लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
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कर्नाटक में वर्तमान बीजेपी सरकार अलग-अलग जातियों और समुदायों के लिए तुष्टिकरण की ऐसी राजनीति पर चल रही है। जिसके दूरगामी असर होंगे। ऐसा केवल बीजेपी सरकार ही नहीं कर रही बल्कि पूर्व में राज्य में कांग्रेस और जनता दल (स) की सरकारों ने भी ऐसा किया था। ज्यों ही किसी एक जाति अथवा समुदाय के लिए कुछ सुविधाएँ अथवा रियायतें दी जाती है तुरंत अन्य समुदाय अथवा जातियों के नेता वैसी ही सुविधाएँ अथवा रियायतें उनकी जाति अथवा समुदाय के लिए दिए जाने की मांग करने लगते है।
राज्य में हॉल तक ब्राहमण, वैश्य, बंजारा, विश्वकर्मा तथा अल्पसंख्यको के हितों की रक्षा और कल्याण के लिए बोर्ड और निगमे बनी हुयी थी। लेकिन येद्दियुरप्पा के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने पिछले दो महीने में तीन ऐसे बोर्ड गठित किये हैं। इनके देखा देखी कुछ अन्य समुदायों के नेताओं ने भी उनके लिए अलग से बोर्ड बनाए जाने के मांग शुरू कर दी है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों तथा सामाजिक विशेषकों का मानना है कि ऐसे बोर्ड अथवा निगमे सिर्फ राजनीतिक कारणों तथा वोट बैंक बनाने के लिए बनाये जाते है। चूँकि इनको बहुत कम वित्त दिया जाता है इसलिए वे कोई भी बड़ा कल्याण का काम उन समुदायों, जिनके हितों के लिए उनको बनाया गया है, नहीं कर पाते। प्रत्येक बोर्ड तथा निगम का एक अध्यक्ष होता है। इसके अलावा इनके सदस्य भी होते है। इन सब पर आम तौर पर सत्तारूढ़ दल के लोग ही नियुक्त किये जाते है। इसके अलावा इसमें सरकारी अमले की भी नियुक्ति की जाती है। इन बोर्डों और निगमों को जो धन बजट में आवंटित किया जाता उसमें से अधिकांश इन लोगों के वेतन और भत्तों पर ही खर्च हो जाता है। बस इनका काम सरकार को संबंधित जाति और समुदाय के लिए सिफारिशें मात्र करना रहा जाता है। व्यवहारिक रूप से ये बोर्ड राजनीतिक दल अपना वोट बैंक बनाने के लिए गठित करते है।
नवम्बर में राज्य में विधान सभा के दो उप चुनाव थे। इनमें एक विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी समुदाय कोडगु के वोट काफी अधिक थे। इस क्षेत्र के विकास के लिए अलग से निगम अथवा बोर्ड बनाये जाने की मांग बहुत पुरानी थी। वहां के मतदाताओं के वोट पाने के लिए राज्य की बीजेपी की सरकार ने कोडुगोला विकास निगम का गठन कर दिया। यह घोषणा चुनावों से मात्र दो महीने पहले ही की गयी थी। अभी इसके अध्यक्ष तथा सदस्यों को नियुक्त किया जाना बाकी है। इसके बाद ही इसका दफ्तर बनेगा और अधिकारियों की नियुक्ति होगी। लेकिन केवल निगम के गठन की घोषणा का लाभ बीजेपी को चुनावों में मिल गया। इस चुनाव क्षेत्र से बीजेपी पहले कभी नहीं जीती थी लेकिन वह यहाँ से उप उपचुनाव जीतने में सफल रही।
राज्य की महाराष्ट्र से लम्बी सीमा लगती है। बेलगवी तथा आस पास के इलाकों में मराठी भाषी लोग बहुसंख्या में है। दशको पूर्व शिव सेना के नेतृत्व में इस इलाके को महाराष्ट्र में शामिल किये जाने का लम्बा आन्दोलन चला था। तब एक के बाद बाद एक सरकार ने इस मांग को कभी नहीं माना लेकिन वायदा किया किया कि इस क्षेत्र के विकास के लिए विशेष कदम उठए जायेंगे। कुछ कदम उठाये भी गए लेकिन यहाँ के लोगों की शिकायत बनी रही कि सरकार उनके लिए कुछ विशेष नहीं कर रही। यह क्षेत्र बीजेपी का समर्थक माना जाता है। इसलिए स्वाभविक था कि बीजेपी सरकार यहाँ के लिए कुछ करेगी . कुछ समय पूर्व सरकार ने इस इलाके के विकास के लिए मराठा विकास प्राधिकरण बनाये जाने की घोषणा की।
राज्य अपने आपको कट्टर कन्नड़वादी कहे जाने वाले संगठन राज्य के मराठी भाषी लोगों को इस कारण से पंसद नहीं करते क्योंकि वे राज्य से अलग होकर महाराष्ट्र में शामिल होने के मांग करते है। इसलिए ज्योही मराठा विकास प्राधिकरण के गठन की घोषणा की गयी तो इन संगठनों ने इसकेखिलफ आन्दोलन छेड़ने की घोषणा कर दी है इस मामले में राज्य को लिगायत समुदाय, जो राज्य की आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है, इस मुद्दे पर सबसे आगे था। आर्थिक तथा सामजिक दृष्टि से यह समुदाय बहुत प्रभावशाली है। राजनीतिक रूप से यह बीजेपी का समर्थक माना जाता है। वर्तमान मुख्यमत्री येद्दियुरप्पा इसी समुदाय के हैं। आन्दोलन की घोषण के बाद बीजेपी बीजेपी को लगा कि कही यह समुदाय पार्टी से कहीं छिटक नहीं जाये इसलिए सरकार ने तुरंत अलग इस लिंगायत विकास निगम बनाये जाने की घोषणा कर दी। अब सत्तारूढ़ दल को उम्मीद है कि आगामी 5 दिसम्बर से शुरू होने वाला आन्दोलन अब अपने आप ठंडा पड़ जायेगा।
राज्य का दूसरा प्रभावशाली समुदाय वोक्कालिंगा है। देश के पूर्व प्रधानमन्त्री और जनता दल (स) के सुप्रीमो एचडी देवेगौडा इसी समुदाय के हैं तथा यह समुदाय जनता दल (स) का वोट बैंक माना जाता है हालाँकि इसका एक वर्ग कांग्रेस के साथ भी है। प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार इसी समुदाय के हैं। अब यह मांग उठाने लगी है। इस समुदाय के लिए भी अलग से कोई बोर्ड अथवा निगम बनायीं जाये। इसको लेकर जनता दल (स) कभी भी आन्दोलन छेड़ सकता है। (लेखक के अपने विचार एवं अध्ययन है)