एक रिपोर्ट
लेखक : निशांत
लखनऊ (यूपी) से
हम कोविड-19 से उबरने के दौर में हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था की ‘ग्रीन रिकवरी’ पर केन्द्रित एक वेबिनार आयोजित की गयी। इसमें इस बात पर गौर किया गया कि कैसे राजस्थान अपने बिजली क्षेत्र को रूपांतरित कर सकता है, जिससे न सिर्फ रोजगार के ज्यादा अवसर मिलें बल्कि बिजली उत्पादन लाभकारी क्षेत्र भी बने। वेबिनार में इस बात पर भी गौर किया गया कि राजस्थान कैसे खुद को बिजली आयातक से निर्यातक राज्य में तब्दील कर सकता है।
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कोविड-19 महामारी के प्रभाव विध्वंसक हैं। कोविड संक्रमण के रिकॉर्ड मामले रोजाना हमारे सामने आ रहे हैं। वर्ष 2020 की पहली तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था में 24 प्रतिशत की गिरावट हुई है। अनेक लोगों की नौकरी और रोजगार खत्म हो गया है। ऊर्जा क्षेत्र जैसे उद्योगों पर भी कोविड-19 महामारी का बुरा असर पड़ा है। महंगी बिजली, कम मांग और बेतरतीब तरीके से राजस्व वसूली होने से बिजली वितरण कम्पनियों पर चढ़े कर्ज में भी उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है। हम कोविड-19 से उबरने के दौर में हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था की ‘ग्रीन रिकवरी’ पर केन्द्रित एक वेबिनार आयोजित की गयी। इसमें इस बात पर गौर किया गया कि कैसे राजस्थान अपने बिजली क्षेत्र को रूपांतरित कर सकता है, जिससे न सिर्फ रोजगार के ज्यादा अवसर मिलें बल्कि बिजली उत्पादन लाभकारी क्षेत्र भी बने। वेबिनार में इस बात पर भी गौर किया गया कि राजस्थान कैसे खुद को बिजली आयातक से निर्यातक राज्य में तब्दील कर सकता है।
क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा आयोजित वेबिनार में लैप्पीरांता यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलॉजी (एलयूटी), इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एण्ड फाइनेंशियल एनालीसिस (आईईईएफए) और कंज्यूमर यूनिटी एण्ड ट्रस्ट सोसाइटी (सीयूटीएस) के विशेषज्ञों ने कहा कि राजस्थान देश के उत्तरी राज्यों में किस तरह ऊर्जा क्षेत्र के रूपांतरण में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। एलयूटी की एक रिपोर्ट में लगाये गये अनुमान के मुताबिक अगर वर्ष 2050 तक उत्तर भारतीय राज्यों में बिजली के मामले में अक्षय ऊर्जा पर 100 फीसद निर्भरता हो जाए तो रोजगार के 50 लाख नये अवसर पैदा होंगे। राजस्थान में इस वक्त 9.6 गीगावॉट उत्पादन क्षमता के अक्षय ऊर्जा संयंत्र मौजूद हैं। हालांकि एलयूटी की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक राजस्थान में 584 गीगावॉट की अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता होगी। राजस्थान अन्य राज्यों को बिजली निर्यात करने वाला राज्य बन सकता है। वर्ष 2050 तक वह पड़ोसी राज्यों को करीब 104 टेरावॉट बिजली निर्यात कर सकता है। इस तरह वह खुद को बिजली आयातक से बिजली निर्यातक राज्य में बदल सकता है।
राजस्थान के पास सौर ऊर्जा उत्पादन की असीम सम्भावनाएं हैं, मगर इसके बावजूद वह ऊर्जा के निर्यातक के बजाय आयातक ही बना हुआ है। आईईईएफए की रिपोर्ट में लगाये गये अनुमान के मुताबिक राजस्थान ने वित्तीय वर्ष 2019/2020 में 10.9 टेरावॉट बिजली आयात की है। राजस्थान की बिजली वितरण कम्पनियां भी वित्तीय बदहाली के दौर से गुजर रही हैं। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान की बिजली वितरण कम्पनियों पर ऊर्जा उत्पादकों का करीब 35581 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है। एलयूटी रिपोर्ट के मुख्य लेखक मनीष राम ने कहा दिल्ली जैसे राज्यों के पास अपने यहां बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन का ढांचा तैयार करने के लिये बहुत सीमित जगह है, लिहाजा वे बिजली से जुड़ी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिये पड़ोसी राज्यों पर निर्भर बने रहेंगे। यह उन राज्यों के लिये एक अवसर है, जिनके पास अक्षय ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिये काफी जमीन उपलब्ध है। सौभाग्य से राजस्थान के पास ये दोनों ही चीजें मौजूद हैं। सौर ऊर्जा उत्पादन पर ध्यान देने से न सिर्फ रोजगार के और ज्यादा अवसर पैदा होंगे, बल्कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में भी मदद मिलेगी।’
राम ने कहा कि पैरिस एग्रीमेंट को अपना विजन बनाते हुए हमें यह देखना होगा कि हम मौजूदा हालात में कैसे अक्षय ऊर्जा को प्रमुखता देकर आगे बढ़ सकते हैं। राजस्थान में अक्षय ऊर्जा प्रणालियां लगाने की काफी सम्भावनाएं हैं। इस राज्य में देश का बिजली निर्यात हब बनने और देश में ऊर्जा रूपांतरण की मुहिम की अगुवाई करने की पूरी सम्भावनाएं मौजूद हैं। जीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली के मुकाबले 100 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा अधिक किफायती है। इससे पैरिस समझौते के तहत तय किये गये लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है। साथ ही इससे अल्पकालिक ग्रीन इकॉनमिक रिकवरी को भी बढ़ावा मिलेगा। आईईईएफए की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कोयले से बनने वाली बिजली खासी महंगी है और भारी मात्रा में तकनीकी तथा वाणिज्यिक नुकसान के कारण राजस्थान की बिजली वितरण कम्पनियों को राज्य सरकार द्वारा दी गयी सब्सिडी के बाद वित्तीय वर्ष 2019-20 में 6355 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
रिपोर्ट के मुख्य लेखक कशिश शाह ने कहा सौर ऊर्जा संयंत्रों में पैदा हुई बिजली कोयले से चलने वाले बिजलीघरों से प्राप्त बिजली के मुकाबले सस्ती होती है। हमारे मॉडल में पूर्वानुमान लगाया गया है कि राजस्थान के ग्रिड में कुल 22.6 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा जुड़ने वाली है। हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2029/30 तक होने वाली बिजली की अतिरिक्त मांग का 98 प्रतिशत हिस्सा सौर ऊर्जा से पूरा होगा और 4 गीगावॉट की अतिरिक्त वायु बिजली उत्पादन क्षमता से बिजली की बढ़ी हुई मांग का 45 हिस्सा पूरा होगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान में परम्परागत तरीके से बनायी जाने वाली बिजली महंगी होने के कई कारण है। पहला, उसके पास कोई ‘इन हाउस’ कोयला खदान नहीं है और न ही हाइड्रो पॉवर है। पीक आवर्स के दौरान राज्य में अक्सर बिजली की कमी पड़ जाती है। इसके अलावा राज्य में वर्ष 2015-16 से बिजली के दाम में कोई बढ़ोत्तरी भी नहीं की गयी है।
शाह ने कहा कि विंड रीपॉवरिंग के मामले में भी राजस्थान के पास असीम सम्भावनाएं हैं। इससे विंड कैपेसिटी 4 गीगावॉट से बढ़ाकर 8 गीगावॉट की जा सकती है। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का संचालन वर्ष 2029-30 से बंद किया जा सकता है। बिजली की बढ़ी हुई मांग को अक्षय ऊर्जा के जरिये पूरा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राजस्थान को अक्षय ऊर्जा उत्पादन तथा सम्बन्धित ट्रांसमिशन ढांचे में निवेश आकर्षित करना चाहिये। अन्य राज्यों को अक्षय ऊर्जा का निर्यात करना चाहिये और वितरण कम्पनियों को घाटे से निकालकर फायदे में लाने के लिये ठोस कदम उठाने चाहिये। कृषि क्षेत्र की बिजली की मांगों को ‘सोलराइजेशन’ किया जाना चाहिये।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि राजस्थान सरकार को गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के नक्शेकदम पर चलते हुए नयी कोयला नीति का एलान करना चाहिये। उन्होंने कहा राजस्थान में कोयले से चलने वाले बिजलीघरों की उपयोगिता अब तक के सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गयी है। मुख्यमंत्री ने राजस्थान को सोलर हब बनाने का संकल्प लिया है। देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन की सबसे बेहतर सम्भावनाओं के मामले में भी राजस्थान अव्वल है।
उन्होंने कहा कोविड-19 महामारी के बाद बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी हो रही है। मगर अब सरकार को कोयले से चलने वाले खर्चीले बिजलीघर बनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भविष्य में जब अक्षय ऊर्जा का चलन अपने चरम पर होगा, तब कोयला बिजलीघर बेकार हो जाएंगे और बिजली कम्पनियों को हो रहा नुकसान और बढ़ जाएगा। भविष्य की ऊर्जा सम्बन्धी मांगों को अक्षय ऊर्जा के जरिये पूरा करने की नीति का एलान करने का यह सही वक्त है। सीयूटीएस इंटरनेशनल के असिस्टेंट पॉलिसी एनालिस्ट सार्थक शुक्ला ने कहा कि भारत में विंड एनर्जी (पवन ऊर्जा) अभी ठीक तरीके से स्थापित नहीं हुई है। वहीं, पनबिजली का चलन उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में काफी ज्यादा है। देश में सौर ऊर्जा को लेकर दिलचस्पी व्यापक रूप से बढ़ी है। इस लिहाज से राजस्थान में सौर ऊर्जा का हब बनने की सबसे बेहतर सम्भावनाएं हैं। (लेखक का अपना अध्ययन और अपने विचार है)