लताजी के जन्मदिवस पर विशेष
कोरोना के पहले हम कुछ बन्दे इन्दौर प्रेस क्लब में नियमित बैठा करते थे तो महज दो तीन मिनट पैदल की दूरी पर स्थित एक जगह को अक्सर देख लिया करते थे।ऐसा करने से हमारी आंखें नई रोशनी ,आभा या सुषमा से लबालब होने लगती थी। मन कभी नहीं भरता तो वहीं पर कायम शहर की सबसे विश्वसनीय दुकान मेहता क्लॉथ स्टोर्स पर उसके मालिक नितिन मेहता और बाबू भाई मेहता के पास बैठ जाते। अक्सर मुस्कुराते हुए उक्त दोंनो भाई हमसे कहते कि हमें मालूम है कि आप क्यों आए हैं, मग़र आप सभी की पंसद की कुछ शर्ट की नई डिजाइन आईं हैं, हालांकि ज़्यादा ही महँगी है, पर पसंद आ जाए तो क्या महंगा और क्या सस्ता। हम सभी बिना जरूरत के भी कपड़े ले लाते थे, इसलिए अन्य लोग हम पर हँसते भी थे, लेकिन हम वहाँ जाते किसी औऱ वजह से। वह 90 साल पहली की कल रात की उदास, नाराज़ गुमसुम मध्य रात्रि थी। उसी कपड़ों की दुकान की जगह बने टूटे फूटे मकान में एक किलकारी गूँजी थी। अब सालों से वहाँ उसी बच्ची की 91 वें वर्ष की उम्र में लाइट ब्ल्यू रंग में पेंट की बडी तस्वीर लगी हुई है।
कुछ लोग हो सकता है हमारी इस पावन भावना में भी भक्ति भाव तलाशने लगें, क्योंकि ऐसे लोग पहले तो नकली क्रांतिकारी पत्रकार हैं, और फिर दो कौड़ी के नेताओं के सलाहकार। इसलिए, इनकी जमात को इनके हाल पर छोड़ा जाए, मग़र उस दुकान पर तो हम जाते रहेंगे, क्योंकि वहाँ हमें जाकर लगता है कि एक तीर्थ की यात्रा कर आए। तो, पहली बुझाता हूँ चलिए! कौन है वह बच्ची! कौन! लता मंगेशकर, जो भारत रत्न हैं, और डॉक्टर ऑफ नेशन, के अलावा न जाने क्या क्या हैं।देवी अहिल्या बाई की यह नगरी आज भी लताजी की साँसों में समाई हुई हैं। उनके पिताश्री पण्डित दीनानाथ मंगेशकर मशहूर नाट्यकर्मी भी थे। वे परिवार सहित सांगली शिफ्ट हो गए थे ।फिर कोल्हापुर ,तथा पुणे ।इसी दौरान लताजी की अन्य बहनों ने जन्म लिया। लताजी के संघर्ष के कई किस्से आपने सुने होंगे, लेकिन उनकी माताजी के नहीं न !!!!!!! एक किस्सा मैं सुनाता हूँ। सभी लोग जब मुम्बई आ गए तो उन्हें खाने को तो रोटला मिल जाता, परन्तु रहने को ओटला नहीं ।एक चबूतरा जैसे तैसे मिला। मुम्बई में तब भी इंसान और जानवर दोनों रहते थे। इसीलिए, लताजी की माँ तो रात में अपनी बेटियों को समय से सुरक्षित सुला देती, लेकिन उनकी हिफाज़त के लिए रात भर जागकर पहरा देंती।
एक देर रात देखती क्या हैं कि किसी अकेले युवक के पीछे कुछ दूसरे युवकों का झुंड चाकू, उस्तरे, खंजर जैसे हथियार लेकर भाग रहा हैं। माताजी, आवक। यह क्या !!!! बेटियों को छोड़कर उन युवकों के बीच चली गई। बहुत देर तक युवकों समझाकर अलग किया। युवकों का झुंड तो चला गया मगर वह युवक माताजी के निकट आकर बैठ गया। उसने पूछा माई, आप जाग क्यों रही थीं? मुझे रोज़ ऐसे ही अपनी बेटियों की सुरक्षा के लिए सुबह तक जागना पड़ता है ।दिन में सो लेती हूँ। सन्नाटे में आए उक्त युवक ने देर तक कुछ सोचा।फिर कहा कल से मैं सभी बुरे काम छोड़कर रात में आठ बजे से आ जाऊँगा, और सुबह तक यहीं पहरा दूँगा। आपने मुझे मरने से बचा लिया। मैं भी पठान का बच्चा हूँ ,इसलिए झूठा वादा नहीं करता। कल से मेरा रास्ता देखना। सलाम! लोग वाकिफ नहीं होंगे शायद कि लताजी कैरम खेलने की बेहद शौकीन रही हैं।उनके शॉट्स बड़े शार्प माने जाते रहे हैं। जब तक उन्हें गाना पूरी तरह याद नहीं हो जाता वे माइक पर नहीं आतीं। नए लोगों को उनकी सलाह रही है कि एक साथ दो नावों की सवारी न करें। सचिन तेंदुलकर ने एक बार उनसे कहा कि जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था तभी आपका यह गाना कम्पोज हो रहा होगा, तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा।
लताजी की यह भी सीख रही है कि गाते समय आडियंस की तरफ एक सेकंड के लिए भी न देखो। कभी उन्होंने क्रिकेट को भारत का धर्म कहा था, और सचिन तेंदुलकर को उसका भगवान। इन्दौर के लोगों के लिए आज भी आदेश रहते हैं कि उन्हें उनसे जरूर मिलवाया जाए। उनसे जो भी इन्दौरी मिलता है, सबसे पहले वे उससे यहाँ की खाऊ गली, यानी विश्व प्रसिद्ध शाकाहारी व्यंजनों का लंबे मार्केट सराफा बाज़ार के सम्बंध में ताज़ातरीन जानकारियाँ अवश्य लेती हैं। कहने वाले कहते कि जब लताजी 32 वर्ष की थीं, तभी उनके रसोइये ने उनके भोजन में धीमा जहर मिला दिया था। इसका राज क्या था, यह तो कभी उजागर नहीं हो पाया, अलबत्ता उक्त रसोइये की तत्काल बिना वेतन दिए छुट्टी कर दी थी और फिर लम्बे समय तक प्रख्यात गीतकार तथा शायर स्व. मज़रूह सुल्तानपुरी उनके घर जाकर खुद उनका खाना चखते थे, और फिर उसके बाद ही लताजी को खाने को देते थे। कहते हैं, लताजी का असली नाम हेमा था, और उन्होंने ने कभी एक इंटरव्यू में बताया था कि गले की मिठास के लिए में वे एक दिन में 12 मिर्च तक खा जाती है।आजकल मीडिया में बॉलीवुड में फैले डिप्रेशन को लेकर इधर उधर की भावुक खबरें लगातार आ रही हैं, लेकिन यह राज बहुत कम लोग को पता होगा कि कभी यह महानतम गायिका भी वाकई डिप्रेशन में आ गई थीं, किन्तु अपनी हिम्मत के चलते उनका पहले से जोरदार कम बैक हुआ।
मनोविश्लेशकों का कहना है कि प्रत्येक सफल व्यक्ति के जीवन का डिप्रेशन एक ज़रूरी हिस्सा है। सुरों के बेताज बादशाह स्व मोहम्मद रफ़ी को भी प्रसिद्ध संगीतकार स्व नोशाद साहब ने एक गाना कम्पोज करके ऐसे ही डिप्रेशन से बाहर निकाला था , और ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार साहब ,जो लताजी को बहन कहकर खूब लाड़ देते रहे हैं ,देवदास फ़िल्म में अभनिय करने से ऐसे डिप्रेशन में आए कि करीब एक साल तक विदेश में उनका इलाज चला था। लताजी तीस से अधिक भाषाओं में करीब पचास हज़ार गाने गा चुकी हैं। पुनः याद दिला दूँ कि लताजी का जन्म सितंबर 28, 1929 को हुआ था। उन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करने में खास रुचि कभीं स्व. अटलजी ने दिखाई थी। विदेशी मीडिया की नकल करके बे सिर पैर की खबरों के लिए मशहूर भारतीय मीडिया के एक कबाड़ी कहे जाने वाले ब्लॉक ने कभी लताजी के निजी जीवन में ताक झाँक की कोशिशें भी कीं थी। ऐसा लेखन ,वास्तव में फुटपाथिया होता है ,लेकिन लताजी ने इन कलम नवीसों को कभी भाव नहीं दिया। सिर्फ़ यही कहती रहीं कि मेरी पहली प्राथमिकता परिवार का भरण पोषण थी ,इसलिए मैं बीच में विवाह कैसे कर लेती? मैं तो स्कूल तक नहीं गई ,और गाने की रियाज़ के जैसे ही घर मे शिक्षा ग्रहण करती रही। अब चर्चा को यह याद करके विराम दें कि पाकिस्तान के आमो खास लोगो की आज भी सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि एक तो ताजमहल उसके पास नहीं है, और दूसरी लता मंगेशकर। ताजमहल का पाकिस्तान क्या कर लेता, यह तो वही जाने ,मग़र लताजी की उपस्थिति में जो कुछ वह भारत के खिलाफ दशकों से कर रहा है, उससे शायद बाज़ आ जाता, लेकिन शायद हाँ! नमस्कार। (लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक : नवीन जैन (इंदौर)
वरिष्ठ पत्रकार 9893518228