कई रेखाओं में उलझती रही सीधी सरल अभिनेत्री रेखा

रेखा के जन्मदिन पर विशेष (10 अक्टूबर 1954) 



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अभिनेत्री  भानु रेखा  गणेशन उर्फ रेखा खुद आज तक नहीं अपने आपको अंतिम रूप से तलाश नहीं पाई तो मीडिया के लिए तो वे अभी तक पहेली है। सही है कि चार सौ से अधिक फ़िल्मों के अथक सफ़ऱ के बावजूद कभी उन्होंने बीबीसी के संवाददाता को इंटरव्यू में कहा था कि अभी तो मैंने शुरुआत भर की है। इसी इंटरव्यू में रेखा ने कहा था कि मुझे सभी फिल्मों में से घर फ़िल्म सबसे अधिक पसंद है, लेकिन सिर्फ अभिनय के मामले में यूँ उमराव जान फ़िल्म के संगीत का हवाला देते हुए वे कह चुकी हैं कि आज रेखा जिस मुकाम पर पहुंची है, उसमें निर्णायक भूमिका स्व. संगीतकार खय्याम साहब की है। रेखा ने एक फिल्मी अवार्ड के समारोह में रिटायर्ड नेवी ऑफिसर खय्याम की उपस्थिति में सन 1981 मुज्जफर अली द्वारा बनाई गई उमराव जान के निर्माण में दिए संगीत का हवाला दिया था।


इसमे लखनवी अंदाज में मुजरा करने का जोखिम रेखा ने उठाया था। इस गाने के बोल थे "दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए" वैसे सुहाग एवं मुकद्दर का सिकन्दर में भी उनके मुजरो ने इस नृत्य शैली की नई पहचान लिख दी थी। जबकि बकौल उन्हीं के उन्होंने नृत्य की कोई तालीम नहीँ ली है। ये कुछ वैसा ही था, जैसे बॉलिवुड की नामी कोरियोग्राफ स्व. सरोज खान ने बचपन परछाईयों को देखकर नृत्य सीखा था। अन्य दूसरी अभिनेत्रियों की तरह रेखा भी बॉलीवुड का नाम लेने से भी बचपन में घबराती थीं। उनके स्व. पिता दक्षिण भारत की फिल्मों के कामयाब अभिनेता जेमिनी गणेशन से उनके रिश्ते हरदम अनजान ही रहे। कहा तो यहाँ तक कहा जाता रहा है कि रेखा उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं गई थीं। वे जब तेरह चौदह साल की थीं तभी उन्हें उनकी माँ ने फिल्मों में काम करने के लिए भेज दिया। एक युवा होती लडक़ी के लिए मुंबई में अकेले आना किसी जंगल में अपने आपको तलाशने जैसा था। वे खुद से सवाल करती।



यह कहाँ आ गई मैं? कोई पगडंडी भी है मेरे लिए? काम मिलने में तो फिर भी दिक्कत नहीं आई, मगर यह क्या, पहली ही फ़िल्म जो रिलीज नही हो पाई के सेट पर अभिनेता विश्वजीत ने उनसे ऐसी गिरी हरकत कर डाली कि विश्वजीत खुद भी उस पर आज तक शर्मिंदा होते होंगे। रेखा ने खुद यह  बताते हुए कहा था कि मैंने बॉलीवुड में इसी माहौल में अपने को साबित कर दिखाने का प्रण लिया। उनकी पहली फ़िल्म सावन भादो के सेट पर उन्हें अभिनेता स्व. नवीन निश्चल ने ऐसा अपमानित किया था कि वो तो रेखा ही थी जो उक्त टिप्पणी को सह गई। नवीन निश्चल ने डायरेक्टर से पूछा था इस मद्रासी काली बत्तख को कहाँ से ले आए? तब दरअसल, रेखा अपने रंग को लेकर ही नहीं, मोटे शरीर को लेकर बहुत परेशान रहती थीं। अल्लाह का करम ही था कि रेखा उन्हीं महानायक अभिनेता अमिताभ बच्चन के बेहद करीब आती गईं। जिन्हें उक्त बॉलीवुड में ही कभी ऊंट और चेहरा देखा है। अपना आईने में  तक कहा गया था।


अमिताभ भी रेखा जितनी फिल्में दे चुके हैं। लोग कदाचित नहीं जानते होंगे कि रेखा मिमिक्री, ख़ासकर अमिताभ की बहुत अच्छी करती रही हैं और उन्हें पाकिस्तान के महान ग़ज़ल गायक स्व. मेंहदी हसन की यह ग़ज़ल बहुत पसंद है "मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो, मग़र तुम मुझे भुला न सकोगे" वे ऐसे तल्लीन होकर गाती हैं कि तबीयत सन्न रह जाती है। अमिताभ से रिश्तों की बातें करना बासी कढ़ी में उबाल लाने जैसा होगा और यदि हैं भी तो उक्त मामला दोनों की खालिस जातीय ज़िंदगी से जुड़ा मामला है, और यदि इस तरह की गंदगी में ही पड़े रहे तो कहना पड़ेगा कि भारत में भी मीडिया का एक बड़ा ब्लॉक ऐसा है जो उक्त तरह की बतकहियों का कभी न बुझने वाला तंदूर है। इसी तंदूर में कभी रेखा के मांग में सिंदूर भरे जाने को कभी अमिताभ से तो कभी संजय दत्त से जोड़कर देखा जाता रहा है।



एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण यह भी हो सकता है कि इतनी हिट अदाकारा आप निशाना साधने लगेंगे तो वह भी आपको चिढ़ाने के लिए बेसिर पैर की खबरे देगी। मग़र हरदम नहीं, अमिताभ  को याद करके कभी उन्होंने पूर्व अभिनेत्री सिमी ग्रेवाल को कहा था कि अमिताभ कहां नहीं है? पूरे ब्रह्मांड में तो अमिताभ ही है। बहुत कम लोगोँ को मालूम होगा कि वे चेन्नई के कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ी हैं और इस प्रदेश की मुख्यमंत्री रही स्व. जयललिता के साथ होस्टल में रहती थीं। दोनों की अंग्रेजी के बारे में आज भी कहा जाता है कि शब्द तथा जानकारियां उनके होठों पर खेल रहे होते हैं। उनकी तमाम सफल असफल फिल्मों की चर्चा न जाने कब तक की जाती रहेगी, लेकिन हो सकता है कि इस जल्दबाजी में फ़िल्म इज़ाज़त भुला दी जाए। नसीरूद्दीन शाह एवं शशि कपूर के साथ गुलज़ार ने यह फ़िल्म बनाई थी। रेखा की ख्वाहिश है कि वे फिल्मकार एवं अभिनेता शेखर कपूर और संजय लीला भंसाली के साथ का काम करें।


अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जब रेखा के अमिताभ से रिश्तों को लेकर जब खूब चर्चाएं होने लगीं तो कहा जाता है कि जया बच्चन ने रेखा को डिनर पर बुलाया था।बस, तभी से रेखा ने अमिताभ से दूरियां बनानी शुरू कर दीं, लेकिन अपनी जानी पहचानी बिंदास अदा हाथों हाथ मीडिया को कह भी दिया मैं उन्हें यानी जया बच्चन को अमिताभ को तश्तरी में भेंट कर आई हूँ। कहते हैं रेखा ने पहला विवाह अभिनेता स्व. विनोद मेहरा से किया था। उनका अचानक निधन हो गया तो संजय दत्त से विवाह किया। फिर, नई दिल्ली के एक स्व. नामी उद्योगपति मुकेश अग्रवाल से अचानक विवाह कर लिया। जिन्होंने कहते हैं रेखा से नाराज़ होकर ख़ुदकुशी कर ली थी। अमिताभ से तो उनकी शादी की खबरें कभी की आम हो चली थीं।



कहते हैं अमिताभ तथा संजय दत्त के नामों का सिंदूर तो आज भी वे मांग में भरती हैं, जबकि यह भी कहा यह भी जाता है कि दक्षिण भारत में तो कुआंरी लड़कियों में यह चलन आम है। रेखा की दो तीन बहनें भी हैं जो पता नहीं कहाँ हैं। वैश्विक तौर माना जाता है कि कोई ख़ालिस निदेशक ही किसी सामान्य से अभिनेता को महान बनाकर बाहर निकाल पाता है। रेखा भी अपने निदेशकों को इसी फलसफे के आधार पर आवश्यक सम्मान देती रही हैं। अपने खान पान को लेकर बेहद सतर्क रेखा योग, ध्यान एवं प्राणायाम के प्रति भी कठोर हैं। वे कितने खुले दिल की हैं यह एक किस्से से पता चलता है कि खून भरी माँग फ़िल्म के लिए रेखा को एक बड़े फिल्मी अवार्ड  से नवाजने की घोषणा हुई। रेखा ने मंच पर जाकर उक्त पुरस्कार ग्रहण करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस अवार्ड की असली हकदार तो स्मिता पाटील हैं लेकिन चूंकि अब वे इस संसार में नहीं है तो इस अवार्ड को स्मिता के पुत्र प्रतीक को दे दिया जाए।


एक फिल्मी समारोह में वे पूर्व हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्ले के साथ बैठी हुई थी। उन्होंने पिल्ले से पूछ लिया सुना है लगातार संघर्षों ने तुम्हें बहुत तुनक मिज़ाज़ बना दिया है? पिल्लै ने कहा हाँ। वाकई। रेखा ने बड़े प्यार से उनके कंधे पर हाथ रखा फिर कहा कि तुमसे अधिक संघर्ष तो मैंने किए हैं। वह भी महिला होकर, लेकिन हरेक तानाकशी, आलोचना, खिल्ली का जवाब मेरे पास एक मुस्कराहट होता है। पद्मश्री अवॉर्डी और दूसरे अन्य बड़े पुरस्कार प्राप्त रेखा के नृत्य को देखकर कहा जाता रहा है। ऐसे दृश्यों को देखकर कहा जाता है कि अनेक लोगों की धड़कनें जैसे रुक जाती हैं। नृत्य के कारण उन्हें जीवन रेखा भी कहा जाता रहा है। मग़र उनकी बच्ची जैसी मुस्कान या लंबी खामोशी देखकर लगता है कि वे एक सीधी सरल, रेखा होने के बावजूद बड़ी उलझी हुई रेखा है। उनकी एक रेखा में कई रेखाएं रहती हैं औऱ इनमें से असली रेखा कौन है? यह वे आज तक तलाश रही है या किसी के लिए शायद अभी भी गा रही हैं कि मुझे गले से लगा लो कि बहुत उदास हूँ मैं। ऐसी बातें कभी उन्होंने ऑफ द रेकार्ड मीडिया से कही थी कि उनकी स्व. माँ पुष्पा वली ने जबरजस्ती उन्हें फिल्मो में काम करने के लिए भेज दिया था।



लेखक : नवीन जैन
इंदौर। 9893518228