भारत की ग्रीन रिकवरी से बने रोजगार अवसरों के स्थायित्व और भौगोलिक स्थिति के लिहाज से उनकी उपलब्धता को लेकर सामने हैं कई सवाल
निशांत की रिपोर्ट
(लखनऊ यूपी से)
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दुनिया में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा दिये जाने के रुख में लगातार तेजी आ रही है मगर इसके कारण उत्पन्न होने वाले रोजगार अवसरों के स्थायित्व और भौगोलिक स्थिति के लिहाज से उनकी उपलब्धता को लेकर कई सवाल अब भी बने हुए हैं। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत में अक्षय ऊर्जा पर 100 प्रतिशत निर्भरता के हालात अगले दो दशक तक बनते नजर नहीं आ रहे हैं। सतत विकास के लिए हमें अक्षय ऊर्जा में निवेश करना अनिवार्य है। इससे रोजगार के काफी ज्यादा अवसर बन सकते हैं। ग्रिड से जुड़ी बड़ी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की संख्या यह तय करेगी कि कितने रोजगार बन सकते हैं और कहां बन सकते हैं। अगर हमें इसका पूरा फायदा उठाता उठाना है तो हमें ग्रामीण कौशल पर पूरा ध्यान देने के साथ-साथ घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग और नई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना होगा और सतत रूपांतरण के लिए सुस्पष्ट खाका तैयार करना होगा। एक बड़ा सवाल यह भी है कि पूरे क्षेत्र खास तौर पर अक्षय ऊर्जा में हम सामाजिक सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित करें।
कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया में जिस तरह की मानवीय और आर्थिक आपदा देखी जा रही है वह आधुनिक इतिहास में अपनी तरह की पहली घटना है। कई देशों ने इन मुश्किल हालात से निपटने के लिए आर्थिक सुधार पैकेज तैयार किए हैं। भारत भी इस दिशा में प्रयास कर रहा है लेकिन अर्थव्यवस्था को ठीक करने के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी उठ रहा है कि इस बिखरी हुई अर्थव्यवस्था को पर्यावरण के अनुकूल रूप से फिर से पटरी पर लाने के लिए वे कौन से सुधार हो सकते हैं जो लाखों भारतीयों को नौकरी के अवसर प्रदान करें। इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने के लिए ‘कार्बन कॉपी’ की तरफ से बुधवार को एक वेबिनार आयोजित किया गया। इसका संचालन वरिष्ठ पर्यावरण पत्रकार हृदयेश जोशी ने किया।
वेबिनार में शोध छात्र संदीप पई ने कहा कि अक्षय ऊर्जा पर इस वक्त न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में बहुत शोध हो रहा है। हमने 50 देशों का डेटा एकत्र करके उसका अध्ययन किया तो पाया कि आज पूरी दुनिया में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार के 1.8 करोड़ अवसर हैं, जिनके वर्ष 2050 तक 2.6 करोड़ हो जाने की सम्भावना है। भारत में इस वक्त इस क्षेत्र में रोजगार के 8.7 लाख अवसर हैं जो 2050 तक 14 लाख हो जाएंगे। इसमें सौर और वायु ऊर्जा की सबसे बड़ी हिस्सेदारी होगी। अगर हम पर्यावरण के अनुकूल भरपाई लक्ष्यों को ध्यान में रखें तो निश्चित रूप से रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा होंगे, मगर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह नौकरियां भारत में कहां जाएंगी।
उन्होंने कहा कि अगर आज देखें तो दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में अक्षय ऊर्जा पर जोर दिया जा रहा है लेकिन कोयले के उत्पादन वाले क्षेत्रों की भौगोलिक अवस्थिति अलग है। कोयला क्षेत्र से पांच लाख लोगों को रोजगार मिलता है लिहाजा अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने पर कोयला क्षेत्र की जो नौकरियां जाएंगी, कोई जरूरी नहीं है कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में पैदा होने वाली नौकरियां भी उन्हीं क्षेत्रों में उपलब्ध हों। अभी यह भी नहीं पता है कि वे नौकरियां स्थाई होंगी या अस्थाई। क्या उनसे उचित वेतन मिलेगा। कुल मिलाकर ग्रीन पॉलिसीज में अधिक रोजगार हैं लेकिन उसमें भी कुछ महत्वपूर्ण सवाल अनसुलझे रह जाते हैं।
संदीप ने कहा कि सरकार के दावे के मुताबिक कोयला खनन से रोजगार के तीन लाख नये अवसर मिलेंगे। इस पर आरटीआई के तहत सवाल करके इस दावे के आधार के बारे में पूछा गया तो कोयला मंत्रालय ने जवाब दिया कि उसके पास इसके समर्थन में कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है, लिहाजा यह स्पष्ट नहीं है कि कितना रोजगार मिलेगा। यह भी पता नहीं है कि यह तीन लाख नौकरियां स्थायी हैं या नहीं और क्या इनसे अच्छा वेतन मिलेगा।
क्लीन एनर्जी एंड सक्सेस और क्लाइमेट पॉलिसी की प्रतिनिधि मधुरा जोशी ने कहा कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कोविड-19 महामारी का पूरी दुनिया पर बहुत गहरा असर पड़ा है, जिसकी वजह से ऐतिहासिक आर्थिक संकट पैदा होंगे। आईईए के अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में 30 करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं। बिजली, कोयला, तेल एवं गैस और बायोफ्यूल्स के क्षेत्रों में 30 लाख नौकरियां या तो खत्म हो गई हैं या फिर खतरे में हैं। अगर हम देखें तो वर्ष 2014 से 2019 के बीच भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार में पांच गुना बढ़ोत्तरी हुई है।
उन्होंने कहा ‘‘पावर फॉर ऑल के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2018 में भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में प्रत्यक्ष रोजगार के 95000 अवसर पैदा हुए हैं। एक अन्य अध्ययन के अनुसार अगर दक्षिण भारत 100% अक्षय ऊर्जा रूपांतरण की तरफ बढ़ता है तो वर्ष 2050 तक इस क्षेत्र में 50 लाख से ज्यादा नौकरियां हो सकती हैं, जो जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में सरकार द्वारा बतायी जा रही तीन लाख नौकरियों से कहीं ज्यादा हैं।’’
मधुरा ने सुझाव देते हुए कहा कि सतत विकास के लिए हमें अक्षय ऊर्जा में निवेश करना अनिवार्य है। इससे रोजगार के काफी ज्यादा अवसर बन सकते हैं। ग्रिड से जुड़ी बड़ी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की संख्या यह तय करेगी कि कितने रोजगार बन सकते हैं और कहां बन सकते हैं। अगर हमें इसका पूरा फायदा उठाता उठाना है तो हमें ग्रामीण कौशल पर पूरा ध्यान देने के साथ-साथ घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग और नई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना होगा और सतत रूपांतरण के लिए सुस्पष्ट खाका तैयार करना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि भविष्य में हमारी दिशा क्या होगी।
उन्होंने कहा कि इस वक्त कुल उत्पादित बिजली में 38% हिस्सा गैरजीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली का होता है। वर्ष 2030 तक यह हिस्सेदारी 60 से 65 प्रतिशत तक आ सकती है। अगर हम राष्ट्रीय और वैश्विक निवेश के रुख को देखें तो सभी अक्षय ऊर्जा की तरफ जा रहे हैं। हम उस दिशा में जा तो रहे हैं लेकिन किस तरह से उस दिशा में बढ़ेंगे अभी यह तय करना बहुत जरूरी है। जरूरी यह है कि हम ऐसा रोडमैप बनाए जिसमें कहीं भी कोई पीछे न छूट जाए। अगर कहीं कोयला खदान की बहुलता वाला क्षेत्र है तो हम किस तरह से उनकी क्षमता को बढ़ाएं कि वह भी सतत तरीके से रूपांतरित हो सके। एक बड़ा सवाल यह भी है कि पूरे क्षेत्र खास तौर पर अक्षय ऊर्जा में हम सामाजिक सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित करें।
आईडीएएम इंफ्रा के प्रबंध निदेशक बलवंत जोशी ने कहा कि सोलर रूफटॉप योजना और प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान (कुसुम) योजनाएं अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से एक अच्छी स्थिति में लाने के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। दोनों योजनाओं में काफी नौकरियां बन सकती हैं। मगर यह बहुत जरूरी है कि किसी भी सरकारी योजना के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को भी समझा जाए। सिर्फ नौकरियां पैदा करना एकमात्र उद्देश्य नहीं होना चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि उसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि देश में जो बिजली की का उत्पादन होता है उसमें से कितना हिस्सा कृषि कार्यों में उपयोग हो जाता है। आज भी कुल उत्पादित बिजली का 18-19% उपभोग कृषि क्षेत्र में होता है। महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और मध्य प्रदेश तो हैं ही, लेकिन मुझे बहुत अचंभित करने वाली बात हाल के अध्ययन में पता चली कि राजस्थान जैसे राज्य में बिजली की 40% से ज्यादा खपत कृषि क्षेत्र में होती है। यह बहुत ही ज्यादा है। सभी को पता है कि इस बिजली पर आमतौर पर वितरण कंपनियों को सब्सिडी मिलती है। मगर काफी देर से मिलने के कारण कंपनियों को बहुत नुकसा भी होता है। कई बार कृषि क्षेत्र से जुड़े उपभोक्ताओं को इसके लिए दोषी ठहराया जाता है। अगर हम यह मुद्दा देखें तो उस लिहाज से कुसुम योजना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
जोशी ने कहा कि हम अगर कृषि उपभोक्ताओं को आपूर्ति की जाने वाली बिजली आपूर्ति की लागत देखें तो महाराष्ट्र जैसे राज्य में यह 7 रुपये के करीब है और बहुत सारी वितरण कंपनियां इस देश में हैं जिनकी आपूर्ति लागत 6.50 रुपये से ऊपर ही है। अगर हम कृषि का सौर ऊर्जीकरण करेंगे तो आपूर्ति की लागत कम हो सकती है और यह 6.50 रुपये से घटकर करीब 4 रुपये हो सकती है। यह एक बहुत बड़ी बचत करने वाला होगा। इससे वितरण कंपनियों को फायदा होगा और अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलेगा। मेरे हिसाब से सभी सरकारों राज्य सरकारों को इस योजना के तहत ज्यादा से ज्यादा केंद्र सरकार से मदद मांगनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि तीन नवम्बर को सभी राज्यों को अपनी ग्रांट प्रस्तुत करनी थी मगर बहुत कम ही राज्यों ने अब तक ऐसा किया है। मगर सभी राज्यों को यह करना चाहिए। उसी तरह उन्हें पंप सेट के सौर ऊर्जीकरण पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि उनकी कृषि आय के साथ-साथ बिजली बेचने से होने वाली आमदनी भी बढ़ जाए। इससे उनके पास आमदनी का दूसरा जरिया भी पैदा हो जाएगा।
जोशी ने कहा कि सरकार ने वर्ष 2022 तक देश में 40000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है लेकिन हमने अभी तक सिर्फ 6000 मेगावाट का ही लक्ष्य हासिल किया है। इसके लिए वितरण कंपनियां भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। उन्हें जो प्रक्रिया अपनानी चाहिए वह भी तक नहीं हो पाई है लेकिन धीरे धीरे जैसे-जैसे इसमें प्रगति हो रही है, इससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे और लागत में कमी आ जाएगी। मेरे हिसाब से यह वितरण कम्पनियों और हम सबके लिये बहुत ही फायदेमंद चीज है। अगर हम कंपनियों की स्थिति देखें तो देश में सोलर उपकरण बनाने की उनकी क्षमता इन उपकरणों की मांग के मुकाबले बहुत कम है। हमें इसे बढ़ाना होगा।
अगले 10 सालों में कुल ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी को लेकर अपना अनुमान जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य तय किया है अगर हम उसे लेकर चलेंगे तो भी कुल बिजली उत्पादन में कोयला उत्पादित बिजली की हिस्सेदारी 40 से 45 प्रतिशत रहेगी। मेरा मानना है कि 2025 के बाद पूरी नई ऊर्जा उत्पादन क्षमता आएगी अगर वह सौर और वायु बिजली पर चली गई तो मेरे हिसाब से अक्षय ऊर्जा में 100 प्रतिशत रूपांतरण मुकम्मल हो जाएगा। हालांकि 100% रूपांतरण का लक्ष्य अभी वह कम से कम 20 साल दूर है।
नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी) की पूर्व अपर महाप्रबंधक रश्मि वर्मा ने एनटीपीसी और अन्य बिजली उत्पादक कम्पनियों द्वारा नौकरियां दिये जाने के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि एनटीपीसी और इस तरह की जितने भी बिजली उत्पादक कंपनियां हैं वह काफी जोर-शोर से अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण के रास्ते पर हैं। कोयले के अलावा वह सौर, वायु तथा पनबिजली उत्पादन के क्षेत्रों में भी एनटीपीसी तथा अन्य बिजली उत्पादक कम्पनियों ने काफी योगदान किया है। कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व और अन्य योजनाओं के तहत क्षेत्रीय लोगों को नौकरियां तो दी ही जाती हैं बल्कि उनके बच्चों की शिक्षा के लिये स्कूल और उनके परिवार को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए अस्पताल का निर्माण भी किया जाता है।
उन्होंने कहा कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में जहां तक नौकरी के संभावनाएं हैं तो हाइड्रो सेक्टर में बहुत सी नौकरियां दी जा चुकी हैं। जहां तक अक्षय ऊर्जा में नौकरियों का सवाल है तो हम लोग से नौकरी की ही बात ना करें बल्कि अपने बल पर रोजगार खड़ा करने की बात करें। कुछ नया सोच कर आगे बढ़ना होगा। ऐसे कई नये काम हो रहे हैं।