सायकिल से डर नहीं लगता साहब, ट्रैफिक से लगता है!


निशांत की रिपोर्ट 
(लखनऊ उप्र)  


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बात गाड़ियों के धुंए से पर्यावरण बचाने की हो तो सबसे पहला ख्याल साईकिल का आता है। लेकिन साईकिल चलायें भी तो भला कैसे? एक तरफ तेज़ रफ्तार गाड़ियों की चपेट में आने का डर तो दूसरी तरफ गड्ढों और नालियों में गिर कर चोटिल होने की आशंका - कुल मिलाकर भारत में हालत कतई मुफ़ीद नहीं सायकलिंग के लिए। ऐसा मानना है भारत की जनता का, अगर एक ताज़ा सर्वे की मानें तो।


दरअसल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी द्वारा आवास और शहरी वायु मंत्रालय द्वारा इस सर्वेक्षण का आयोजन इंडिया साइकल्स4चेंज चैलेंज के हिस्से के रूप में किया गया। पचास शहरों में किए गए इस सर्वेक्षण में पाया गया कि ट्रैफिक की चपेट में आने या ख़राब सड़क की भेंट चढ़ने के साथ 20 प्रतिशत महिलाएं इस वजह से सायकिल नहीं चलाती क्योंकि उन्हें किसी प्रकार की छेड़खानी की आशंका सताती है।


सर्वे में लगभग 50,000 लोगों को सम्पर्क किया गया यह जानने के लिए कि आखिर वो क्या वजहें हैं जो किसी को सायकिल चलाने से रोकती हैं और इस सब के बीच जो लोग सायकिल चला रहे हैं वो किन वजहों से चला रहे हैं। और जवाब में अधिकांश उत्तरदाताओं ने कहा कि अगर साइकिल चलाना सुरक्षित और सुविधाजनक हो जाता है तो उन्हें काम, शिक्षा, और मनोरंजन के लिए साइकिल चलाने से कोई ऐतराज़ नहीं।


उत्तरदाताओं ने साइकिल पार्किंग की कमी, सड़क पर गाड़ियों की बेतरतीब पार्किंग, और खराब स्ट्रीट-लाइटिंग जैसे मुद्दों को भी इंगित किया। लगभग 52% पुरुषों और 49% महिलाओं ने मुख्य सड़कों पर साइकिल चलाना असुरक्षित पाया, जबकि 36% पुरुषों और 34% महिलाओं ने चौराहों पर साइकिल चलाने में डर की बात की।


सर्वे के नतीजों के मुताबिक़ जो लोग साइकिल चलाना जानते हैं, उनमें से केवल एक चौथाई लोग ही इसे रोज़ाना चलाते हैं और लगभग आधे हफ्ते में कुछ दिन साइकिल चलाते हैं।


सर्वे पर प्रतिक्रिया देते हुए कोहिमा स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड में प्रौद्योगिकी अधिकारी अटूबा लांगकुमेर, कहते हैं, “हम वो सब कर रहे हैं जिससे कोहिमा के लोग सायकिल चलाने को प्रेरित हों। हमें अच्छे नतीजे भी मिल रहे हैं। अब हमें उम्मीद है कि कोहिमा इस दिशा में एक मिसाल बन कर उभरेगा।”


सर्वेक्षण के ज़रिये 28 शहरों के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर साइकिल चलाने में आने वाली बाधाओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त किया गया। इस क्रम में पूरे देश में 340 किमी से अधिक लम्बाई के सायकलिंग गलियारे (कॉरिडोर) और 210 वर्ग किलोमीटर के आस पड़ोस(नेबरहुड) के क्षेत्रों को चुना गया हैं। भागीदारी के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए, राजकोट, कोहिमा, और मंगलुरु सहित 28 शहरों ने जमीनी स्तर पर बाधाओं का आकलन करने के लिए एक 'हैंडलबार सर्वेक्षण' किया और अब पायलट प्रोजेक्ट के लिए डिजाइन समाधान शुरू कर दिए गए हैं।


इंडिया साइकल्स4चेंज चैलेंज एक राष्ट्रीय पहल है जिसका उद्देश्य साइकिल के अनुकूल शहरों का निर्माण करना है और इसमें सर्वेक्षण नागरिक-नेतृत्व वाले दृष्टिकोण को सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख घटकों में से एक है। शहरों ने तमिल, मराठी और कन्नड़ जैसी स्थानीय भाषाओं के साथ अंग्रेजी और हिंदी में सर्वेक्षण किया।


भारत सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में सचिव, कुनाल कुमार  इस सर्वे का महत्व और प्रासंगिकता समझाते हुए कहते हैं , इंडिया साइकल्स4चेंज चैलेंज यह सुनिश्चित कर रहा है कि लोग योजना प्रक्रिया के केंद्र में हों। मैं नागरिकों से इसमें भाग लेने, समर्थन दिखाने और अपनी प्रतिक्रिया साझा करने के लिए आग्रह करता हूं। (लेखक के अपने विचार एवं अध्ययन है)