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आज देश का किसान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। वह कृषि विरोधी कानून को लेकर सड़कों पर है। अपने हकों की आवाज बुलंद करने देश की राजधानी आकर सत्ता पर काबिज देश के मालिक बने लोगों के कानों पर दस्तक देने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सत्ताधीशों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। ऐसा लग रहा है जैसे वह बहरे हो गये हैं। भले वह उपर लाठी चार्ज करवायें, पानी की बौछारें करवायें, राज्यों की सीमायें सील करवा दें, बीसियों किलोमीटर सड़कें जाम जैसी हालत में रहें, उनको दिल्ली आने से रोकने के हर संभव प्रयास करें, लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि देश के पहले स्वाधीनता संग्राम में किसानों की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका थी जिसमें देश के राजे-रजवाड़ों, अभिजात वर्ग और आम जनता का अहम योगदान था। वह बात दीगर है कि उस स्वातंत्रय समर में कुछ गद्दारों और बरतानिया हुकूमत के चाटुकारों की बदौलत कामयाबी न मिल सकी लेकिन नब्बे साल बाद तमाम कुर्बानियों के बाद गांधी के नेतृत्व में देश विश्व मानचित्र पर एक आजाद मुल्क के रूप में जरूर सामने आने में कामयाब हुआ। इसलिए किसानों की ताकत को कम आंकना बहुत बड़ी भूल होगी।
किसान नेता चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के 90 के दशक में दिल्ली में हुए किसान आंदोलन की एक झलक। इस अवसर पर चौधरी देवीलाल, चंद्रशेखर एवं एच डी देवेगौडा, चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के साथ दिखाई दे रहे हैं। |