गोपाल किरन समाजसेवी संस्था व जय भीम अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण समिति शील नगर बहोड़ापुर, द्वारा हाथरस घटना व पुलिस के व्यवहार की निंदा करते हुए पीड़िता को श्रद्धांजलि अर्पित की
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ग्वालियर। देश को शर्मसार करने वाली घटना की पुनरावृत्ति होने पर हाथरस के दुष्कर्म पीड़िता के निधन व पुलिस द्वारा मृतिका के शव को परिजनों को सुपुर्द न करने जैसे निंदनीय पर कृत्य पर घोर निंदा करते हुए गोपाल किरन समाजसेवी संस्था व जय भीम अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण समिति शील नगर बहोड़ापुर,जिला बाल अधिकार मंच (चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी) व दलित फोरम नेटवर्क द्वारा शाम को आंनद नगर से बहोड़ापुर तक कैंडल मार्च सुनीता गौतम (अध्यक्ष) के नेतृत्व में श्रीप्रकाश सिंह निमराजे संस्थापक एवं अध्यक्ष गोपाल किरन समाजसेवी संस्था के मार्गदर्शन में बेटी और अपनी सभी बहन बेटी के न्याय के लिए लोकतांत्रिक तरीके अपनी आवाज उठाने हेतु कैंडल मार्च निकाला गया। हत्या कांड में पीड़िता को श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्रद्धांजलि सभा का भी आयोजन किया गया। इसमें सम्मिलित सदस्यों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रकार के कृत्य करने वाले लोगों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करते हुए फांसी की सजा सुनाई जावे। परिजनों को यथासंभव मदद मुहैया कराई जावे। बेटियों के साथ होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए कठोरतम प्रावधान किए जावे। साथ ही शासन प्रशासन में बैठे लोगों पर जो अपराधियों को बचाने का प्रयास करते हैं उन पर भी प्रभावी कार्यवाही की जाए। संस्था ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वाल्मीकि समाज की एक बेटी हाथरस में कुछ दरिंदों की दरिंदगी का शिकार होकर जिंदगी की जंग लड़ते हुए हार गई है। यही नहीं उस जैसी और न जाने कितनी देश की बेबस बेटियाँ आए दिन दरिंदगी का शिकार होकर दम तोड़ रहीं हैं और दरिंदे बेखौफ होकर घूम रहे हैं कोई उनका कुछ नहीं बिगड़ पा रहा है। इन दरिंदों का कोई धर्म कोई जाति कोई मजहब नहीं होता है। दरिंदे तो बस दरिंदे होते हैं फिर बेटी चाहे किसी भी जाति वर्ग धर्म और समाज की हो। बेटी तो बेटी ही होती है बस फर्क इतना होता है कि यदि वह कथित उच्च वर्ग, वर्ण या मध्यम वर्ग से हो तो उसके साथ पूरा समाज देश न्याय की गुहार लगाने सड़कों पर उतर आता है।
यदि यही बेटी किसी निम्नवर्ग या हाशिए पर खड़े समाज की हो तो उसके लिए उसी वर्ग या समाज के लोगों को आगे आना पड़ता है ऐसा क्यों? क्या ये देश की बेटियां नहीं हैं? क्या सरकार बनाने में इनका योगदान नहीं होता? फिर क्यों शासन प्रशासन बिना धरने प्रदर्शन के इन दरिंदों पर हाथ नहीं डालता हैं। ऐसे दरिंदों को तो फांसी की सजा होनी ही चाहिए पर ये बैखौफ होकर घूमते रहते हैं। यदि किसी तरह गिरफ्तार कर भी लिए गए तो जमानत पर छूटकर सबूत मिटाने की कोशिशें करते हैं। सालों-साल अदालतों में केस खींचकर आराम से जीवन बिताते हैं। आज कहां गए वे सारे लोग जो कैंडल लेकर सामान्य वर्ग की बेटियों पर हुए अत्याचारों के लिए सड़कों पर उतरे थे क्योंकि वह बेटी निर्भया और रेड्डी थीं। उनके लिए दरिंदों का एनकाउंटर किया गया। फांसी पर लटकाया गया। फिर इस बेटी के लिए शासन प्रशासन 14 सितम्बर से आज तक मौन क्यूँ बना हुआ है। क्यों नहीं इनका कोई भी नुमाइंदा पीड़िता का हाल जानने आया। कहाँ गए वे सारे सामाजिक संगठन जो समाजसेवा का दम भरते हैं? वो बेटी अलीगढ़ के साधारण अस्पताल में सही उपचार के लिए तरस रही है।
क्या यह वाल्मीकि समाज की बेटी बेटी नहीं है? क्या इसकी इज्जत, इज्जत नहीं है। धन्य है वह बेटी अपनी हिम्मत के अंतिम समय तक उन दरिंदों से अपनी अस्मत को बचाती रही लड़ती रही। आखिरकार उन वहशी जानवरों का सामना एक अबला कब तक करती। उसे लहूलुहान कर हड्डियां तोड़कर, उसकी जुबान काटकर वहशी दरिन्दे बेहाल छोड़कर भाग गए। मुझे सोशल मीडिया पर यह देखकर अच्छा लगा रहा कि आज वाल्मीकि समाज के लोग जगह-जगह से संगठित होकर हाथरस पहुंच रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी जागरूकता फैलाई जा रही है। जगह जगह से लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उसे न्याय दिलाने के लिए सरकार तक ज्ञापन पहुँचा रहे हैं। बेटी को देखने के लिए दूर-दूर से पहुंचकर उसके परिवार को उसके अच्छे इलाज के लिए आर्थिक सहायता भी कर रहे हैं इसी प्रकार की जागरूकता की आज समाज में आवश्यकता है। मेरा सभी वर्ग के लोगों से आह्वान है कि बेटियों को बचाओ क्योंकि यदि बेटियां नहीं होंगी तो यह सृष्टि आगे नहीं बढ़ पाएगी। बेटियां ही सृजनकर्ता होती है और आज जो बेटियों का दायरा सीमित होता जा रहा है यह चिंता का विषय है। इसलिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे के साथ बेटियों की सुरक्षा का भी सरकारों का दायित्व होना चाहिए।
हम सभी साथी मांग करते हैं कि ऐसे घटना में संलिप्त लोगों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करते हुए फांसी की सजा दी जाए। पुलिस अधिकारियों पर भी उचित कार्यवाही की जावे। हाथरस में गैंगरेप की पीड़िता के मृत शरीर को जिला पुलिस के आला अधिकारियों की मौज़ूदगी में रात ढाई बजे जला दिया गया।उसके परिजन और गांव के लोग शव को घर ले जाने और सुबह तक इंतज़ार कर लेने की मांग करते रहे लेकिन उनकी एक बात नहीं सुनी गई। यह रिपोर्ट मौके पर मौजूद दिल्ली की पत्रकार तनुश्री पांडेय ने देते हुए तमाम वीडियो भी सोशल मीडिया पर साझा किये हैं। आख़िर ऐसी क्या जल्दबाज़ी थी कि किसी को मृतका का शव तक नहीं देखने दिया गया और रात को ही शव जला दिया गया? क्या हिन्दू धर्म के नियम उस लड़की पर लागू नहीं होते कि रात को शव नहीं जलाया जाता उसे गरिमामयी ज़िन्दगी नहीं दे सके तो कम से कम सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार करने का हक तो दे सकते थे।
सरकार ने वह हक भी नहीं दिया। सुनीता गौतम ने कहा कि यह देश को दहला देने वाली घटना है! इस घटना से उत्तर प्रदेश एवं केंद्रीय सरकार पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं। सरकार कहती है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ लेकिन इस घटना से सरकार के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। जहां आरा ने कहा कि हाथरस की घटना अत्यन्त दुःखद व ह्रदय विदारक घटना है। यह संवैधानिक वयवस्था हमारे जनप्रतिनिधियों, समाज व हम सभी के लिए बेहद शर्मनाक है। इसमें शामिल जघन्य अपराधियों को सजाए मौत हो। पीड़िता की लाश को बिना पोस्टमार्टम के ही, रात को जलाया गया। यदि ऐसा हुआ है तो यह किस आधार पर व किस नियम के अन्तर्गत किया जा सकता है ? उल्लेखनीय है कि न्याय के दृष्टिगत इन प्रश्नों का समाधान प्रत्येक के लिए आवश्यक है। इस अवसर पर निर्मला ने कहा कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में वाल्मीकि समाज की बिटिया के साथ जो दर्दनाक हादसा हुआ है वह बहुत ही निंदनीय है। साथ ही उस बिटिया की अंतिम क्रिया भी बिना परिवार के पुलिस द्वारा कर दी गई।
मार्च मे साथी अनुष्का गौतम जहाँआरा, वीडियो वॉलिंटर, गोआ, अवनी गौतम, निर्मला पारस, चेरी वर्मा, डॉ. बबीता, सीमा पंडोरिया, उमा नौगरैया, पार्वती बंसल काजल कदम, नीतू वर्मा, कविता वर्मा, प्रतिभा मोर, शीतल रायकवार, कल्पना राजे, कृपाल सिंह, लवकुश शर्मा, जितेन्द्र कुमार, कव्यंस सरदार सिंह, बलवीर पांडेय, अशोक कुमार, आकांक्षा, प्रीति वर्मा, लोकेंद्र कुशवाह ने भागीदारी निभाई और सभी ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। यह जानकारी संस्था ने प्रेस विज्ञप्ति में दी।