लेखक : लोकपाल सेठी
की एक रिपोर्ट
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हाल में कई हिस्सों में हुयी हिसंक घटनाओं के बाद मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन पीपल्स फ्रंट ऑफ़ इंडिया एक बार फिर नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी सहित कई अन्य सुरक्षा एजेंसिओं के राडार पर आ गया है। सुदूर दक्षिण के केरल राज्य में केन्द्रित इस संगठन के सदस्यों के इसमें कथित रूप से लिप्त पाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों ने इस पर एक बार प्रतिबन्ध की मांग है। मामला फ़िलहाल भारत सरकार के गृह मत्रालय के पास विचाराधीन है।
कुछ स्फ्तः पूर्व बंगलुरु शहर के एक हिस्से में पुलिस स्टेशन पर हमले बाद उसे आग के हवाले करने और हिंसा की हुए घटनाओं में, जिसमें तीन लोग मारे गए थे, की प्रारंभिक जाच में इनके इन दंगो के पीछे इसी संगठन के लोगों का हाथ होने का संदेह है। घटना की घटना की जाँच नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी के सुपुर्द कर दी गयी है। राज्य की पुलिस पहले ही प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन कार्यकर्ताओं की हत्या के सदेह में इन संगठन के कुछ सदस्यों को ग्रिफ्तार कर चुकी है। कहने को तो यह एक सामाजिक संगठन है लेकिन इसकी गतिविधियों इसके मुस्लिम कट्टरपंथी एजेंडे पर आधारित है। इसने अपने राजनीतिक प्लेटफार्म के लिए अलग से राजनीतिक संगठन, सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया(एस डी पी आई) भी बनाया है।
इसके अलावा इसने वीमेन फ्रंट ऑफ़ इंडिया तथा कैंपस स्टूडेंट ऑफ़ इंडिया जैसे संगठन भी बना रखे हैं। हाथरस की घंटना के सन्दर्भ में यूपी पुलिस ने जिन चार मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया था। उनमें से तीन कैंपस स्टूडेंट ऑफ़ इंडिया के सदस्य थे। चौथा केरल का टीवी पत्रकार था। उत्तर प्रदेश पुलिस कहना है वह केरल में इस पी ऍफ़ आई का पदाधिकारी भी रह चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि जब इस साल के शुरू में सीएए के विरोध में आन्दोलन हुआ और राज्य में भी कई हिंसक घटनाएँ हुई उनके पीछे भी यही संगठन था। इसीलिए राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास विचाराधीन है। ऐसी ही मांग पहले भी कई राज्य कर चुके है इसलिए यह संगठन एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों के राडार पर आ गया है।
केरल में जब लव जिहाद, जिसके अंतर्गत मुस्लिम युवक किसी हिन्दू युवती को अपने प्यार में फंसते थे। फिर उनसे शादी कर उस युवती को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए मजबूर कर देते थे, जब ये मामला नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी को दिया गया तो उसे अपनी जाच में पाया कि लगभग सभी मामलों में किसी न किसी प्रकार ये मुस्लिम युवक इसी संगठन के सदस्य थे यह इससे जुड़े हुए थे। यह भी भी पाया गया कि इन सबका एक ही तौर तरीका था। इसके अलावा यह बात भी सामने आई कि इस संगठन के कम से कम 10 सदस्य आईएस में शामिल होकर इराक में जेहादियों के साथ मिल इस्लामिक स्टेट बनाने की लडाई लड़ रहे है।
सुरक्षा एजेंसियो के अनुसार इनके कुछ साहित्य में यह साफ़ लिखा हुआ है कि इसका मुख्य इरादा 2045 तक पश्चिम बंगाल अथवा असम को मुस्लिम बहुल बनाकर इनको इस्लामिक राज्य घोषित करना है। यह भी कहा जा रहा है कि इसके नेता केरल सहित अन्य राज्यों में मुसलमानों को इन दोनों राज्यों में बसने के लिए प्रेरित करते आ रहे है ताकि वहां की मुस्लिम आबादी में इजाफा हो। इसके अलावा इसके नेता अपने भाषणों में अपने सदस्यों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़काते और साम्प्रदायिक देंगे फ़ैलाने के लिए उकसाते है।
2001 तक स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इडिया (सिमी) भी यही काम करता था। इसलिए केंद्र सरकार ने इस प्रतिबन्ध लगा दिया था। बाद में इसी संगठन के लोगों ने 2006 में इस पी एफ आई की स्थापना की। धीरे-धीरे इसका संगठन अन्य राज्यों में फ़ैल गया। पश्चिम बंगाल और असम के अलावा, बिहार और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाकों में यह संगठन तेजी से फैला। 2009 इसने तय किया कि चुनाव लड़ने के लिए इसे अलग से राजनीतिक संगठन बनाना चाहिए। इसके लिए एसडीपीआई नाम की पार्टी का का गठन किया। इसके साथ ही अन्य राज्यों में छोटे मोटे मुस्लिम राजनीतिक दल भी इसमें शामिल हो गए। इसने बाकायदा अपने आपको चुनाव आयोग में पंजीकृत करवाया है।
ये अलग बात है कि न्यूतम प्रतिशत वोट नहीं मिलने के कारण अभी इसे राष्ट्रीय अथवा राज्य दल के रूप में मान्यता नहीं मिली है। 2018 में कर्नाटक में हुए विधान सभा चुनाव इसने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर लड़े थे। उधर बिहार में हो रहे विधान सभा चुनावों में यह दल उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व वाले तीसरे महागठबंधन में शामिल हो चुनाव मैदान में है। इस गठबंधन का एक अन्य प्रमुख घटक असदुद्दीन ओवैसी का एआईएमएम है। दोनों दलों को वहां पूर्णियां और किशनगंज जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में अधिक सीटें मिली है। देश की सुरक्षा एजेंसिया पीएफ़आई तथा इसके सभी संगठनों की गतिविधियों के बारे में पूरी जानकरी जुटाने में लगी है ताकि इनके सही इरादों और योजनायों की जानकारी मिल सके। (लेखक के अपने विचार हैं)