निशांत की रिपोर्ट
हर साल कोयला बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन मानकों को लागू नहीं करने की वजह से 88,000 बच्चे अस्थमा का शिकार हो जाते हैं। 140,000 बच्चे समय से पहले मतलब प्री टर्म पैदा होते हैं और 3,900 नौनेहाल असमय पैदा होते ही अकाल मौत की गोद में समां जाते हैं। इस बात का पता चलता है हाल ही में जारी किये गए एक विडियो से जिसे डॉक्टरों के एक समूह ने कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं और कुछ चुनिन्दा नागरिकों के साथ मिलकर बनाया है। इन सभी ने विडियो के ज़रिये कोयला विद्युत् संयंत्रों द्वारा उगले जा रहे ज़हरीली धुआं और उससे होने वाले स्वास्थ्य को नुकसान पर अपनी चिंता व्यक्त की।
इस विडियो को बनाने वाली मुख्य संस्थाएं हैं सीआरईए, डॉक्टर फॉर क्लीन एयर, दिल्ली ट्री एसओएस, एक्सटिनकट रेबिल्ल्यन इंडिया, हेल्थी एनर्जी इनिशिएटिव, लेट मी ब्रीथ, माई राईट टू ब्रीथ, पेरेंट्स फॉर फ्यूचर, वेरिअर मॉम्स। चेस्ट सर्जन एवं लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक, डॉक्टर अरविंद कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले ज़हरीले धुए हमारे बच्चों के नव विकसित फेपड़ों के लिए घातक साबित होते हैं। इसकी वजह से बच्चों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और लगातार ख़ासी आने जैसे क्रोनिक रोगों को जन्म देते हैं। इसकी वजह से बच्चों के फेपड़ों का लम्बे समय तक होने वाला विकास रुक जाता है जो उनके लिए घातक साबित हो सकता है। हर मिनट ऐसी ज़हरीली हवा में सांस लेने देना बच्चों के प्रति एक जघन्य अपराध है।
विशेषज्ञों के मुताबिक उत्सर्जन मानकों को लागू करने से पहले के मुक़ाबले पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन चालीस फीसद कम हो जायेगा, SO2 और NOx का उत्सर्जन 48 प्रतिशद कम हो जायेगा, और मर्क्युरी का उत्सर्जन 60 प्रतिशद कम हो जायेगा हालांकि, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर सीआरईए के अनुसार, आज तक वर्तमान चरणबद्ध योजना के तहत उत्सर्जन मानकों का पालन करने के लिए आवश्यक कुल कोयला बिजली संयंत्र की क्षमता का केवल 1% ही फ्लेयू-गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) तकनीक स्थापित की है। जबकि कोयला क्षमता के कुल 169.7GW से, एफजीडी कार्यान्वयन के लिए केवल 27% क्षमता को बिड अवार्ड किया गया है।
इस पर सीआरईए के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा, कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट पर्यावरण प्रदूषण, पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति और मानव स्वास्थ्य क्षति के लिए बड़े योगदानकर्ता हैं। इन बिजली संयंत्रों से प्रदूषण के उत्सर्जन को कम करना अनिवार्य है, इसके आलावा अधिक टिकाऊ और किफायती रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों को स्थानांतरित करना है। वहीँ काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर सीइइडब्ल्यू के अनुमान के अनुसार, यदि सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान 2018 में रिटायरमेंट के लिए पहचाने जाने वाले सभी प्लांटों को पीसीटी से वापस ले लिया जाए, तो इसकी लागत आईएनआर 94,267 करोड़ होगी। यदि अकेले योग्य पौधों को शामिल किया गया था, तो इसकी लागत 80,587 करोड़ रुपये होगी। यदि अकेले योग्य पौधों को शामिल किया गया था, तो इसकी लागत 80,587 करोड़ रुपये होगी।
सामाजिक लागत के साथ प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकी की लागत के बीच एक तुलनात्मक विश्लेषण, जैसा कि सीइइडब्ल्यू शहरी उत्सर्जन, द्वारा एक अध्ययन में किया गया था ने गणना की कि (एफजीडी) स्थापना की पूंजी लागत उस क्षमता के आधार पर जिस पर संयंत्र संचालित हो रहा है, संयंत्र लोड कारक और पौधे के जीवन के हिसाब से 30-72 पैसे /KWh तक पहुंच जाती है। यदि कोयला संयंत्र मानकों को पूरा करते हैं, तो स्वास्थ्य और सामाजिक लागत 8.5 रुपये /KWh से घटकर 0.73 पैसे /KWh हो जाती है। बात बच्चों के स्वास्थ्य की हो तो एक माँ का पक्ष रखते हुए वारियर मॉम्स के भावरीन कंधारी कहती हैं , पावर प्लांटों को स्वच्छ वायु मानकों को तत्काल लागू करना चाहिए। भारतीयों के बीच पुरानी फेफड़ों की बीमारियों में स्पाइक दिखाता है कि कैसे हम सरकार की अनुचित प्राथमिकताओं के लिए और एक माँ के रूप में एक कीमत चुका रहे हैं जो मुझे स्वीकार नहीं है कि यह मेरे बच्चों को उनकी जान की कीमत पर हो रहा है। (लेखक के अपने विचार हैं)