के वादे पर वोट दे दिया था, परन्तु उक्त वर्ग हाथ मलते रह गया। कोरोना वायरस के लेबोरेट्री में विकसित करने की आशंका में ट्रंप ने चीन में कथित रूप से अपने जासूस जांच पड़ताल के लिए भेज दिए, जबकि उनके एक पूर्व सहयोगी ने किताब लिखकर जानकारी दी कि ट्रम्प ने तो चुनाव जीतने के लिए चीन तक से अंडरग्राउंड बात चलाई थी। इस पुस्क के सम्बंधित अध्याय अखबारों में छापने की कोर्ट ने इजाजत दे दी। अमेरिका का मीडिया अक्सर प्रतिष्ठान विरोधी होता है। वहाँ लिफाफे लेकर पेड न्यूज के लिए सामान्यतः कोई जगह नहीं होती। यही कारण है कि ट्रम्प के खिलाफ यहाँ तक हेडिंग लगे कि ट्रम्प को जितवाना सामूहिक पागलपन होगा।
ट्रम्प के रिश्तेदारों तक ने बयान जारी कर दिए कि जिसने यानी ट्रम्प ने अपने सगों को ही ठगा, वह भला किसका सगा होगा ।इसी दरम्यान अश्वेत अमेरिकी नागरिक की श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा कथित रूप से हत्या कर दी गई। इसके विरोध में अमेरिका के कई इलाकों में जलजला सा फूट पड़ा। कई जगह सेना ने मोर्चा सम्हाला। दुनिया जानती है कि ट्रंप को जान बचाने के लिए खंदक में पनाह लेनी पड़ी, लेकिन उनकी अपनी बेटी विरोध में सड़क पर उतर आई। भारत के कुछ न्यूज चैनल ट्रंप एवं पीएम नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी यात्रा की क्लिपिंग इस तरह चला रहे थे, जैसे वे ट्रम्प के चुनाव प्रचारक या प्रवक्ता हों। आप लोगों में से भी कई ने इसमें मोदी की यह अपील सुनी होंगी कि इस बार ट्रम्प सरकार। पहले लग रहा था कि विशेष रूप से भारतीय मूल के वोटर्स इस नारे को किसी भी कीमत पर याद रखेंगे ऐसा लग रहा था, लेकिन लगभग हरेक मोर्चे पर ट्रम्प को मिल रही असफलता ने वहाँ के प्रत्येक वर्ग को तय करने पर मजबूर कर दिया कि उनके लिए लोकतंत्र को बचाना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ओर राष्ट्र भक्ति पहला फर्ज है वैसे भी यह महा देश, दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। (लेखक के अपने विचार हैं)