महाराष्ट्र के एक शहर में हिंदी अभियान


लेखक : नवीन जैन
9893518228
इंदौर


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महाराष्ट्र के अंचल मराठवाड़ा में एक जिला है, जालना। वैसे तो यह शहर दशकों पुरानी अपनी व्यावसायिक, ओद्योगिक तथा खेती बाड़ी के लिए प्रसिद्ध है, मग़र यहाँ की मराठी साहित्यिक, सांस्कृतिक के प्रखर चलन को हिंदी से जोड़कर इस शहर में जो हिंदी को लेकर काम हो रहा है ,उसके कारण इस करीब साढ़े तीन लाख की मिली जुली बस्ती को छोटी सी हिंदी नगरी भी कहा जाने लगा है। मारवाड़ी समाज के यहाँ विशेष रूप से हावी होने के कारण यहाँ बोल चाल की भाषा वैसे भी हिंदी होने के कारण इसका प्रयोग पुराने समय से यहाँ होता रहा है, मग़र कुछ साहित्यिक गतिविधियों के कारण महाराष्ट्र में जालना का नाम स्थापित हो चुका है।



जान लें कि प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को यहाँ हिंदी दिवस बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। जिसके तहत कवि सम्मेलन होते हैं, मराठी से अनूदित हिंदी पुस्तक का विमोचन एवं अन्य गतिविधियां होती हैं। श्रीमती रेखा और उनके पति श्री शिवकुमार बैजल इस अभियान के नायक कहे जा सकते हैं, क्योंकि रेखाजी कॉलेज के ज़माने से ही मराठी साहित्य की विविध शैलियों में स्थापित लेखिका और कवियित्री हो चुकी हैं, जिनका आश्चर्यजनक रूप से हिंदी में अनुवाद शिवकुमार बैजल ही करते हैं। उन्होंने इस वर्ष जनवरी से तय कर रखा है कि वे प्रत्येक महीने में रेखाजी की एक कहानी का हिंदी में अनुवाद करेंगे।शिव कुमार बैजल की अनुवाद प्रतिभा का ताज़ा प्रमाण रेखाजी के द्वारा लिखित उपन्यास अग्निपुष्प है।



इसका हिंदी अनुवाद जिसका विमोचन पिछले वर्ष चौदह सितंबर को हिंदी दिवस पर बड़े समारोह में जालना में ही किया गया था है। इसके प्रकाशक हैं, यश पब्लिकेशंस, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, नई दिल्ली 110032। मूल्य रु. 395  रेखाजी को महाराष्ट्र के हिंदी साहित्य समाज में उनके उपन्यास मौत से ज़िंदगी की ओर पर मिले जैनेन्द्र जैन पुरस्कार मिलने पर भरपूर स्वीकृति एवं आदर मिला। यह पुरस्कार रेखाजी को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहिय अकादमी की ओर से प्राप्त हुआ है। इसका अनुवाद भी शिवकुमार बैजल ने किया है।



प्रकाशक हैं, यश पब्लिकेशन्स, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, नई दिल्ली 110032 मूल्य रुपये 295। अनेक उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, कविताएं, लघु कहानियों की लेखिका रेखाजी का लगभग सम्पूर्ण साहित्य उनके पति ने ही हिंदी में अनूदित किया है। अंग्रेजी, उर्दू, कन्नड़ तथा तेलुगु भाषाओं में भी उनका अधिकांश साहित्य अनूदित हो चुका है। कथा कथन  के अलावा मराठी दूरदर्शन, आकाशवाणी और अन्य मराठी एवं हिंदी संस्थाओं पर सक्रिय रहती हैं। रेखाजी को कई बड़े मराठी सम्मानों  से नवाज़ा जा चुका है। उनकी रचनाएं महाराष्ट्र के कई मराठी और हिंदी पाठ्यक्रमों में सम्मिलित हैं। (लेखक के अपने विचार हैं)